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27 मामले, 1 नोटिस, कोई कार्रवाई नहीं: PM मोदी के खिलाफ शिकायतों पर EC ने क्या कदम उठाया?

25 अप्रैल को, चुनाव आयोग ने पीएम मोदी का नाम लिए बिना "स्टार प्रचारकों" द्वारा एमसीसी उल्लंघन पर बीजेपी को नोटिस जारी किया.

हिमांशी दहिया
पॉलिटिक्स
Published:
<div class="paragraphs"><p>27 मामले, 1 नोटिस, कोई कार्रवाई नहीं: PM मोदी के खिलाफ शिकायतों पर EC ने क्या कदम उठाया?</p></div>
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27 मामले, 1 नोटिस, कोई कार्रवाई नहीं: PM मोदी के खिलाफ शिकायतों पर EC ने क्या कदम उठाया?

फोटो: क्विंट हिंदी)

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“मैंने आपको (चुनाव आयोग) 24 अप्रैल को चेतावनी दी थी कि आप अपना कर्तव्य ठीक से नहीं निभा रहे हैं. मैं चुनाव आयोग पर पक्षपातपूर्ण और पक्षपाती होने का आरोप लगाता हूं”- 8 मई 2014 को BJP के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी.

2019 के बाद से विपक्षी दलों ने आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन के आरोप लगाते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ (Narendra Modi) भारत के चुनाव आयोग (ECI) में कम से कम 27 शिकायतें दर्ज कराई हैं.

हालांकि, चुनाव आयोग ने अभी तक इनमें से किसी भी मामले में ठोस कार्रवाई नहीं की है. द क्विंट ने इन शिकायतों की कॉपी देखी है, जिनमें नफरत फैलाने वाले भाषण, वोट मांगने के लिए सशस्त्र बलों का इस्तेमाल, धर्म के नाम पर वोट मांगने और प्रधानमंत्री की चुनावी रैलियों के लिए भाषण तैयार करने में सरकारी मंत्रालयों का इस्तेमाल करने के आरोप शामिल हैं.

चुनाव आयोग ने पहली बार 25 अप्रैल को भारतीय जनता पार्टी (BJP) के अध्यक्ष जेपी नड्डा को उसके “स्टार प्रचारक” के भाषणों पर नोटिस जारी किया है, जो आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन के कारण हो सकता है.

नोटिस में प्रधानमंत्री का नाम लिए बिना चुनाव आयोग की कार्रवाई के आधार के तौर पर कांग्रेस, CPI(M), और CPI(ML) लिबरेशन की शिकायतों का जिक्र किया गया है.

प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ राजनीतिक दलों की इन शिकायतों में आरोप लगाया गया है कि उन्होंने एक रैली में सांप्रदायिक भाषण में दावा किया कि अगर कांग्रेस सत्ता में आई तो नागरिकों की संपत्ति को “घुसपैठियों” में बांट देगी.

प्रधानमंत्री ने रविवार, 21 अप्रैल को राजस्थान के बांसवाड़ा जिले में कहा था, “जब कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार सत्ता में थी, तो उन्होंने कहा था कि देश की संपत्ति पर पहला हक मुसलमानों का है. इसका मतलब है कि अगर कांग्रेस सत्ता में आई तो लोगों की संपत्ति को ज्यादा बच्चे वालों में बांट देगी और जो घुसपैठिए हैं. क्या यह आपको स्वीकार है?”

उन्होंने यह भी कहा, “कांग्रेस के घोषणापत्र में कहा गया है कि वे माताओं-बहनों के सोने का हिसाब लेंगे, उसकी जानकारी लेंगे और फिर उसे बांट देंगे. मनमोहन सिंह की सरकार ने कहा था कि संपत्ति पर पहला हक मुसलमानों का है. भाइयों और बहनों, ये अर्बन नक्सल वाली सोच के लोग यहां तक कि आपका मंगलसूत्र भी बचने नहीं देंगे.”

आदर्श आचार संहिता (MCC) की धारा I (1) में कहा गया है: कोई भी पार्टी या उम्मीदवार किसी भी ऐसी गतिविधि में शामिल नहीं होगा, जो मौजूदा मतभेदों को बढ़ा सकती है या आपसी नफरत पैदा कर सकती है या विभिन्न धार्मिक या भाषाई जातियों और समुदायों के बीच तनाव पैदा कर सकती है.

चुनाव आयोग ने BJP से 29 अप्रैल तक नोटिस का जवाब देने को कहा है. बांसवाड़ा में, जहां प्रधानमंत्री ने भाषण दिया था, वहां 26 अप्रैल को दूसरे चरण के मतदान के लिए वोट डाले गए.

वोट मांगने के लिए सांप्रदायिक भाषण, सशस्त्र बलों के इस्तेमाल के आरोप

क्विंट ने 2019 से विपक्षी दलों द्वारा प्रधानमंत्री के खिलाफ दर्ज कराई कम से कम 27 शिकायतों का विश्लेषण किया.

  • इनमें से 12 में सांप्रदायिक भाषणों के आरोप हैं

  • वोट मांगने के लिए सशस्त्र बलों का सहारा लेने के 8

  • एक राजनीतिक विज्ञापन में सरकारी योजनाओं का इस्तेमाल करने का

  • एक धर्म के आधार पर वोट मांगने का

  • चुनावी भाषण तैयार करने के लिए सरकारी मंत्रालयों का इस्तेमाल का एक

  • चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री के हेलीकॉप्टर में संदिग्ध काले बक्से को लेकर दो

  • चुनाव प्रचार में नाबालिगों का इस्तेमाल का एक

  • और एक ‘साइलेंस पीरियड’ के उल्लंघन के लिए जब मतदान से पहले प्रचार पर रोक लग जाती है.

विपक्षी दलों का कहना है चुनाव आयोग ने इनमें से किसी भी शिकायत पर कार्रवाई नहीं की.

CPI(M) महासचिव सीताराम येचुरी ने 27 मार्च 2019 को आदर्श आचार संहिता लागू हो जाने के बाद राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एक घोषणा को लेकर तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त को लिखा था.

प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन (DRDO) के वैज्ञानिकों द्वारा एक एंटी-सेटेलाइट मिसाइल के सफल परीक्षण का जिक्र किया था. येचुरी ने अपनी शिकायत में लिखा, “देश और दुनिया के लिए इस तरह के मिशन की घोषणा आमतौर पर DRDO के संबंधित वैज्ञानिक अधिकारियों द्वारा की जानी चाहिए. इसके बजाय भारतीय प्रधानमंत्री ने यह घोषणा करने के लिए राष्ट्र को संबोधित किया है.”

उन्होंने कहा, “यह घोषणा जारी चुनाव प्रचार के बीच की गई है, जिसमें प्रधानमंत्री खुद उम्मीदवार हैं. यह साफ-साफ आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन है.”

शिकायत के जवाब में, चुनाव आयोग ने एक समिति का गठन किया, जिसने दूरदर्शन और ऑल इंडिया रेडियो के आला अधिकारियों के साथ बैठकों के आधार पर निष्कर्ष निकाला कि “आदर्श आचार संहिता के पैरा (IV) और भाग (VII) के तहत सरकारी मीडिया संस्थान के दुरुपयोग के प्रावधान मौजूदा मामले में लागू नहीं होते हैं.”

चुनाव आयोग जिस प्रावधान का जिक्र कर रहा था, उसमें कहा गया है: चुनाव के दौरान पार्टी के पक्ष में अखबारों और दूसरे मीडिया में सरकारी खर्च पर विज्ञापन जारी करने और सरकारी मीडिया संस्थान में राजनीतिक समाचारों में पक्षपातपूर्ण कवरेज और उपलब्धियों के प्रचार से सत्तारूढ़ दल को सावधानी से बचना चाहिए.

चुनाव आयोग के शिकायत को खारिज करने के जवाब में येचुरी ने दावा किया कि शिकायत को “सरकारी मीडिया के दुरुपयोग” के मुद्दे तक सीमित करना शिकायत की एक सीमित व्याख्या है.

येचुरी ने लिखा, “बड़ा मुद्दा यह है कि चुनाव में एक उम्मीदवार के रूप में प्रधानमंत्री चुनाव प्रचार के दौरान हमारे वैज्ञानिकों के हासिल की उपलब्धि को बताने के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय का इस्तेमाल कर रहे हैं. यह चुनावी मकसद को आगे बढ़ाने के लिए कार्यालय का साफ दुरुपयोग है.”

उन्होंने कहा, “भाषण के फौरन बाद प्रधानमंत्री दावा करते हैं कि वह न केवल जमीन और हवा में बल्कि अंतरिक्ष में भी चौकीदार हैं.”

चुनाव आयोग की ओर से इसके बाद कोई प्रतिक्रिया नहीं आई.

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चुनाव आयोग और मोदी का दौर 

चुनाव आयोग एक संवैधानिक संस्था है, जो भारत में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए जिम्मेदार है. इसकी अगुवाई मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) करते है और इसमें दो और चुनाव आयुक्त शामिल होते हैं. महानिदेशक, प्रमुख सचिव और सचिव उनकी मदद करते हैं.

1950 में शुरुआत से भारत का चुनाव आयोग एक सदस्यीय संस्था था, जिसमें सिर्फ मुख्य चुनाव आयुक्त होता था. चुनाव आयुक्त संशोधन अधिनियम, 1989 से आयोग को दो और चुनाव आयुक्तों, जिन्हें 16 अक्टूबर 1989 को पहली बार आयोग में नियुक्त किया गया था, के साथ एक बहु-सदस्यीय निकाय बना दिया. 1 जनवरी 1990 को, चुनाव आयुक्तों के पद फिर से खत्म कर दिए गए. फिर 1 अक्टूबर 1993 को चुनाव आयोग को दोबारा फिर से तीन सदस्यीय बना दिया गया.

पिछले साल दिसंबर में संसद ने मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त अधिनियम, 2023 पारित किया. अधिनियम की धारा 7 के अनुसार राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की चयन समिति की सिफारिश पर CEC और EC की नियुक्ति करेंगे. प्रधानमंत्री इस चयन समिति के अध्यक्ष होंगे, प्रधानमंत्री द्वारा नामित एक केंद्रीय कैबिनेट मंत्री और विपक्ष के नेता इसके सदस्य होंगे.

यह कानून सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद पारित किया गया, जब उसने कहा कि CEC और ECs का चयन तीन सदस्यीय समिति द्वारा किया जाएगा, जिसमें प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता (या संसद में सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता) और चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) शामिल होंगे.

इससे पहले CEC और EC की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती थी, जैसा कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 324(2) में लिखा है, “संसद द्वारा इस संबंध में बनाए गए किसी भी कानून के अधीन, राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाएगा.”

विपक्षी नेताओं पर कार्रवाई

महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और शिवसेना (UBT) प्रमुख उद्धव ठाकरे ने 21 अप्रैल को कहा कि उन्हें अपनी पार्टी के नए गीत से “जय भवानी” और “हिंदू” शब्द हटाने के लिए चुनाव आयोग (EC) का नोटिस मिला है.

आदेश का पालन करने से इनकार करते हुए उन्होंने कहा, “अगर चुनाव आयोग हमारे खिलाफ कार्रवाई करता है, तो उन्हें हमें बताना होगा कि जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कर्नाटक विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार करते हुए लोगों से जय बजरंग बली बोलने और ईवीएम का बटन दबाने को कहा था तो उसने क्या किया? अमित शाह ने लोगों से कहा था कि अयोध्या में मुफ्त में रामलला के दर्शन करने के लिए BJP को वोट दें.”

कांग्रेस पार्टी ने 4 मई 2023 को कर्नाटक में चुनाव प्रचार के दौरान हनुमान का नाम लेने के लिए प्रधानमंत्री के खिलाफ आधिकारिक रूप से शिकायत भी दर्ज कराई थी. पार्टी ने अपनी शिकायत में कहा, “प्रधानमंत्री ने चुनावी रैलियों में अपने संबोधन में सिर्फ BJP को वोट देने की अपील करते हुए चुनावी मुकाबले में कांग्रेस पार्टी को हिंदू-विरोधी घोषित करते हुए ‘जय बजरंगबली’ का नाम लेकर लोगों से कांग्रेस को वोट न देने का आग्रह किया.’’

इस मामले में चुनाव आयोग ने कोई कार्रवाई नहीं की.

चुनाव आयोग ने नवंबर 2023 में कांग्रेस नेता राहुल गांधी को प्रधानमंत्री मोदी पर उनके “बेहद अमीरों के लिए कर्ज माफी” “पनौती”, और “जेबकतरे” वाले तंज को लेकर कारण बताओ नोटिस जारी किया था. चुनाव आयोग ने नोटिस में राहुल गांधी को याद दिलाया कि आदर्श आचार संहिता नेताओं को राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ झूठे आरोप लगाने से मना करती है.

उस साल की शुरुआत में, प्रधानमंत्री मोदी ने कर्नाटक चुनाव में अपने घोषणापत्र में दक्षिणपंथी संगठन बजरंग दल पर पाबंदी लगाने का वादा करने के लिए कांग्रेस पर निशाना साधा था और पाबंदी की तुलना बजरंगबली या भगवान हनुमान को “ताले में बंद करने” से की थी. यह वह भाषण है, जिसका जिक्र उद्धव ठाकरे ने चुनाव आयोग के नोटिस पर अमल करने से इनकार करते समय किया था.

प्रधानमंत्री को ‘अपमानजनक' बताने वाले सोशल मीडिया पोस्ट पर आम आदमी पार्टी (AAP) के प्रमुख अरविंद केजरीवाल को भी नोटिस जारी किया गया. पार्टी के आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर साझा किए गए पोस्ट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उद्योगपति गौतम अडानी साथ दिखाई दे रहे थे.

चुनाव आयोग ने 2019 में वरिष्ठ कांग्रेस नेता नवजोत सिंह सिद्धू द्वारा की गई टिप्पणियों के लिए, जिन्हें आदर्श आचार संहिता का माना गया था, उन पर 72 घंटे के लिए प्रचार करने पर पाबंदी लगा दी थी.

पंजाब के इस नेता ने बिहार के कटिहार में एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए कहा था, “मैं आप मुस्लिम भाइयों को चेतावनी देता हूं कि वे ओवैसी (AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी) जैसे लोगों को लाकर आपको बांट रहे हैं. वे यहां एक नई पार्टी खड़ी कर रहे हैं, वे बांटना और जीतना चाहते हैं.”

‘आदर्श आचार संहिता एक नैतिक सेंसर है’

चुनाव आयोग के अनुसार वह, 16 अप्रैल तक, “राजनीतिक दलों द्वारा आचार संहिता के पालन से आमतौर पर संतुष्ट था.”

आयोग ने एक प्रेस रिलीज में बताया कि उसे तमाम राजनीतिक दलों से तकरीबन 200 शिकायतें मिलीं, जिनमें से 169 मामलों में कार्रवाई की गई. प्रेस रिलीज में बताया गया है, “शिकायतों का विवरण इस तरह है: BJP से कुल 51 शिकायतें मिलीं, जिनमें से 38 मामलों में कार्रवाई की गई है; कांग्रेस से 59 शिकायतें मिलीं, जिनमें से 51 मामलों में कार्रवाई की गई; दूसरे दलों से 90 शिकायतें मिलीं, जिनमें से 80 मामलों में कार्रवाई की गई है.”

2024 के लोकसभा चुनावों की घोषणा के लिए बुलाई गई चुनाव आयोग की प्रेस कॉन्फ्रेंस में नेशनल हेराल्ड की पत्रकार एश्लिन मैथ्यू ने चुनाव आयोग से BJP और विपक्षी दलों के सदस्यों के खिलाफ शिकायतों से निपटने के दृष्टिकोण में अंतर के बारे में पूछा था.

मैथ्यू ने सवाल किया,“…आपने कहा है कि चुनाव आयोग नफरत फैलाने वाले भाषण के खिलाफ कार्रवाई सुनिश्चित करेगा और आचार संहिता के उल्लंघन के खिलाफ संतुलित नजरिया अपनाएगा, लेकिन प्रधानमंत्री और अमित शाह (गृह मंत्री) के खिलाफ कई शिकायतें आई हैं, लेकिन चुनाव आयोग ने कोई कार्रवाई नहीं की. मगर आपने विपक्षी नेताओं के खिलाफ कार्रवाई की है. तो अगर कोई संतुलित नजरिया है तो भी क्या सत्तारूढ़ दल के मुकाबले विपक्षी नेताओं को ज्यादा नोटिस मिलेगा?”

मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने जवाब में कहा, “अगर आप पिछले 10-11 चुनावों में हमें मिली शिकायतों को देखें. उसके बाद हमने जो नोटिस जारी किए हैं, उन्हें देखें. पार्टियों द्वारा हमारे नोटिस का जवाब देने के बाद भी, आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन, ऐसा नहीं है कि हमने हमेशा उन मामलों में कार्रवाई की है. आदर्श आचार संहिता एक नैतिक सेंसर है. अगर किसी के खिलाफ कोई मामला आता है, तो हम चुप नहीं बैठेंगे, चाहे वह उम्मीदवार कितना भी बड़ा स्टार प्रचारक क्यों न हो है, हम चुप नहीं बैठेंगे.”

(द क्विंट ने इस लेख पर टिप्पणी के लिए चुनाव आयोग से संपर्क किया है. जब भी उनका जवाब आएगा, इसे अपडेट किया जाएगा.)

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