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आतिशी बनेंगी दिल्ली की नई मुख्यमंत्री, केजरीवाल की 'संकटमोचक' या दांव उल्टा पड़ेगा?

गोपाल राय ने कहा कि आतिशी को सर्व सम्मति से मुख्यमंत्री पद के लिए चुना गया है.

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दिल्ली की मंत्री और आम आदमी पार्टी (AAP) नेता आतिशी (Atishi) दिल्ली (Delhi) की नई मुख्यमंत्री होंगी. रविवार, 15 सितंबर को अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) ने कहा था कि वे दो दिन में इस्तीफा देंगे जिसके बाद 17 सितंबर को विधायक दल की बैठक में आतिशी के नाम पर मुहर लगी है. केजरीवाल ने ही आतिशी के नाम का प्रस्ताव रखा जिसे सभी विधायकों ने मान्य किया है.

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दिल्ली मंत्री गोपाल राय ने कहा कि अरविंद केजरीवाल 4-4.30 बजे उप राज्यपाल के पास इस्तीफा देने जाएंगे, इसके बाद नई सरकार का गठन भी किया जाएगा.

बता दें जब अरविंद केजरीवाल को गिरफ्तार किया गया था उसके बाद से ही आतिशी पार्टी और राज्य सरकार में काफी एक्टिव हो गईं थीं और अब उनके हाथ में केजरीवाल ने राज्य सरकार की कमान सौंप दी हैं. आतिशी आम आदमी पार्टी का बड़ा महिला चेहरा है, उन्हें प्रशासन और पार्टी दोनों के कामकाज का अनुभव हैं. वह ऑक्सफर्ड से पढ़ाई कर चुकी हैं.

केजरीवाल और सिसोदिया के जेल जाने के बाद उनके लगभग सभी मंत्रालय आतिशी ही संभाल रही थी और वही दिल्ली सरकार का चेहरा भी बन गईं थीं. इससे जनता को संदेश मिलता है कि पार्टी में आतिशी का कद ऊंचा हैं.

दरअसल केजरीवाल ने इस्तीफे की बात कहते हुए दो दिन पहले कहा था कि जब तक जनता उनको इस पद पर बैठने के लिए नहीं कहेगी, तब तक वो फिर से मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नहीं बैठेंगे. इसका मतलब चुनाव में जब तक जनता उन्हें चुनकर मुख्यमंत्री पद पर नहीं बैठाएगी तब तक वे किसी बड़े पद पर नहीं रहेंगे.

केजरीवाल ने कहा था कि, “मैं जनता के बीच में जाऊंगा, गली गली में जाऊंगा, घर घर जाऊंगा और जब तक जनता अपना फैसला न सुना दे कि केजरीवाल ईमानदार है तब तक मैं सीएम की कुर्सी पर नहीं बैठूंगा.”

इसके साथ ही उन्होंने दिल्ली विधानसभा के लिए फरवरी की जगह नवंबर में ही चुनाव कराने की भी मांग की है. कुलमिलाकर केजरीवाल इस्तीफा देकर ये संदेश दे रहे हैं कि ईडी-सीबीआई का केस सालों साल चल सकता है लेकिन जनता की अदालत में उन्हें क्लीन चिट मिल सकती है.

उल्टा भी पड़ सकता है केजरीवाल का इस्तीफा

आम आदमी पार्टी के खिलाफ बढ़ते असंतोष के अंडरकरंट के बीच केजरीवाल का इस्तीफा भी उल्टा पड़ सकता है.

यह इस्तीफा बीजेपी के लिए भी एक सुनहरा मौका है. वह केजरीवाल के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों से भागने वाले नेता के रूप में नैरेटिव सेट कर सकते हैं. वह तर्क दे सकते हैं कि केजरीवाल का फैसला उनकी कानूनी परेशानियों से ध्यान हटाने और वोटर के ऊपर जिम्मेदारी डालने की कोशिश है.

आम आदमी पार्टी अगले दिल्ली चुनाव के करीब पहुंचने के साथ ही खुद को एक चुनौतीपूर्ण स्थिति में पा रही है. 11 साल सत्ता में रहने के बाद सत्ता विरोधी लहर का बोझ बढ़ता जा रहा है. अगर अरविंद केजरीवाल फिर से चुने जाते हैं तो यह मुख्यमंत्री के रूप में उनका चौथा कार्यकाल होगा. ये एक ऐतिहासिक उपलब्धि होगी, लेकिन यह आसान नहीं होने जा रही है.

जब से अरविंद केजरीवाल की कानूनी मुसीबतें शुरू हुई हैं, जब से आम आदमी पार्टी के खिलाफ असंतोष बढ़ रहा है. इसकी शुरुआत मुख्यमंत्री रहते हुए जेल में उनके समय से हुई. कई लोगों को लगता है कि इससे शासन को नुकसान हुआ है. कई प्रमुख मुद्दे अनसुलझे हैं. पार्टी की मजबूत जमीनी उपस्थिति के बावजूद वादों को पूरा करने की क्षमता पर सवाल उठाए जा रहे हैं.

एक और महत्वपूर्ण बात: दिल्ली में लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजों ने आप को बड़ा झटका दिया. केजरीवाल के प्रयासों और कांग्रेस के साथ पार्टी के गठबंधन के बावजूद एक भी सीट नहीं जीत सके. केजरीवाल को उम्मीद थी कि मतदाताओं के साथ भावनात्मक अपील और पीड़ित होने की कहानी काम आएगी. लेकिन इसमें सफलता नहीं मिली. यह गलत कदम बताता है कि आगामी चुनाव में फिर से वही कार्ड खेलने से काम नहीं चल सकता है.

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