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रायबरेली से राहुल गांधी-अमेठी से केएल शर्मा को टिकट, दोनों सीट का क्या है इतिहास?

Lok Sabha Election 2024: रायबरेली सीट से 2019 में सोनिया गांधी जीतकर संसद पहुंची थीं, वहीं अमेठी में राहुल गांधी हार गए थे.

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रायबरेली से राहुल गांधी-अमेठी से केएल शर्मा को टिकट, दोनों सीट का क्या है इतिहास?

(फोटो: कामरान अख्तर/क्विंट हिंदी)

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लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election) के लिए उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) की अमेठी और रायबरेली सीट पर कांग्रेस ने अपने उम्मीदवारों का ऐलान कर दिया है. कांग्रेस ने नामांकन की तारीख के आखिरी दिन सस्पेंस को खत्म करते हुए दोनों सीट पर अपने प्रत्याशियों के नाम की घोषणा की. पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी (Rahul Gandhi) रायबरेली (Raebareli) और किशोरी लाल शर्मा (Kishori Lal Sharma) अमेठी (Amethi) से चुनाव लड़ेंगे. इसके साथ ही, प्रियंका गांधी के रायबरेली या अमेठी से चुनाव लड़ने के कयासों पर भी पूर्ण विराम लग गया.

कौन हैं किशोरी लाल शर्मा?

जानकारी के अनुसार, किशोरी लाल शर्मा लंबे समय से गांधी परिवार के वफादार हैं और रायबरेली में सोनिया गांधी के निर्वाचन क्षेत्र के प्रतिनिधि रहे हैं. मिंट की रिपोर्ट के अनुसार, शर्मा सुबह 10 बजे पर्चा दाखिल करेंगे. नामांकन के दौरान शर्मा के साथ प्रियंका गांधी वाड्रा भी मौजूद रहेंगी.

वहीं, राहुल गांधी के दोपहर 12 बजे तक नामांकन पत्र दाखिल करने की उम्मीद है. उनके साथ उनकी मां सोनिया गांधी भी होंगी.

दोनों सीटों पर पांचवें चरण में यानी 20 मई को चुनाव होना है.

दोनों सीटों पर पांचवें चरण में यानी 20 मई को चुनाव होना है.

किसके सामने कौन?

अमेठी में किशोरी लाल शर्मा के सामने बीजेपी नेता और केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी और बीएसपी से रवि प्रकाश मौर्य हैं, जबकि रायबरेली में राहुल गांधी के सामने यूपी सरकार में मंत्री दिनेश प्रताप सिंह और बीएसपी से ठाकुर प्रसाद यादव मैदान में हैं. यूपी में कांग्रेस के साथ गठबंधन के तहत समाजवादी पार्टी ने यहां पर कोई प्रत्याशी नहीं उतारा है.

गौरतलब है कि समाजवादी पार्टी INDIA गठबंधन के तहत उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही है. देश की सबसे पुरानी पार्टी, कांग्रेस उत्तर प्रदेश की 80 में से 17 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, जबकि एसपी 62 और टीएमसी एक सीट पर मैदान में है.

राहुल गांधी को अपने गढ़ में मिली थी हार

राहुल गांधी को अमेठी से 2019 के चुनाव में बीजेपी नेता स्मृति ईरानी से करारी हार का सामना करना पड़ा था. यह हार करारी इसलिए भी थी क्योंकि यह सीट परिवार का गढ़ रहा है. राहुल केरल के वायनाड से भी चुनाव लड़े थे और वहां मिली जीत के बाद वो संसद पहुंचे थे.

वैसे तो अमेठी को कांग्रेस और गांधी परिवार का गढ़ माना जाता रहा है, लेकिन आजादी के बाद पहले चुनाव से ही यह चर्चा में रहा है. तब इसे सुल्तानपुर दक्षिण के नाम से जाना जाता था. बालकृष्ण विश्वनाथ केशकर इस सीट से पहले सांसद बने. बाद में 1957 में यह सीट मुसाफिर खाना लोकसभा सीट का हिस्सा बन गई और विश्वनाथ केशकर फिर वहां से जीते.

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1980 के चुनावों में पूर्व प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी ने अमेठी सीट से जीत हासिल की. हालांकि, उसी साल 23 जून को एक विमान दुर्घटना में संजय गांधी की मृत्यु के बाद यह सीट इंदिरा गांधी के दूसरे बेटे और पूर्व प्रधान मंत्री राजीव गांधी ने संभाली थी.

1991 में लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (एलटीटीई) द्वारा राजीव गांधी की हत्या के बाद, उनकी पत्नी सोनिया गांधी ने 1999 में यहां से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. 2004 में, उनके बेटे राहुल गांधी अमेठी से मैदान में उतरे. वह 2019 तक इस सीट से सांसद रहे, जब वह स्मृति ईरानी से हार गए थे.

कुल मिलाकर कांग्रेस ने इस सीट पर 16 बार जीत हासिल की है.

रायबरेली सोनिया की राजनीतिक विरासत

आजादी के बाद से रायबरेली निर्वाचन क्षेत्र कांग्रेस का गढ़ रहा है. पूर्व पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी ने यहां से लगातार पांच बार जीत हासिल की है. लेकिन इस बार उन्होंने चुनाव नहीं लड़ने की घोषणा की है.

1951-52 में हुए पहले लोकसभा चुनाव में यहां से सोनिया गांधी के ससुर फिरोज गांधी जीते थे. यहां हुए कुल 20 लोकसभा चुनावों और उपचुनावों में से 17 में कांग्रेस जीती है.

1977 में आपातकाल हटने के बाद इंदिरा गांधी को यहां से जनता दल के उम्मीदवार से हार का सामना करना पड़ा. इसके अलावा 1990 के दशक में बीजेपी के अशोक सिंह भी यहां से दो बार जीते.

खास बात है कि 1962 और 1999 को छोड़कर, नेहरू-गांधी परिवार का कोई न कोई सदस्य हमेशा इस सीट से चुनाव लड़ता रहा है.

इस बार बीजेपी ने रायबरेली सीट से दिनेश प्रताप सिंह को मैदान में उतारा है. योगी सरकार में मंत्री दिनेश प्रताप ने 2019 में सोनिया गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ा था. वह 1.6 लाख वोटों से चुनाव हार गए थे. 6 साल पहले यानी 2018 में दिनेश प्रताप कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए थे.

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