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7 सितम्बर से कांग्रेस नेता राहुल गांधी (Rahul Gandhi) चले जा रहे हैं. मशहूर हॉलीवुड फिल्म के नायक फोर्रेस्ट गम्प की तरह बस चले जा रहे हैं, एक लंबी पदयात्रा पर. इस यात्रा के दौरान उन्होंने क्या कुछ नहीं किया: हिजाब पहने एक बच्ची के साथ तस्वीर खिंचवाई, मन्दिर में भस्म लगा कर ध्यान किया, दक्षिण के सम्प्रदाय की परंपरा के हिसाब से खुद को कोड़े लगाए, धुर बीजेपी विरोधियों के साथ चले, जाति, हर धर्म के लोगों के साथ गले मिलते चलते गए. जगह-जगह प्रेस कांफ्रेंस की. किसी ने तपस्वी कहा उनको और किसी ने सद्दाम हुसैन के साथ उनकी तुलना की.
जनसंपर्क के नजरिए से देखा जाए तो ये बहुत लंबे समय के बाद किया गया एक अहम कार्यक्रम रहा. 2014 में बीजेपी के हाथों शिकस्त पाने के बाद से कांग्रेस का यह शायद सबसे बड़ा राजनीतिक कार्यक्रम रहा है.राहुल गांधी इस पदयात्रा के दौरान लोगों के दिलों को छूने में भी कामयाब रहे हैं, लोगों को उन्होंने भावनात्मक स्तर पर उद्वेलित भी किया है, इसमें कोई संदेह नहीं. राहुल ने अपने राजनीतिक विरोधियों को बेचैन भी किया है, उनको अपनी नीतियों और तौर तरीकों पर फिर से विचार करने के लिए बाध्य भी किया है.
एक तरह से राहुल गांधी ने सामाजिक और राजनीतिक स्तर पर खलबली भी मचाई है, इसमें कोई संदेह नहीं है. कभी ऐसा भी लगता है कि अगले लोकसभा चुनाव अभी भी थोड़े दूर हैं.ऐसे में क्या राहुल गांधी ने यात्रा थोड़ी जल्दी तो शुरू नहीं कर दी ? क्योंकि लोगों की स्मृति अल्पकालिक होती है.चुनाव के आस-पास उन्हें इससे बड़े किसी इवेंट की तैयारी तो नहीं करनी पड़ेगी?
मैसूर में बारिश में भींगते हुए राहुल लोगों को एक योद्धा की तरह दिखे. वो तस्वीर खूब वायरल हुई, उसको बहुत प्रचारित किया गया, गीत और कविताएं तक लिखी गईं. एक बात तो राहुल गांधी ने जरूर स्थापित की है और वह ये कि आम जनता के साथ मेल जोल करने में वे अपनी दादी और अपने दादी के पिता की तरह माहिर हैं.
पूरी यात्रा के दौरान सिर्फ बीजेपी और संघ पर हमला ही नहीं किया, राहुल ने उस ‘नफरत की संस्कृति’ को ख़त्म करने की बात कही जो उनके अनुसार देश के सामाजिक और सांस्कृतिक ताने बाने को तबाह किए दे रही है. ऐसा कहते समय उन्होंने बार बार अपने साहसी होने की बात कही, सत्तारूढ़ दल से कहा कि यदि हो सके तो उन्हें वह रोक कर दिखाएं.
राहुल के सामने भारत को जोड़ने के अलावा अपनी पार्टी को जोड़ने की भी चुनौती है. राज्यों में विधायकों का पार्टी छोड़ना उनके लिए एक बड़ी चिंता का विषय होगा. राहुल के साथ नव निर्वाचित अध्यक्ष खड्गे को भी इस चुनौती से निपटना पड़ेगा.अशोक गहलोत का रूख खास तौर पर काबिले गौर है. अशोक गहलोत खुले आम सचिन पायलट को गद्दार कह रहे हैं और पार्टी की स्थिति को हास्यास्पद बना दे रहे हैं. उनके विपरीत शशि थरूर ने बड़ी शालीनता और शराफत के साथ हारने के बाद भी खड्गे के प्रति शुभकामनाएं व्यक्त कीं.
इससे पहले हिमंता बिस्वा सरमा जैसे नेता जो कांग्रेस से पलायन कर गए, अब बीजेपी के सबसे बड़े नेताओं में शुमार किए जाते हैं. सिंधिया ने भी पार्टी छोडी.
क्या पार्टी में असम के वर्तमान मुख्यमंत्री जैसे और भी नेता छिपे हुए हैं, जो मौका पड़ने पर कांग्रेस को छोड़ कर बीजेपी का दामन थाम लेंगे? यह राहुल गांधी के लिए चिंता का विषय होगा.
ऐसा लगता है कि भारत जोड़ो पदयात्रा से राहुल गांधी की व्यक्तिगत छवि तो बहुत चमक सकती है, पर पार्टी के भीतर होने वाली संभावित उथल-पुथल को रोकने में यह अधिक कामयाब होगी या नहीं ये आने वाला समय ही बता सकता है. पार्टी के नेता दल बदलने में माहिर हैं और राजनीति व्यक्तिगत फायदों के लिए ख़ास तौर पर की जाती है.
जनता का फायदा बस एक चुनावी जुमला भर बन कर रह जाता है.भारतीय जनता ने ऐसा सैंकड़ों बार देखा है.राहुल गांधी को इस यात्रा के माध्यम से सिर्फ बढ़िया छवि और लोगों का स्नेह ही नहीं जीतना है.मूल रूप से वह एक राजनेता हैं और इस महायात्रा के बाद पार्टी उनसे पूरी उम्मीद रखेगी कि वह अपने बूते पार्टी को एक जोरदार जीत दिलवाएंगे. हर स्तर पर होने वाले चुनावों में.
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