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भारतीय जनता पार्टी (BJP) के अल्पसंख्यक मोर्चा ने 10 मार्च से देशभर में मुस्लिमों के साथ जनसंपर्क अभियान शुरू किया है. यह अभियान कई चरणों में लागू होगा लेकिन पहले चरण में 14 राज्यों की पहचान की गई है जिसमें 64 जिले शामिल हैं. इन राज्यों में जम्मू-कश्मीर, दिल्ली, गोवा, हरियाणा, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, तेलंगाना, मध्य प्रदेश, लद्दाख, महाराष्ट्र, केरल और बिहार शामिल हैं.
जानकारी के अनुसार, पार्टी ने 60 ऐसे लोकसभा क्षेत्रों की पहचान की है जहां मुस्लिम आबादी 30 फीसदी से अधिक है. वहीं, पिछले कुछ समय से RSS भी लगातार मुसलमानों से संवाद कर रहा है. अब सवाल है कि आखिर BJP-RSS की तरफ से ऐसी पहल क्यों की जा रही है और इसके क्या मायने हैं?
जनवरी में हुई BJP राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अल्पसंख्यक समुदाय और खासकर पसमांदा मुसलमानों तक पहुंचने की बात कही थी. इसी को लेकर अब पार्टी की तरफ से संवाद अभियान शुरू किया गया है जबकि संघ और मुस्लिम राष्ट्रीय मंच पहले से ऐसे संवाद कार्यक्रम कर रहे हैं.
दरअसल, विपक्षी दल बीजेपी पर एंटी मुस्लिम पार्टी होने का आरोप लगाते हैं. विभिन्न चुनावों के वोटिंग पैटर्न पर नजर डालेंगे तो पता चलता है कि अल्पसंख्यक समाज BJP को वोट देने से कतराता रहा है. उसका मानना है कि बीजेपी एक हिंदूवादी पार्टी है. ऐसे में पार्टी को लगता है कि अगर उसे लंबे समय तक सत्ता में रहना है तो सभी समुदायों को साथ लेकर चलना होगा. इसके लिए संघ भी मुस्लिमों से संवाद स्थापित कर, उन्हें भरोसे में लेने का प्रयास कर रहा है.
बीजेपी ये संदेश देना चाहती है कि वो मुस्लिम विरोधी नहीं है. वह खुले मन से इस समाज को गले लगाने के लिए तैयार है.
लोकसभा और विधानसभा में बीजेपी का एक भी मुसलमान सांसद और विधायक नहीं है. इसको लेकर पार्टी की खासी आलोचना होती रही है. बीजेपी पर अक्सर चुनावों में मुस्लिमों को टिकट नहीं देना का आरोप लगता रहा है. ऐसे में पार्टी अब इस नैरेटिव को बदलना चाहती है. इसी के तहत पार्टी ने त्रिपुरा में दो मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया. जाहिर है इस दिशा में पार्टी को काफी काम करना बाकी है.
पार्टी अति पिछड़ों, दलितों और आदिवासियों के बाद अब मुस्लिम वोटर विशेषकर पसमांदा मुस्लिमों को अपने पाले में लाने की कोशिश में है.
राजनीतिक जानकारों की मानें तो जो RSS की सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की परिकल्पना है, वो उसको वृहद करना चाहता है और उसी क्रम में इस तरह की पहल की जा रही है.
झारखंड बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश ने कहा, "बीजेपी की फिलॉसफी सर्व धर्म समभाव की है. हम समावेशी विकास कर रहे हैं और हमने तय किया है कि हम सभी सबके के पास जाएंगे."
जमीयत उलेमा-ए-हिन्द के राष्ट्रीय सचिव नियाज अहमद फारूकी ने कहा, "हमें BJP-RSS से कोई दुश्मनी नहीं है. अगर वो करीब आने की कोशिश करते हैं तो स्वागत है लेकिन नफरत का माहौल खत्म होना चाहिए और संविधान के मुताबिक काम हो."
पसमांदा पिछड़े और दलित मुसलमान को कहते हैं. वो बड़ी संख्या में गरीब हैं. BBC की रिपोर्ट के मुताबिक, देश के मुसलमानों में 80 फीसदी आबादी पसमांदाओं की है. बीजेपी इसे अवसर को रूप में देख रही है.
उन्होंने कहा कि मुस्लिम एंटी बीजेपी को वोट देते हैं. ऐसे में बीजेपी अगर किसी मुस्लिम नेता को प्रमोट कर दें तो ये समाज पार्टी के साथ आ सकता है.
RJD के वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी कहते हैं, "संघ को अपर कास्ट का संगठन माना जाता है लेकिन उसने पिछड़ी जाति से आने वाले नरेंद्र मोदी को आगे किया और आज वो प्रधानमंत्री हैं. बीजेपी और आरएसएस उसी सोच के तहत काम कर रहे हैं. उन्हें पता है कि अगर 2024 में सत्ता बरकरार रखनी है तो मुस्लिम मतदाताओं के कुछ वोट हासिल करने होंगे."
दरअसल, बीजेपी और संघ अल्पसंख्यकों का विश्वास जीतने के लिए पहल तो कर रहे हैं लेकिन हेट स्पीच, मॉब लिंचिंग और गौ-तस्करी के नाम पर हत्या जैसे कई उदाहरण हैं जो राइट विंग पार्टी पर सवाल उठाती रही है.
शिवानंद तिवारी कहते हैं,"BJP और RSS मुसलमानों को अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए मुहिम चला रहे हैं लेकिन दूसरी तरफ उससे जुड़े संगठन हेट स्पीच दे रहे हैं जो विरोधाभास पैदा करता है. अगर बीजेपी वाकई चाहती है कि उसके प्रति मुसलमानों का नजरिया बदले तो उसे ऐसे संगठनों पर कड़ी कार्रवाई करनी होगी, तभी मुसलमानों में अच्छा संदेश जाएगा."
बीजेपी अगर थोड़ा बहुत पसमांदा मुसलमानों को अपने पाले में करने में सफल होती है तो उसका सीधा असर कांग्रेस के अलावा क्षेत्रीय दलों पर पड़ेगा. समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, RJD, JDU और TMC जैसे दलों को भारी नुकसान हो सकता है.
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Published: 13 Mar 2023,05:32 PM IST