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कांग्रेस की मीटिंग में आम आदमी पार्टी का ना पहुंचना क्या कहता है?

क्या ‘आप’-कांग्रेस की लड़ाई का फायदा बीजेपी उठा लेगी?

नीरज गुप्ता
पॉलिटिक्स
Published:
दिल्ली की तिकोणी सियासी लड़ाई में ‘आप’ और कांग्रेस की तल्खी का सीधा फायदा बीजेपी को है
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दिल्ली की तिकोणी सियासी लड़ाई में ‘आप’ और कांग्रेस की तल्खी का सीधा फायदा बीजेपी को है
(फोटो : द क्विंट)

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दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है. क्या ये पुरानी कहावत हमेशा सही साबित होती है? हमें ये सवाल कांग्रेस पार्टी और आम आदमी पार्टी (आप) की वजह से पूछना पड़ रहा है, जिन दोनों का एक ही सियासी दुश्मन है- बीजेपी.

बहुत कठिन है डगर गठबंधन की

संसद के मॉनसून सत्र से पहले विपक्षी पार्टियों की अहम बैठक ने एक बार फिर इशारा दिया कि बहुत कठिन है डगर ‘गठबंधन’ की. सरकार के घेरने की रणनीति बनाने के लिए कांग्रेस की अगुवाई में हुई बैठक में 14 पार्टियों को बुलाया गया था लेकिन पहुंची 13.

जो नहीं पहुंची वो थी आम आदमी पार्टी. सत्ता के गलियारों में चर्चा है कि अगर कांग्रेस ने दरियादिली दिखाते हुए ‘आप’ को बुलाया था तो वो औपचारिकता के लिए ही सही गई क्यों नहीं.

इसकी दो वजहें हो सकती हैं:

  • ‘आप’ ने कांग्रेस से तालमेल की तमाम संभावनों को खारिज कर दिया है?
  • ‘आप’ चाहती है कि 2019 से पहले किसी तालमेल की सूरत में सीटों के बंटवारे को लेकर कांग्रेस बैकफुट पर रहे.

‘आप’ के राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने क्विंट से बात करते हुए इस बात की तस्दीक की कि उन्हें बुलावा आया था. उन्होंने कहा:

16 जुलाई को हुई विपक्ष की बैठक में कांग्रेस का बुलावा मुझे आया था लेकिन मैं शहर से बाहर था इसलिए नहीं गया.
संजय सिंह, राज्यसभा सांसद, ‘आप’

लेकिन 17 जुलाई को ऑल पार्टी मीटिंग में कांग्रेस को लेकर आप के तीखे तेवर साफ दिखे. उन्होंने राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद को कहा कि छोटे मन से बड़ी राजनीति नहीं होती.

ऑल पार्टी मीटिंग के बाद मीडिया से बात करते हुए ‘आप’ सांसद भगवंत मान और संजय सिंह(फोटो : PTI)
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वैसे ये भी दिलचस्प है कि अब तक कांग्रेस ने ‘आप’ को विपक्ष की किसी मीटिंग का न्यौता नहीं दिया.

सूत्रों के मुताबिक तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष ममता बनर्जी और एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार की बार-बार कहने पर कांग्रेस को ‘आप’ को बुलावा भेजना पड़ा. ममता और पवार के मुताबिक 2019 के समभावित महागठबंधन के लिए ये छोटी-छोटी अदावतें छोड़नी होंगी. 

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने 1 जून को लोकसभा चुनावों के लिए पदाधिकारियों की घोषणा की जिनमें दिल्ली की सात में से पांच सीटों को शामिल किया गया. बस फिर क्या था? खबर उड़ गई कि ‘आप’ कांग्रेस में 5-2 के सीट बंटवारे पर बात बन रही है जो बात बढ़ने पर 4-3 भी हो सकता है. इस पर अजय माकन की तीखी प्रतिक्रिया आई.

माकन ने लिखा कि ‘ जब दिल्ली के लोग लगातार केजरीवाल सरकार को खारिज कर रहे हैं तो हम उन्हें बचाने क्यों आएं? आखिरकार आरएसएस समर्थिक टीम अन्ना के साथ केजरीवाल ने ही मोदी के दैत्य को बनने में मदद की.’

लेकिन खास बात ये कि कांग्रेस आलाकमान ने खुद को उस तू तू- मैं मैं से दूर रखा.

खबरों के मुताबक देश भर में गैर-बीजेपी पार्टियों को जोड़ने में जुटे कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी चाहते हैं कि दिल्ली में बीजेपी से सीधी लड़ाई के लिए ‘आप’ के साथ भी तालमेल हो लेकिन अजय माकन और शीला दीक्षित जैसे दिल्ली के कांग्रेस नेता ऐसा नहीं चाहते.

क्विंट से बात करते हुए ‘आप’ नेता संजय सिंह ने साफ कहा:

उपराज्यपाल के जरिये केंद्र की बीजेपी सरकार दिल्ली सरकार के काम में रोड़े अटकाती है तो कांग्रेस बीजेपी के विरोध के बजाए ‘आप’ का ही विरोध करती जर आती है. हाल में ‘आप’ की दिल्ली को पूर्ण राज्य की मांग के मामले में भी ऐसा ही हो रहा है. तो जब दिल्ली के मामले में कांग्रेस बड़ा दिल दिखाने को तैयार नहीं है तो देश की बात क्या की जाए?
संजय सिंह, राज्यसभा सांसद, ‘आप’

तो क्या 2019 में दिल्ली में ‘आप’, कांग्रेस और बीजेपी का तिकोना मुकाबला होगा?

राजनीति संभावनाओं का खेल है इसलिए इस सवाल का सीधा जवाब फिलहाल नहीं दिया जा सकता लेकिन अस्तित्व का संकट हो तो बड़े दुश्मन से निपटने के लिए छोटे से हाथ मिलाया भी जा सकता है. और ये कहने की जरूरत नहीं कि बीजेपी ‘आप’ के लिए कांग्रेस से बड़ा दुश्मन है.

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