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राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) ने शुक्रवार 10 फरवरी को सीएम के तौर पर अपने वर्तमान कार्यकाल का आखिरी बजट (Budget) प्रस्तुत किया. गहलोत को उम्मीद है कि उन्होंने जिस दृढ़ता के साथ बजट में सामाजिक सुरक्षा (social security) पर फोकस किया है, उससे प्रदेश के तीन दशक पुराने पैटर्न (बीजेपी और कांग्रेस के बीच सत्ता बदलने की परंपरा) को तोड़ने में मदद मिलेगी.
गहलोत ने तीन अलग-अलग कार्यकालों में पंद्रह वर्षों तक राजस्थान के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया है. मोहन लाल सुखाड़िया के बाद गहलोत राजस्थान के दूसरे ऐसे सीएम हैं जिन्होंने सबसे लंबे समय तक सत्ता चलाई है, सुखाड़िया 16 वर्षों तक प्रदेश के मुखिया थे.
लेकिन गहलोत अपने अब तक के सबसे बड़े दांव का सामना कर रहे हैं. पिछले साल कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव के दौरान गहलोत समर्थक विधायकों और पार्टी आलाकमान के बीच हुई खींचतान को देखते हुए कांग्रेस पार्टी के अंदर एक मत यह है कि अगर पार्टी इस बार राजस्थान में हारती है तो वह गहलोत को फिर से प्रोजेक्ट नहीं कर सकती है.
ऐसे में, गहलोत के पास एकमात्र रास्ता यह बचता है कि वे किसी भी तरीके से इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज करें.
लेकिन क्या अशोक गहलोत ने इसके लिए इस बजट में पर्याप्त इंतजाम किया है?
गहलोत के लिए क्या काम कर रहा है और क्या नहीं?
विधानसभा चुनाव के नजदीक आते ही राजस्थान की राजनीति किस दिशा में जा रही है?
इस लेख में हम ऐसे ही कुछ सवालों के जवाब देने का प्रयास करेंगे.
अशोक गहलोत द्वारा बजट में की गई कुछ प्रमुख घोषणाएं इस प्रकार हैं :
चिरंजीवी योजना के तहत प्रति परिवार प्रति वर्ष मेडिकल कवर 10 लाख रुपये से बढ़ाकर 25 लाख रुपये किया गया.
उज्ज्वला योजना के उपभोक्ताओं को 500 रुपये में एलपीजी सिलेंडर मिलेगा, इससे 76 लाख परिवार लाभान्वित होंगे.
जिन घरेलू उपभोक्ताओं को पहले प्रति माह 50 यूनिट मुफ्त बिजली मिलती थी, अब उन्हें 100 यूनिट प्रति माह फ्री बिजली बिजली दी जाएगी.
सरकार द्वारा संचालित विभिन्न बोर्डों, निगमों, अकादमियों और विश्वविद्यालयों के कार्मियों के बीच पुरानी पेंशन योजना लागू की जाएगी.
प्रतियोगी परीक्षाओं में शामिल होने के लिए वन टाइम रजिस्ट्रेशन (एक बार पंजीकरण) कराना होगा; इसके बाद हर प्रतियोगी परीक्षा के लिए अलग से फीस नहीं चुकानी होगी.
19 हजार करोड़ रुपये का महंगाई राहत पैकेज.
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के दायरे में आने वाले लगभग एक करोड़ परिवारों को मुफ्त राशन के साथ मुख्यमंत्री अन्नपूर्णा पैकेट हर महीने मुफ्त दिया जाएगा. जिसमें एक किलोग्राम दाल, चीनी, नमक और एक लीटर खाद्य तेल शामिल होगा.
पशुधन को कवर करने के लिए मुख्यमंत्री कामधेनु बीमा योजना शुरु की जाएगी.
एक हजार और महात्मा गांधी इंग्लिश मीडियम स्कूल खोले जाएंगे.
न्यूनतम पेंशन 1000 रुपये होगी.
कोई नया कर प्रस्तुत नहीं किया गया.
इसमें कोई संदेह नहीं कि गहलोत का बजट स्पष्ट रूप से सामाजिक सुरक्षा पर केंद्रित है. लेकिन उनके आलोचकों का कहना है कि बजट में की गई कई घोषणाएं ऐसी है जो नई नहीं हैं बल्कि मौजूदा योजनाओं का विस्तार हैं.
उदाहरण के तौर पर, चिरंजीवी योजना के तहत मेडिकल कवर और फ्री बिजली यूनिट्स में बढ़ोत्तरी. वहीं सरकार की तरफ से मुफ्त स्कूटी पाने वाले मेधावी छात्रों की संख्या 20 हजार से बढ़ाकर 30 हजार कर दी गई है.
सीएम के करीबी एक सरकारी अधिकारी का इस पर कहना है कि "उनका (गहलोत का) दृष्टिकोण हमेशा वृद्धि करने वाला (इंक्रीमेंटल) रहा है. वह कोई इवेंट मैनेजर नहीं हैं. जब मौजूदा योजनाएं अच्छी तरह से काम कर रही हैं, तो नई योजनाओं की क्या आवश्यकता है? ऐसे में मौजूदा योजनाओं का विस्तार करना अधिक प्रभावी होता है."
उस अधिकारी ने कहा "यह कहना आसान है कि यह केरल मॉडल की तरह है. लेकिन रेमिटेंसेस (remittances) के जरिए केरल को बहुत अधिक राजस्व (रेवेन्यू) प्राप्त होता है और राजस्थान में हम जिन चुनौतियों का सामना करते हैं उसको देखते हुए, विकास के मुद्दों की तुलना कहीं नहीं की जा सकती है. कभी 'बीमारू' माने जाने वाले प्रदेश में गरीबों को व्यापक सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना एक बड़ी उपलब्धि है."
अशोक गहलाेत के पक्ष में जो चीज काम कर रही है वह यह है कि मतदाताओं के बीच उनकी व्यक्तिगत छवि सकारात्मक बनी हुई है. उन्हें जमीन से जुड़ा हुआ और भ्रष्टाचार मुक्त मुख्यमंत्री के तौर पर देखा जाता है.
ग्राउंड रिपोर्ट्स बताती हैं कि उनकी कल्याणकारी योजनाओं (विशेष तौर पर चिरंजीवी योजना और स्वास्थ्य सुविधाओं के विस्तार) ने अच्छा काम किया है
हालांकि संचार (कम्युनिकेशन) एक बड़ी कमी बनी हुई है. यानी उनके अच्छे कामों का प्रचार-प्रसार नहीं हो पा रहा है.
यहां तक कि बजट के दिन भी, मीडिया की ज्यादातर सुर्खियां बजट की घोषणाओं पर कम बल्कि गहलोत द्वारा गलती से पिछले साल के बजट का एक हिस्सा पढ़ने पर ज्यादा केंद्रित थीं.
जहां तक बात संचार और मीडिया मैनेजमेंट की है तो चाहे वह बीजेपी के खिलाफ हो या सचिन पायलट जैसे कांग्रेस में उनके प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ हो, इस मामले में उनका (गहलोत का) पक्ष मजबूत नहीं है.
गहलोत की कल्याणकारी योजनाएं भले ही जमीनी स्तर ठीक ढंग से चल रही हों, लेकिन इसके बावजूद भी इसकी कोई गारंटी नहीं है कि ये चुनाव में निर्धारक फैक्टर साबित होंगी. यह गहलोत के सामने दूसरी महत्वपूर्ण चुनौती है.
जून 2022 की उदयपुर हत्याकांड जैसी घटना या हर पांच साल में एक नई सरकार चुनने की लोगों की सामान्य इच्छा का गहलोत की संभावनाओं पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है.
बेशक, तीसरी बाधा उनकी अपनी ही पार्टी में है. समय-समय पर पार्टी आलाकमान के पसंदीदा रहे सचिन पायलट और हरीश चौधरी की चुनौतियों का सामना सीएम अशाेक गहलोत पहले से ही कर रहे हैं.
गहलोत पर हाईकमान का स्टैंड क्या है? इस पर भी कुछ क्लियर नहीं है, विशेष रूप से कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव के दौरान जो हुआ उसके बाद से कुछ ज्ञात नहीं है.
गहलोत की काफी संभावनाएं इस बात पर निर्भर करेंगी कि बीजेपी में क्या होता है. पूर्व सीएम वसुंधरा राजे और उनके समर्थक पिछले कुछ समय से अपनी ताकत का प्रदर्शन कर रहे हैं.
हालांकि, एक सच यह भी है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के नेतृत्व में बीजेपी काफी ज्यादा केंद्रीकृत हो गई है, जिससे वसुंधरा राजे जैसे क्षेत्रीय क्षत्रपों के लिए खुद को लेकर दावा करना काफी कठिन हो गया है.
राजे और हाई कमान द्वारा सुझाए गए नाम के बीच बीजेपी कैसे संतुलन बनाती है, यह देखा जाना अभी बाकी है.
विपक्ष के नेता गुलाबचंद कटारिया की असम के राज्यपाल के रूप में पदोन्नति से राजस्थान बीजेपी में तेज हलचल शुरू हो चुकी है.
अगर बीजेपी संतुलन बनाने में विफल रहती है, तो गहलोत खेल में आगे हो सकते हैं. राजे के बारे में कहा जाता है कि 2020 में उन्होंने सचिन पायलट की बगावत पर उदासीन प्रतिक्रिया देकर गहलोत की सांकेतिक रूप से मदद की थी.
लेकिन अगर बीजेपी राजे को प्रोजेक्ट करती है तो इससे गहलोत की स्थिति कमजोर हो सकती है. इससे पायलट और चौधरी जैसे उनके विरोधियों को कांग्रेस आलाकमान को यह बताने का मौका मिल जाएगा कि राजे के साथ सीधे मुकाबले में गहलोत का समर्थन करने से 2003 और 2013 की पुनरावृत्ति हो सकती है.
ऐसे में गहलोत के लिए चुनौती यह होगी कि वे अपनी कल्याणकारी योजनाओं पर फोकस बनाए रखें और उन्हें यह सुनिश्चित करना होगा कि चर्चा का विषय बने रहें.
बजट से पहले जिस तरह से होर्डिंग लगाए गए और कॉलेजों में इसका सीधा प्रसारण किया गया, वह यह दर्शाता है कि आखिरकार गहलोत समझ गए हैं कि कम्युनिकेशन और दिखावा भी महत्वपूर्ण है. यह दिखाता है कि उनके अब उनके अप्रोच में बदलाव आया है. लेकिन अब बहुत देर हो चुकी है?
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