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अशोक गहलोत की विनम्रता वाली मुस्कान में जादू होता है और उनके विरोधी इसी बात से सबसे ज्यादा घबराते हैं. गांधी परिवार की तीन पीढ़ियों इंदिरा, राजीव और अब राहुल के करीबी रहे गहलोत अपने विरोधियों की गलती भूलते नहीं क्योंकि वो कहते हैं हर गलती की कोई कीमत होती है.
सचिन पायलट ने अड़कर उपमुख्यमंत्री पद ले तो लिया है लेकिन उन्हें अशोक गहलोत के साथ कदम ताल मिलाकर चलना होगा.
राजस्थान में राजपूत, ब्राह्मण, गुज्जर, जाट तमाम प्रेशर ग्रुप हैं लेकिन माली समुदाय से आने वाले गहलोत के लिए किसी भी जाति समूह में विरोध नहीं है. यही उनकी ताकत भी है.
गहलोत के बारे में किस्सा मशहूर है कि वो चाय को ठंडा करके पीते हैं. उत्तेजना में कोई काम नहीं करते. कई जानकार को कहते हैं कि इस चक्कर में वो मुद्दा को बासी कर देते हैं.
राजस्थान में गुर्जर आंदोलन करने वाले उस वक्त के नेता किरोड़ी सिंह बैंसला तो कहते थे कि वो बेहद सजग नेता हैं फूंक फूंककर कदम रखते हैं.
2013 में गहलोत की अगुआई में कांग्रेस की विधानसभा चुनाव में बुरी तरह हार हुई पर इसका दाग गहलोत पर नहीं लगा और 2018 में वो दोबारा मुख्यमंत्री का ताज हासिल कर चुके हैं.
साइंस और लॉ में ग्रेजुएट और इकनॉमिक्स में पोस्ट ग्रेजुएट गहलोत को प्रैक्टिकल पॉलिटिक्स में डॉक्टरी और जादूगरी हासिल है.
राजनीतिक जीवन एनएसयूआई से शुरू किया और फिर कभी सांसद, कभी विधायक के तौर पर कांग्रेस आलाकमान के करीबी रहे.
1980 से 1999 तक लगातार पांच बार लोकसभा सांसद और 1999 से लगातार पांच बार से विधायक हैं.
केंद्र में विमानन, टेक्सटाइल्स मंत्री भी रह चुके हैं. इसके अलावा कांग्रेस महासचिव राजस्थान प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष रहे हैं
पिछले साल गुजरात में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के दमदार प्रदर्शन का श्रेय गहलोत को ही दिया जाता है. उसके बाद वो राहुल गांधी के मुख्य सलाहकार माने जाने लगे. राहुल ने एक बार फिर उनपर बड़ी जिम्मेदारी सौंपी है.
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Published: 14 Dec 2018,05:11 PM IST