advertisement
पंजाब पुलिस ने शनिवार, 18 मार्च को 'वारिस पंजाब दे' पर बड़ी कार्रवाई की है. पंजाब पुलिस का दावा है कि उसने इस अलगाववादी समूह के 78 सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया है लेकिन प्रमुख अमृतपाल सिंह और उसके कई साथी (Amritpal Singh) अभी भी गिरफ्त से बाहर हैं.
हालांकि इससे पहले पंजाब पुलिस के सूत्रों ने द क्विंट को बताया था कि उन्होंने अमृतपाल सिंह को पंजाब के जालंधर जिले के नकोदर के पास काफी देर तक पीछा करने के बाद पकड़ा था. पुलिस सूत्रों ने यह भी कहा कि उसे हिरासत में लिया गया है और उसे और उसके साथियों को एक अज्ञात स्थान पर ले जाया गया है.
अब पंजाब पुलिस ने बयान जारी कर दावा किया है कि अमृतपाल सिंह उनकी पकड़ से बाहर है.
साथ ही पंजाब पुलिस ने कहा है कि
अब सवाल है कि अगर अमृतपाल सिंह पकड़ा जाता है तो आगे क्या होगा? इसके तीन पहलू हैं जिन पर हमें गौर करने की जरूरत है.
अब तक, एकमात्र मामला जिसमें पंजाब पुलिस की नजर अमृतपाल सिंह पर है, वह अजनाला के पास चमकौर साहिब निवासी वरिंदर सिंह का कथित अपहरण है. इस मामले का भी अंत पंजाब पुलिस के लिए फजीहत के रूप में हुआ. पहले पुलिस ने अमृतपाल के सहयोगी लवप्रीत सिंह को हिरासत में ले लिया, जिसपर 'वारिस पंजाब दे' के प्रमुख अमृतपाल ने विरोध का आह्वान किया. इसकी वजह से उसके समर्थकों और पुलिस के बीच अजनाला पुलिस स्टेशन के बाहर झड़प हुई. बाद में पुलिस ने लवप्रीत को यह कहकर छोड़ दिया कि उसके खिलाफ कोई सबूत नहीं है.
हालांकि वरिंदर सिंह की शिकायत में अमृतपाल का भी नाम था, लेकिन ऐसा नहीं लगता कि 'वारिस पंजाब दे' प्रमुख के खिलाफ पंजाब पुलिस का यह मुख्य मामला होगा.
यह भी संभव है कि 19-20 मार्च को अमृतसर में होने वाली जी-20 प्रतिनिधियों की बैठक से पहले किसी तरह की गड़बड़ी को रोकने के लिए उसे हिरासत में लिया गया हो.
पंजाब सरकार ने 19 मार्च दोपहर 12 बजे तक मोबाइल इंटरनेट पर रोक लगा दी है. इस स्टोरी को लिखे जाने तक पश्चिमी पंजाब के श्री मुक्तसर साहिब और फाजिल्का जिलों में धारा 144 लागू कर दी गई है. कई अन्य जिलों में पुलिस और अर्धसैनिक बलों की भारी तैनाती देखी जा रही है.
अमृतपाल सिंह के कोर समर्थकों की असली लामबंदी अभी बाकी है. अजनाला की घटना ने साबित कर दिया कि अमृतपाल सिंह कुछ ही समय में बड़ी भीड़ जुटाने की क्षमता रखता है.
अमृतपाल सिंह के समर्थकों की कमी नहीं है. कुछ लोगों ने खालिस्तान के लिए उसकी स्पष्ट वकालत के लिए सराहना की है. और उनमें से कई जो अमृतपाल के इस विचार से असहमत हैं, वे भी ड्रग्स की लत के खिलाफ और उनके अमृत प्रचार के काम को स्वीकार करते हैं. अमृत प्रचार यानी सिखों को दीक्षा लेने और सिख सिद्धांतों के अनुरूप जीने के लिए प्रेरित करना.
अमृतपाल सिंह ने स्वयं सिख धार्मिक और राजनीतिक क्षेत्र में एक शून्य को भरा है. सवाल है कि उसकी अनुपस्थिति में इस रिक्तता को कौन भरेगा? क्या यह 'वारिस पंजाब दे' के भीतर से कोई होगा या कोई ऐसा जो उसके कट्टर दृष्टिकोण का समर्थन करता है? या जिम्मेदारी पंथ समर्थक नेताओं पर आएगी जो अधिक वृद्धिशील दृष्टिकोण रखते हैं?
यह इस बात पर भी निर्भर करेगा कि अमृतपाल कितने समय तक हिरासत में रहता है.
अमृतपाल सिंह और वारिस पंजाब दे के खिलाफ कार्रवाई को लेकर आम आदमी पार्टी की अगुवाई वाली पंजाब सरकार और बीजेपी की अगुवाई वाली केंद्र सरकार के बीच श्रेय लेने की लड़ाई होने की संभावना है.
दोनों खुद को उस पार्टी के रूप में पेश करना चाहते हैं जिसने पंजाब में खालिस्तान समर्थक तत्वों से लड़ाई लड़ी है.
अब, यह सच हो सकता है या यह ठीक उलटा भी हो सकता है.
ऑपरेशन लगभग पूरी तरह से पंजाब पुलिस द्वारा पूरा किया गया. इस कार्रवाई का समय केवल एक प्रशासनिक कॉल नहीं है. यह पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान का राजनीतिक फैसला था, जिनके पास पंजाब में गृह मंत्रालय भी है.
हम जानते हैं कि पंजाब में व्यवस्था बनाए रखने में पुलिस की मदद के लिए केंद्रीय अर्धसैनिक बलों का इस्तेमाल किया जा रहा है. यह भी काफी संभावना है कि केंद्र किसी तरह से लूप में रहा होगा, विशेष रूप से यह देखते हुए कि यह अमृतसर में जी-20 की बैठक की पूर्व संध्या पर हुआ है.
यहां से आगे जो भी हो, हिरासत में लिए जाने की करवाई का श्रेय या दोष काफी हद तक पंजाब के मुख्यमंत्री को ही जाएगा.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)
Published: undefined