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महाराष्ट्र : 356 की कहानी,जिसके आधार पर लगा राष्ट्रपति शासन

देश में अनुच्छेद 356 का इस्तेमाल कर राष्ट्रपति शासन लगाने के कई विवादित फैसले हो चुके हैं

दीपक के मंडल
पॉलिटिक्स
Published:
महाराष्ट्र में राज्यपाल की सिफारिश पर लगा राष्ट्रपति शासन 
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महाराष्ट्र में राज्यपाल की सिफारिश पर लगा राष्ट्रपति शासन 
(फोटो altered by the quint)

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महाराष्ट्र में पिछले कुछ दिनों से जारी राजनीतिक अनिश्चतता के बीच राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया है. राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने अपनी सिफारिश में कहा था कि राज्य में कोई भी दल सरकार बनाने की स्थिति में नहीं है लिहाजा राष्ट्रपति शासन लगा दिया जाए.

भारतीय संविधान में अनुच्छेद 356 का इस्तेमाल कर राष्ट्रपति शासन लगाया जाता है. अगर राष्ट्रपति को लगता है कि कोई राज्य सरकार संविधान की मर्यादा के मुताबिक काम नहीं कर रही है या फिर वहां सरकार गठन में कोई दिक्कत आ रही है तो राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है. राष्ट्रपति शासन के तहत सत्ता की कमान राज्यपाल के हाथ में होती है. राज्यपाल सदन को छह महीने तक निलंबित भी रख सकते हैं. अगर छह महीने बाद भी कोई पार्टी बहुमत साबित नहीं कर पाई तो दोबारा चुनाव की सिफारिश की जाती है. राज्य में राष्ट्रपति शासन इन हालात में लगाया जा सकता है.

  • जब राज्य में संवैधानिक मशीनरी पूरी तरह फेल हो जाए
  • चुनाव के बाद किसी पार्टी या अलायंस को बहुमत न मिले
  • सबसे बड़ी पार्टी सरकार बनाने से इनकार कर दे
  • सत्ताधारी गठबंधन टूट जाए और सरकार बहुमत खो दे
  • सरकार राज्य की कानून व्यवस्था कायम करने में फेल हो जाए
  • अपरिहार्य वजहों से वक्त पर चुनाव न हो पाए
देश में अनुच्छेद 356 का इस्तेमाल कर राष्ट्रपति शासन लगाने के फैसले विवादित रहे हैं. अमूमन ऐसी स्थिति तब आती है,जब केंद्र और राज्य में अलग-अलग सरकार हो. लेकिन महाराष्ट्र में बीजेपी सरकार में ही राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया. ऐसा राज्य में किसी भी पार्टी की ओर से सरकार न बनने की स्थिति को देखते हुए किया गया.

राष्ट्रपति शासन लगाने के इन फैसलों से हुई थी मोदी सरकार की किरकिरी

मोदी सरकार ने पहले कार्यकाल (2014 से 2019) में दो बार (अरुणाचल प्रदेश और उत्‍तराखंड) अनुच्छेद 356 का इस्तेमाल कर राज्य सरकारों को बर्खास्त किया था. पहले अरुणाचल प्रदेश और फिर उत्तराखंड में. लेकिन दोनों मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया था. मार्च 2016 में विजय बहुगुणा के नेतृत्‍व में कांग्रेस के नौ विधायकों के बागी होने के बाद उत्‍तराखंड में हरीश रावत सरकार अल्पमत में आ गई थी.

रावत को बहुमत साबित करने के लिए 28 मार्च तक का वक्‍त दिया गया था लेकिन इससे पहले ही राज्यपाल की रिपोर्ट पर प्रणब मुखर्जी ने राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू की सिफारिश मंजूर कर ली. इस फैसले के खिलाफ उत्तराखंड सरकार हाई कोर्ट चली गई. अदालत ने राष्ट्रपति शासन लागू करने के केंद्र को फैसले को खारिज कर दिया. हाई कोर्ट के फैसले को केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र के खिलाफ फैसला दिया. शक्ति परीक्षण के बाद हरीश रावत सरकार दोबारा बहाल हो गई. इस मामले में मोदी सरकार की खासी किरकिरी हुई थी.

पहली बार कब हुआ था अनुच्छेद 356 का इस्तेमाल

इस अनुच्छेद का पहली बार 31 जुलाई 1957 में प्रयोग किया गया था, जब लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई केरल की कम्यूनिस्ट सरकार बर्खास्त की गई थी.

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बाबरी विध्वंस के बाद लगाया था यूपी में राष्ट्रपति शासन

यूपी में 6 दिसबंर 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद को गिराए जाने के बाद कल्याण सिंह सरकार को बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया था. मध्य प्रदेश में सुंदर लाल पटवा, राजस्थान की भैरोसिंह शेखावत और हिमाचल प्रदेश में शांता कुमार की सरकार को बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन लगाया जा चुका है.

राज्यपाल से यह उम्मीद की जाती है कि वह पूर्वाग्रहों और अनुमानों के आधार पर राष्ट्रपति शासन लागू करने की सिफारिश नहीं करेगा. वह राज्य में सरकार बनाने के लिए सबसे बड़े दल या गठबंधन को सरकार बनाने का पूरा मौका दे. लेकिन महाराष्ट्र के मामले में राज्‍यपाल की सिफारिश के खिलाफ शिवसेना सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई है. . शिवसेना का कहना है कि राज्‍यपाल ने पार्टी को सिर्फ 24 घंटे का समय दिया. शिवसेना का कहना है कि राज्‍यपाल ये सब बीजेपी के इशारे पर किया.

कोश्यारी का फैसला कितना सही?

दूसरी ओर कहा जा रहा है कि राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश करने का राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी का फैसला सही था. दरअसल राज्य में चुनाव नतीजों के एक पखवाड़ा बाद भी राजनीतिक गतिरोध बरकरार था. बीजेपी के इनकार करने के बाद शिवसेना ने सरकार बनाने का दावा किया लेकिन इसके बावजूद वह समर्थन पत्र नहीं दे सकी‬ और ज्यादा समय मांगा. तथा और एनसीपी ने भी और समय मांगा‬. इस बीच विधायकों की खरीद-फरोख्त के आरोप लगने लगे. जबकि कांग्रेस भी असमंजस में फंसी रही और कई पहल नहीं कर सकी.

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