Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Elections Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Uttar pradesh election  Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019माया, मौर्य और मुफ्त राशन...SP कार्यकर्ता हार के पीछे देख रहे ये कारण

माया, मौर्य और मुफ्त राशन...SP कार्यकर्ता हार के पीछे देख रहे ये कारण

जमीनी स्तर पर SP के कार्यकर्ता और नेता जोश से भरे थे और उन्हें पूरा यकीन था कि चुनाव में उनकी जीत होगी.

पीयूष राय
उत्तर प्रदेश चुनाव
Published:
<div class="paragraphs"><p>SP की हार के कारण&nbsp;</p></div>
i

SP की हार के कारण 

(फोटो: Altered by Quint)

advertisement

10 मार्च को जब विधानसभा चुनाव (Assembly election result) के नतीजे आए, उस दिन दोपहर के करीब डेढ़ बजे लखनऊ के विक्रमादित्य मार्ग स्थित समाजवादी पार्टी के कार्यालय के बाहर खड़ी भीड़ धीरे-धीरे छिटकने लगी. LED डिस्प्ले के साथ वैन्स जो रियल टाइम ट्रेंड्स दिखा रही थींं, उन्होंने भी अपना सामान बांधना शुरू कर दिया, जब बीजेपी भारी बढ़त हासिल करती नजर आई. समर्थकों का एक समूह भी था, जिसमें एक व्यक्ति ने अखिलेश यादव की तस्वीर पकड़ी हुई थी. ये सभी पार्टी कार्यालय के मेन गेट के बाहर इस उम्मीद में खड़े थे कि समाजवादी पार्टी जीतेगी.

कैमरे पर वो ट्रेंड्स के पलटने के दावे कर रहे थे और मीडिया के लोगों से समाजवादी पार्टी की जोरदार जीत की बात भी कह रहे थे. हालांकि अंदर ही अंदर उनका सबसे बड़ा डर सच होने जा रहा था.

एक समर्थक ने पहचान न बताने की शर्त पर कहा, हम पांच सालों तक लड़े. हम पर राजनीति से प्रेरित कई तरह के मुकदमे लगा दिए गए हैं. लेकिन हमे यकीन था कि जब समाजवादी पार्टी सत्ता में आएगी तो हम इससे बाहर निकल जाएंगे. अब कोई उम्मीद नहीं है. हमने जिस चीज के लिए इतना काम किया, अब वो नहीं है. हमारे पास मुश्किल से ही कोई संसाधन होंगे, जिससे हम आगे काम जारी रख सकें.

ये करीब चार दशकों के बाद हुआ है, जब एक पार्टी लगातार दूसरी बार जीत हासिल कर उत्तर प्रदेश में आई है और समाजवादी एक बार फिर विपक्ष में है.

जमीनी स्तर पर एसपी के कार्यकर्ता और नेता जोश से भरे थे और उन्हें पूरा यकीन था कि चुनाव में उनकी जीत होगी. लेकिन 10 मार्च को नतीजों के बाद समाजवादी पार्टी के भीतर दोषारोपण और आत्मविश्लेषण का दौर जारी है.

माया, मौर्या और मुफ्त राशन

विधानसभा चुनाव में हार के बाद अखिलेश यादव मुश्किल से ही कभी सार्वजनिक रूप से नजर आए हैं. उन्होंने कोई प्रेस कॉन्फ्रेंस भी नहीं की. वहीं मीडिया रिपोर्ट्स में जब ये कहा गया कि अखिलेश यादव स्वामी प्रसाद मौर्या के लिए करहल सीट छोड़ रहे हैं, इस बात ने सपा के कार्यकर्ताओं को और परेशान कर दिया, जो पहले ही चुनाव में हुई हार को स्वीकार करने की कोशिश कर रहे हैं.

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, उन्हें ये सीट अपने पास रखनी चाहिए और विधानसभा में विपक्ष का नेता बनना चाहिए. बीजेपी जैसी पार्टी को हराने के लिए, जिसने बहुत आक्रामकता से जमीनी स्तर पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है, हमें अपने प्रयासों को दोगुना करना होगा, तभी हम उन्हें मात दे पाएंगे.

इस तरह की टिप्पणियां चुनाव में हार के बाद समाजवादी पार्टी के जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं में विस्तृत विचार विमर्श का हिस्सा हैं क्योंकि, कइयों के लिए ये हार अप्रत्याशित थी.

प्रयागराज में समाजवादी पार्टी के एक कार्यकर्ता ने कहा, जब हमने कैम्पेन के दौरान लोगों के पास जाना शुरू किया, तो ऐसा लगा कि लोग महंगाई, बेरोजगारी और अवारा पशुओं जैसे अहम मुद्दों पर बीजेपी के खिलाफ संघटित होना शुरू हो गए हैं. हमें यकीन था कि हम वापस आएंगे.

हालांकि बीजेपी ने बहुमत हासिल किया है, लेकिन जीत का मार्जिन 2017 से कम है. वहीं विपक्ष में जमीनी स्तर के कार्यकर्ता और नेता उन अहम कारणों का पता लगाने में जुटे हैं जिनकी वजह से चुनाव में उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा.
ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

मेरठ के एक वरिष्ठ सपा नेता राजपाल सिंह ने कहा, .

अभी तक जो अनुमान हम लगा पाए हैं, उसमें पहली नजर में ये सामने आया है कि ऐसे तीन कारण प्रमुख रूप से रहे जिनकी वजह से हमारी जीत की संभवानाओं को नुकसान पहुंचा है. इसमें सबसे पहला है कि मायावती का वोट बैंक व्यापक रूप से बीजेपी की तरफ चला गया. वहीं स्वामी प्रसाद मौर्या और गठबंधन के दूसरे नेता जिनके बारे में माना जा रहा था कि वो गैर यादव ओबीसी वोटों को जोड़ पाएंगे, वो भी ऐसा करने में नाकाम रहे. वहीं तीसरी वजह है, मुफ्त राशन योजना, जिसकी वजह से लोगों ने जाति और समुदाय से अलग हटकर वोट दिया और ये बात बीजेपी के लिए काम कर गई

जिला इकाइयां, गठबंधन और बड़े नाम सब फेल हो गए

बनारस में समाजवादी पार्टी के एक कार्यकर्ता ने याद करते हुए कहा कि कैसे रोहनिया विधानसभा सीट के वोटर कंफ्यूज हो रहे थे क्योंकि, इवीएम से साइकिल का निशान ही गायब था. समाजवादी पार्टी ने ये सीट गठबंधन में अपना दल (कमेरावादी)को दी थी.

बनारस में समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता अमन यादव ने कहा, SP के वोटर्स को अपना दल (के) के चुनाव चिन्ह लिफाफे पर वोट देने की बात समझाना मुश्किल हो रहा था. हमारे लिए संभावना अच्छी होती, अगर अपना दल (K) के उम्मीदवार को SP के निशान साइकिल पर ही चुनाव लड़ाया जाता, जैसे पल्लवी पटेल सिराथू से लड़ीं.

समाजवादी पार्टी और अपना दल (कमेरावादी) ने चुनाव के पहले गठबंधन किया था, लेकिन मीडिया रिपोर्ट्स में दोनों दलों के बीच टकराव की बात सामने आई. इस बात को तब और ज्यादा बल मिलने लगा, जब दोनों ही दलों के उम्मीदवारों ने बनारस की रोहनिया सीट से नामांकन भरा. हालांकि एसपी के उम्मीदवार का नामांकन रद्द कर दिया गया.

वहीं दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी का राष्ट्रीय लोक दल के साथ गठबंधन भी तब मुश्किल में आ गया, जब राष्ट्रीय लोक दल के कार्यकर्ताओं ने सार्वजनिक रूप से कुछ सीटों पर उम्मीदवारी को लेकर असंतोष जताया. इनमें मथुरा की मांट और मेरठ की सिवाल खास सीट भी शामिल रही.

गठबंधन और उम्मीदवारी को लेकर पार्टी के कमजोर फैसलों के अलावा जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं का ये भी मानना है कि पार्टी की स्थानीय इकाइयों ने इसे ग्राउंड पर मजबूत करने के लिए मुश्किल से ही कोई योगदान दिया.

एक उदाहण देते हुए बरेली के एक पार्टी कार्यकर्ता ने कहा, पार्टी को नेहा यादव के बूथ पर, बिथरी चैनपुर विधानसभा क्षेत्र में नुकसान उठाना पड़ा. नेहा, समाजवादी छात्र सभा की राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं. छात्र सभा में उन्हें ये राष्ट्रीय भूमिका तब मिली, जब गृह मंत्री अमित शाह को काला झंडा दिखाने के लिए वह सुर्खियों में आई थीं. पार्टी में किसी व्यक्ति को आगे बढ़ाने का ये आधार नहीं होना चाहिए. हमें ऐसे लोगों की जरूरत है, जो लोगों के बीच जाकर जमीनी स्तर पर काम कर रहे हों और हमें वोट दिला सकें.

लखनऊ के एक अन्य पार्टी कार्यकर्ता ने दावा किया कि अगस्त 2019 से ही जिला इकाइयां एक साल के लिए बंद रहीं. राज्य कार्यकारिणी की घोषणा मुश्किल से चुनाव के कुछ महीने पहले पिछले साल अक्टूबर में की गई.

कार्यकर्ता ने आगे कहा, एक महत्वपूर्ण चुनाव को आप इस तरह नहीं लड़ सकते. युद्ध में आप सेना को बिना जनरल के नहीं भेज सकते.

इस बीच पार्टी के अंदर के लोगों का मानना है कि एक दूसरा फैक्टर जिसने समाजवादी पार्टी को नुकसान पहुंचाया, वो है पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का अति आत्मविश्वास. बरेली के एक एसपी कार्यकर्ता ने कहा, भगवत सरन गंगवार अपने मुख्य प्रतिद्वंद्वी केसर सिंह के निधन के बाद बरेली के नवाबगंज से अपनी जीत को लेकर ज्यादा ही आश्वस्त हो गए. लेकिन उन्हें एमपी आर्या ने हरा दिया और वो पहले दो बार गंगवार से चुनाव हार चुके थे.

दूसरी तरफ, कुछ SP नेताओं को ये श्रेय दिया जा रहा है कि उन्होंने सही उदाहण पेश किया. अखिलेश यादव के करीबी अतुल प्रधान ने बीजेपी के अहम उम्मीदवार संगीत सोम को मेरठ की सरधना सीट से हराया है. इस जीत को ऐतिहासिक बताया जा रहा है, लेकिन स्थानीय SP कार्यकर्ताओं को इस बात का अंदाजा था कि अतुल प्रधान जीतेंगे.

समाजवादी पार्टी के एक वरिष्ठ नेता राजपाल सिंह ने कहा, पिछले 10 सालों से अतुल प्रधान लोगों के बीच में हैं और अच्छे-बुरे वक्त में उन्होंने जनता का साथ दिया है. वो चौबीसों घंटे लोगों के लिए उपलब्ध रहते हैं. कोरोना महामारी के समय में भी वो सक्रिय रूप से ऐसे लोगों के पास गए जिन्हें उस वक्त मदद की जरूरत थी. ये जीत उनकी कड़ी मेहनत का इनाम है.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: undefined

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT