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शायद एक बार फिर नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने अपनी 'अंतरआत्मा' की आवाज सुनी है. एक बार फिर नीतीश कुमार ने यू-टर्न लिया है. एक बार फिर सावन के महीने में बिहार में सत्ता परिवर्तन होता दिख रहा है. एक बार फिर नीतीश कुमार और बीजेपी के रिश्ते में दरार पड़ गई है. नीतीश कुमार आज
ठीक पांच साल पहले नीतीश कुमार ने सावन के महीने में ही लालू यादव की राष्ट्रीय जनता दल से नाता तोड़ दिया था और बीजेपी के साथ सरकार बनाई थी. और अब पांच साल बाद बिहार में एनडीए की सरकार गिर गई है.
आइए आपको बताते हैं वो पांच वजह जिसकी वजह से बिहार में NDA गठबंधन टूट गया है और नीतीश-बीजेपी की राहें फिर अलग हो गई हैं.
जेडीयू को एहसास होना कि बीजेपी बिहार में जेडीयू की कीमत पर बढ़ रही है. नीतीश कुमार के कई विधायक और नेता बार-बार कह रहे थे कि बीजेपी नीतीश कुमार के नाम पर बिहार में आगे बढ़ रही है जब्कि जेडीयू कमजोर हो रही है.
जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह (Lalan Singh) ने अभी हाल ही में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर बिना बीजेपी (BJP) का नाम लिए कहा था कि साल 2020 के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार के खिलाफ साजिश हुई थी. लल्लन सिंह ने कहा था,
लल्लन सिंह ने कहा, साजिश कौन कर रहा है. वक्त आएगा तो बता देंगे.
अभी हाल ही में बीजपी संयुक्त मोर्चा राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में शामिल होने पटना पहुंचे जेपी नड्डा ने कहा था कि क्षेत्रीय दल सफाया होने की कगार पर है, और रहेगी तो सिर्फ बीजेपी. बस ये बात जेडीयू को खटक गई. क्योंकि एनडीए की साथी जेडीयू भी क्षेत्रीय पार्टी है. अब इससे सीधी चेतावनी और क्या हो सकती थी. ऐसे में जेडीयू का डर सच साबित होने लगा कि बीजेपी उसके अस्तित्व को खत्म कर देना चाहती है.
नीतीश कुमार और उनकी पार्टी जेडीयू के सामने महाराष्ट्र का उदाहरण भी सामने है. कैसे शिवसेना में फूट और उद्धव ठाकरे से मंत्रीपद छिन गया. कैसे एकनाथ शिंदे ने बीजेपी से हाथ मिलाकर अपने ही बॉस उद्धव को किनारे लगा दिया. नीतीश नहीं चाहते कि बीजेपी किसी आरसीपी के सहारे उन्हें किनारे लगाए या उनकी पार्टी में फूट हो. ये भी एक बड़ी वजह थी कि नीतीश ने खुद को बीजेपी से दूर कर लिया.
बीजेपी और जेडीयू भले ही सत्ता में साथ थे लेकिन दोनों के बीच कई मुद्दों पर टकराव सामने बार-बार नजर आया. बीजेपी और जेडीयू में सबसे बड़ा फर्क सेकुलर छवि का है. नीतीश की छवि सेक्यूलर और प्रोग्रेसिव नेता की है, नीतीश समाजवाद की राजनीति करने वालों में से हैं, इसलिए वो कभी भी खुद को किसी एक धर्म से जोड़कर नहीं रखते हैं. इसके अलावा अगर मुद्दों की बात करें तो जाति जनगणना का मुद्दा हो या बिहार को स्पेशल दर्जा देने का, नीतीश बीजेपी के स्टैंड से अलग खड़े दिखते रहे हैं.
विचारधारा पर समझौते के कारण उन्हें वोटबैंक कटने का भी डर था. मुसलमान उनसे दूर हो रहे थे और अगड़ी जातियां बीजेपी की ओर जा रही थीं. इतना ही नहीं बीजेपी की सोशल इंजीनियरिंग के कारण OBC और महादलित भी नीतीश की पार्टी से कटने लगे थे.
इसके उलट अगर नीतीश आरजेडी के साथ जाते हैं तो उनपर हिंदुत्व के एजेंडे के लिए काम करने का आरोप नहीं लगेगा. साथ ही उनका ओबीसी और महादलित वोटबैंक मजबूत होगा.
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Published: 09 Aug 2022,02:25 PM IST