मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Politics Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019आतिशी: केजरीवाल की गैरमौजूदगी में खुद को साबित किया, लेकिन कठिन होगी 'चुनावी परीक्षा'

आतिशी: केजरीवाल की गैरमौजूदगी में खुद को साबित किया, लेकिन कठिन होगी 'चुनावी परीक्षा'

अरविंद केजरीवाल की आगे की प्लानिंग और आतिशी के लिए सबसे बड़ी चुनौती क्या होगी?

आरती जेरथ
पॉलिटिक्स
Published:
<div class="paragraphs"><p>अरविंद केजरीवाल ने आतिशी को CM पद का भारी बोझ सौंपा है</p></div>
i

अरविंद केजरीवाल ने आतिशी को CM पद का भारी बोझ सौंपा है

(फोटो- क्विंट हिंदी)

advertisement

अरविंद केजरीवाल ने आतिशी (Atishi) को अपने उत्तराधिकारी के रूप में चुनकर संकेत दिया है कि उनका मतलब शासन के मोर्चे पर काम करना है. जब अरविंद केजरीवाल 7 महीने तक जेल में थे तब आतिशी ने 14 विभागों को संभालते हुए खुद को एक सक्षम प्रशासक और एक प्रभावी वक्ता के रूप में साबित किया.

हालांकि, आतिशी की खास बात यह है कि वह सरकारी स्कूल सुधार का प्रमुख चेहरा हैं जो अब दिल्ली सरकार का मॉडल बन चुका है. आतिशी ने पहले पूर्व डिप्टी सीएम मनीष सिसौदिया के सलाहकार के रूप में काम किया बाद में शिक्षा मंत्री के रूप में. वह आतिशी ही हैं, जिन्होंने दिल्ली के सरकारी स्कूलों में बदलाव की कहानी लिखी हैं.

केजरीवाल को एक असामान्य राजनेता होने पर गर्व है. शायद यही कारण है कि उन्होंने उन अटकलों को खारिज करने का फैसला किया कि उनके उत्तराधिकारी का चुनाव एक राजनीतिक निर्णय होगा. पारंपरिक पार्टियों के उलट उन्होंने अगला मुख्यमंत्री चुनते समय यह नहीं देखा कि उनकी जाति, समुदाय या लिंग क्या है.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

आतिशी को चुनना सबसे अच्छा विकल्प है

आतिशी एक महिला हैं केवल यही एक बड़ा फैक्टर नहीं है. उनकी नियुक्ति से केजरीवाल यह संदेश देना चाहते हैं कि AAP में योग्यता और वैचारिक प्रतिबद्धता मायने रखती है.

आतिशी पार्टी में सबसे अच्छे और प्रतिभाशाली नेताओं में से एक हैं. ऑक्सफर्ड विश्वविद्यालय से डिग्री प्राप्त रोड्स स्कॉलर और एक साफ-सुथरी छवि वाली वह उस चीज का प्रतिनिधित्व करती हैं जिसने दिल्ली के मध्यम वर्ग को AAP के शुरुआती दिनों में AAP की ओर आकर्षित किया था.

इन सालों में, भारतीय राजनीति के विपरीत परिस्थितियों के दौरान केजरीवाल की छवि को धक्का पहुंचा है. दिल्ली उत्पाद शुल्क नीति घोटाला और भ्रष्टाचार के मामलों ने भी उन्हें कुछ हद तक कलंकित किया. दिल्ली के मध्यवर्गीय मतदाताओं के बीच उनको लेकर समर्थन कम हुआ है.

इस बात को खारिज करते हुए कि वह एक जाट (हरियाणा चुनाव को ध्यान में रखते हुए), एक दलित (अनुसूचित जाति के मतदाता तक पहुंचने के लिए), एक बनिया (अपने व्यापारी आधार को खुश रखने के लिए) या अपनी पत्नी सुनीता (पार्टी में दो फाड़ होने से बचाए रखने के लिए) को चुन सकते हैं. लेकिन केजरीवाल ने आतिशी को चुना ताकी वह मीडिल क्लास तक अपनी पहुंच बना सके जहां से उनके लिए समर्थन घट रहा है.

हालांकि लोकतंत्र में गरीबों और हाशिये पर पड़े लोगों का वोट ज्यादा होता है, लेकिन केजरीवाल से बेहतर कोई नहीं जानता कि मीडिल क्लास को लुभाने से ही ज्यादा फायदा होता है, जैसा कि उन्होंने तब किया था जब वह पहली बार 2011 के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के साथ राजनीतिक परिदृश्य में आए थे.

उनके राजनीतिक करियर के इस मोड़ पर, जब उनका प्रभाव थोड़ा घटा है, जब वह भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे हैं और दिल्ली विधानसभा चुनाव कुछ ही महीने दूर हैं, उन्हें AAP के लिए एक नई शब्दावली तैयार करने के लिए हरसंभव मदद की जरूरत है.

इस लिहाज से आतिशी उनका सर्वश्रेष्ठ दांव हैं. केजरीवाल के जेल जाने के बाद, उन्होंने आप का झंडा फहराया, पेचीदा मुद्दों पर पार्टी के रुख को स्पष्ट किया, लोगों से संबंधित मुद्दों पर उपराज्यपाल वीके सक्सेना के साथ केजरीवाल की शैली में बहस की, लंबे समय तक दिल्ली में गर्मी के महीनों में पानी की कमी होने पर भूख हड़ताल की. अपने पार्टी प्रमुख को हमेशा खबरों में रखा ताकी कोई उन्हें भूल न सके.

दिल्ली में बढ़ता राजनीतिक तापमान

हालांकि, सीएम बनने से आतिशी का कद पार्टी में और बड़ा हो गया है, लेकिन सीएम का पद कांटों का ताज भी साबित हो सकता है. क्योंकि आतिशी के कंधों पर बहुत ज्यादा बोझ पड़ने वाला है. दिल्ली को चलाने के लिए कुछ ताकत उप राज्यपाल के पास भी होती है और इसलिए पहले से ही AAP सरकार का उप राज्यपाल से टकराव होता रहता है. खासकर तब से जब से दिल्ली एनसीटी सरकार (संशोधन) विधेयक 2023 अस्तित्व में आया है.

सीएम की शक्तियों में कटौती हो चुकी है और ज्यादातर फैसलों के लिए एलजी की मंजूरी की जरूरत होती है. किसी भी स्थिति में, 2023 के संशोधन से पहले भी, कई महत्वपूर्ण शक्तियां हमेशा केंद्र सरकार के पास ही थीं. जैसे-जैसे दिल्ली चुनाव नजदीक आ रहे हैं, राजनीतिक तापमान बढ़ना तय है, जिससे एलजी कार्यालय और सीएम कार्यालय के बीच मनमुटाव बढ़ जाएगा.

आतिशी को आने वाले महीनों में फूंक-फूंक कर कदम रखने होंगे क्योंकि वह बढ़ती कलहपूर्ण राजनीति के बीच एक अच्छी सरकार चलाने के लिए संघर्ष करेंगी. एक तरफ, केजरीवाल सड़कों पर होंगे, बीजेपी से निपटेंगे और एलजी पर निशाना साधेंगे तो दूसरी ओर, बीजेपी केजरीवाल को बदनाम करने और पार्टी और सरकार दोनों पर निशाने साधने की हर संभव संसाधन का उपयोग करेगी. हालांकि केजरीवाल एक अच्छे वक्ता है जिसका फायदा पार्टी को मिलेगा.

आतिशी के हाथ में कहीं अधिक कठिन काम है. दिल्ली शराब नीति मामले और एलजी कार्यालय के साथ लगातार टकराव ने दिल्ली में सुशासन पर काफी असर डाला है. आज लोग जगह-जगह कूड़े के पहाड़, टूटी सड़कें, नालों से गाद निकालने में देरी के बीच भारी मानसूनी बारिश से बरपाया कहर और शहर की खस्ताहाल हवा से निराश हैं.

केजरीवाल ने आतिशी को भारी बोझ सौंप दिया है. क्या वह चुनावों की घोषणा से पहले मिले कम समय में नुकसान की भरपाई कर सकती हैं? क्या वह कोई उपलब्धि बता सकती हैं जबकि केजरीवाल और सक्सेना के बीच रोजाना लड़ाई चल रही है.

(आरती आर जेरथ दिल्ली स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं. वह @AratiJ ट्वीट करती हैं. ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट न तो इसका समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: undefined

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT