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"बड़ा अच्छा कहा भाई साहब आपने...ऐसे बड़े भाई के कहने से छोटा भाई घर छोड़कर जाने लगे तब तो हर बड़का भाई अपने छोटका भाई को घर से भगाकर बाप-दादा की पूरी संपत्ति अकेले हड़प ले...ऐसे कैसे चले जाएं, अपना हिस्सा छोड़कर." बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बयान पर उपेंद्र कुशवाहा ने ट्वीट कर कहा है. नीतीश और कुशवाहा के बीच राजनीतिक 'रार' बढ़ती जा रही है. लेकिन, सवाल ये है कि ये हुआ क्यों? क्या उपेंद्र कुशवाहा JDU छोड़ बिहार में कमल खिलाने की तैयारी में हैं या कोई दूसरा विकल्प तलाशेंगे?
नीतीश कुमार ने साफ कर दिया है कि जिसको जहां जाना है वह जा सकता है. मैंने किसी को नहीं रोका, नेता अपनी इच्छा से पार्टी में आते जाते रहते हैं. इसी के जवाब में कुशवाहा ने ट्वीट कर बयान दिया है. कुशवाहा के जवाब से तो यही लगता है कि वह आसानी से मैदान छोड़कर नहीं जाने वाले हैं.
जानकारों का मानना है कि नीतीश कुमार से तकरार कर उपेंद्र कुशवाहा ने खुद परेशानी मोल ले ली है. नीतीश कुमार का इतिहास रहा है कि उन्होंने जिससे नजर फेरी उसे पार्टी छोड़कर जाना पड़ा. अगर उपेंद्र कुशवाहा का मूड भी नहीं होगा तो उन्हें पार्टी छोड़नी ही पड़ेगी. हां, अगर कुछ समझौता हो जाता है तो ये अलग बात है. हाल का उदाहरण आरसीपी सिंह हैं, जिन्हें खुद नीतीश कुमार राजनीति में लेकर आए थे और JDU के इतने बड़े ओहदे तक लेकर गए थे, लेकिन आखिरकार उन्हें भी पार्टी छोड़नी पड़ी.
सवाल सिर्फ JDU से दूरी का नहीं है. इसके पीछे की वजह भी है. कुछ ही दिन पहले बिहार में एक खबर की चर्चा जोरों पर थी कि बिहार सरकार में जल्द ही मंत्रिमंडल का विस्तार हो सकता है और उपेंद्र कुशवाहा को दूसरे उप मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ दिलाई जा सकती है. हालांकि, उसके बाद नीतीश कुमार ने बिना पूछे इस मुद्दे पर बयान दिया था कि उनकी ऐसी कोई योजना नहीं है और बिहार में तेजस्वी यादव के अलावा दूसरा उपमुख्यमंत्री नहीं होगा. यह उपेंद्र कुशवाहा को नीतीश की तरफ से सीधा इशारा था. जानकारों का मानना है कि दूसरे उप मुख्यमंत्री वाली खबर कुशवाहा खेमे की तरफ से ही प्रचारित की गई होगी. लेकिन नीतीश कुमार ने इसे खारिज कर दिया. इस बार भी उनकी पद से जुड़ी राजनीतिक महत्वाकांक्षा को ही नीतीश कुमार से दूरी की वजह माना जा रहा है.
उपेंद्र कुशवाहा जिस कोइरी समाज से आते हैं, वह बिहार में 3 फीसदी है. इन्हीं 3 फीसदी के दम पर उपेंद्र कुशवाहा बिहार में अपनी राजनीतिक जमीन बचाए हुए हैं. जानकारों का मानना है कि अगर उपेंद्र कुशवाहा JDU छोड़कर जाते हैं, तो महागठबंधन पर कोई खास असर नहीं पड़ेगा. क्योंकि, उपेंद्र कुशवाहा की राजनीति को नीतीश कुमार ने ही संजीवनी दी है. कुशवाहा का हाथ नीतीश ने तब थामा जब कुशवाहा के पास कुछ भी नहीं था. बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में उनकी पार्टी से एक भी उम्मीदवार नहीं जीता, साल 2019 के चुनाव में वो खुद हार गए. जब उनके पास कुछ नहीं था, ऐसे समय में नीतीश ने उन्हें JDU के संसदीय बोर्ड का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया और MLC का पद दिया.
अगर उपेंद्र कुशवाहा की राजनीति को पीछे मुड़कर देखेंगे तो पाएंगे की उनकी राजनीति इधर-उधर जाने में ही रही है. साल 2014 में जब नीतीश कुमार ने NDA से अलग होने का फैसला किया तो उपेंद्र कुशवाहा ने अपनी नई पार्टी (राष्ट्रीय लोक समता पार्टी) बनाकर NDA में शामिल हो गए. उन्हें इसका फायदा भी मिला.
साल 2014 के लोकसभा चुनाव में उन्हें तीन सीटें मिलीं और कुशवाहा को मोदी सरकार में केंद्रीय राज्यमंत्री का दर्जा दिया गया. लेकिन, 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले उन्हें NDA से नाता तोड़ लिया. 2019 के चुनाव में उनकी पार्टी रालोसपा को 2.56 फीसदी वोट मिला. जबकि, साल 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में 1.77 फीसदी ही वोट मिला. यानी बिहार में ग्राफ गिरता गया. ऐसे में ये देखना होगा की अगर वो बीजेपी में शामिल होते हैं तो वो बीजेपी को कितना फायदा पहुंचा सकते हैं.
हालांकि, जानकारों का मानना है कि बीजेपी उपेंद्र कुशवाहा को बिहार में नीतीश कुमार के खिलाफ तुरुप का इक्का के रूप में इस्तेमाल कर सकती है. राजनीतिक पंडितों का मानना है कि अब बिहार में मंडल कमिशन वाली 1990 के दशक वाली जातीय राजनीति नहीं होती है, फिर भी अगर वो बीजेपी से जुड़ते हैं तो चुनावों के समय बीजेपी के पास दिखाने के लिए एक नेता होगा और वो जनता को संदेश दे सकती है कि हमारे पास भी लोग आ रहे हैं.
सवाल सिर्फ JDU से अलग होकर बीजेपी में शामिल होने का नहीं है. अगर उपेंद्र कुशवाहा बीजेपी में शामिल नहीं होते हैं, तो फिर क्या करेंगे? बीजेपी से लगतार उसके सहयोगी अलग हो रहे हैं. शिवसेना, अकाली दल और जेडीयू के अलग होने से बीजेपी के सामने एक सवाल खड़ा हो गया है कि वो सहयोगियों के लिए सही पार्टी नहीं है? जानकारों का मानना है कि इसको ध्यान में रखते हुए कुशवाहा अपनी एक अलग पार्टी बनाकर स्वतंत्र या किसी दूसरे के साथ गठबंधन कर चुनावी मैदान में उतर सकते हैं. हालांकि, ऐसा नहीं लगता कि ये सब अगले कुछ दिनों में ही संभव हो जाएगा.
दरअसल, उपेंद्र कुशवाहा इलाज के लिए दिल्ली के एम्स हॉस्पिटल में एडमिट हुए थे. इस दौरान बिहार बीजेपी के प्रवक्ता और पूर्व विधायक प्रेम रंजन पटेल उनके मिलने एम्स गए थे. इस मुलाकात की तस्वीर सोशल मीडिया पर काफी चर्चा का विषय रही. यहीं से यह कयास लगाने शुरू हो गए थे कि क्या उपेंद्र कुशवाहा एक बार फिर से एनडीए में शामिल हो सकते हैं? हालांकि, उपेंद्र कुशवाहा ने इस मुलाकात पर कहा था कि इस बात को बिना मतलब के तूल दिया जा रहा है. मेरी तबियत खराब थी और कोई हालचाल लेने आया तो इसे बढ़ा चढ़ाकर पेश किया जा रहा है.
हालांकि, जानकारों का मानना है कि उपेंद्र कुशवाहा से एम्स में बीजेपी नेताओं से मिलना सामान्य बात भी हो सकती है और कई बार इस तरह की मीटिंग नेताओं की तरफ से इशारा भी होती है कि उनके पास और भी विकल्प हैं. ऐसी मुलाकात की तस्वीरों का इस्तेमाल अपने लिए मोल-तोल करने के लिए भी किया जाता है. हालांकि, ये तो उपेंद्र कुशवाहा ही बता सकते हैं कि बीजेपी नेताओं से उन्होंने क्या बात की है? लेकिन, उपेंद्र कुशवाहा ने ट्वीट कर जरिए बता दिया है कि वो आसानी से जाने वाले नहीं हैं?
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