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समाजवादी पार्टी ने अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव की तैयारी शुरू कर दी है. इसी क्रम में पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने रविवार (13 अगस्त) को उत्तर प्रदेश राज्य कार्यकारिणी का गठन किया, जिसमें मुख्य रूप से गैर-यादव और ओबीसी नेताओं को अधिक जगह दी है. राजनीतिक जानकारों की मानें तो, पार्टी ने ऐसा "केवल यादवों" को तवज्जो देने के आरोपों से बचने के लिए किया है.
नई राज्य कार्यकारिणी में 182 सदस्यों को जगह दी गई है. इसमें अखिलेश यादव ने अपने चाचा और समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव शिवपाल सिंह यादव के आधा दर्जन से अधिक करीबी नेताओं को भी जगह दी है.
70 में से 30 पदाधिकारी गैर-यादव ओबीसी से हैं, जबकि केवल पांच यादव नेताओं को शामिल किया गया है. अनुसूचित जाति (SC) से 8, अनुसूचित जनजाति (ST) के दो और पांच ब्राह्मण नेताओं को लिस्ट में जगह मिली है. पार्टी ने सूची में 12 मुसलमानों को भी शामिल किया है.
प्रदेश कार्यकारिणी समिति में 70 पदाधिकारी, 48 सदस्य और 62 विशेष आमंत्रित सदस्य शामिल हैं. उत्तर प्रदेश समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल के नेतृत्व वाली पदाधिकारियों की टीम में चार उपाध्यक्ष, तीन महासचिव, 61 सचिव और एक कोषाध्यक्ष बनाया गया है.
द इंडियन एक्सप्रेस से नरेश उत्तर पटेल ने कहा, "नई टीम संतुलित है और इसमें सभी जातियों और समुदायों के नेताओं का प्रतिनिधित्व है. यह बीजेपी का प्रचार है कि समाजवादी पार्टी एक जाति की पार्टी है. समाजवादी पार्टी ने हमेशा सभी जातियों और समुदायों को सम्मान और प्रतिनिधित्व दिया है."
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि ओम प्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी और केशव देव मौर्य के महान दल के समाजवादी पार्टी गठबंधन से अलग होने के बाद गैर-यादव ओबीसी मतदाता अखिलेश से छिटक सकता था. ऐसे में आगामी लोकसभा चुनाव में गैर-यादव ओबीसी मतदाताओं को समाजवादी पार्टी से जोड़े रखने के लिए अखिलेश यादव ने ये कदम उठाया है.
हालांकि, बीते दिनों ओम प्रकाश राजभर बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए में शामिल हो गए, जबकि महान दल ने बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) को बिना शर्त समर्थन देने की घोषणा की. इसके अलावा, हाल ही में समाजवादी पार्टी के कुछ ओबीसी नेता बीजेपी में शामिल हुए, जिनमें पूर्वी यूपी के ओबीसी नेता विधायक दारा सिंह चौहान भी शामिल हैं.
समाजवादी पार्टी ने प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल के अलावा दो और कुर्मी (ओबीसी) नेता को पैनल में शामिल किया है. इसके अलावा निषाद समुदाय से चार नेता भी हैं.
वहीं, क्षेत्रवार भी बंटवारा किया गया है. 16 पदाधिकारी पूर्वी यूपी और पश्चिम यूपी के 12 नेताओं को भी जगह दी है जहां, समाजवादी पार्टी का आरएलडी के साथ गठबंधन है.
गाजियाबाद के धर्मवीर डबास और बागपत की शालिनी राकेश- दोनों जाट नेताओं को नोएडा से गुर्जर नेता सुनील चौधरी के साथ राज्य सचिव नियुक्त किया गया है.
सात पदाधिकारी तीन जिलों-मैनपुरी (दो), कन्नौज (तीन) और इटावा (दो) से हैं - जिन्हें यादव परिवार का गढ़ माना जाता है.
हालांकि, यादव नेताओं को उपाध्यक्ष और महासचिव जैसा प्रमुख पद नहीं दिया गया है. महिमा यादव, लाखन सिंह यादव, अवधेश यादव, रामसेवक यादव और महताब सिंह को सचिव बनाया गया है. इसके विपरीत, तीन मुस्लिम चेहरों को प्रमुख पदों पर जगह दी गई है.
कुल मिलाकर देखें तो, अखिलेश यादव ने पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक यानी पीडीए के साथ-साथ अगड़ी जाति के लोगों को भी खासा प्रतिनिधित्व देकर समाजवादी पार्टी के नजदीक लाने की कोशिश की है.
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