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यूपी में विधानसभा चुनाव के बाद बीजेपी बड़े फेरबदल की तैयारी में है. प्रदेश अध्यक्ष (UP State President) स्वतंत्र देव सिंह (Swatantra Dev Singh) कैबिनेट में हैं. बतौर प्रदेश अध्यक्ष उनका कार्यकाल जुलाई में खत्म होने वाला है. ऐसे में पार्टी नए प्रदेश अध्यक्ष की तलाश में है. पिछले 4 लोकसभा चुनावों (Lok Sabha Elections) में यूपी में बीजेपी का प्रदेश अध्यक्ष कोई ब्राह्मण चेहरा (BJP Brahmin face) ही रहा है. एक साल बाद फिर से चुनाव हैं. ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि क्या इस बार भी किसी ब्राह्मण चेहरे को कमान मिलेगी या कोई दलित प्रदेश अध्यक्ष (BJP Dalit UP State President) बनेगा?
लोकसभा चुनावों से पहले बीजेपी का यूपी में प्रदेश अध्यक्ष चुनने का पुराना फार्मूला है. इसे पिछले 4 लोकसभा चुनावों के जरिए समझते हैं. साल 2004 के लोकसभा चुनाव से पहले केशरी नाथ त्रिपाठी (Keshari Nath Tripathi) को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया. 2009 में रमापति राम त्रिपाठी (Ramapati Ram Tripathi), 2014 में लक्ष्मीकांत बाजपेयी (Laxmikant Bajpai) और 2019 में महेंद्र नाथ पांडेय (Mahendra Nath Pandey) को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया.
2004 में बीजेपी को यूपी में 10 (22.2%) सीट मिली. तब सबसे ज्यादा एसपी के पास 35 सीट आई थी. 2009 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 10 सीट मिली, लेकिन वोट शेयर घटकर 17.5% पर आ गया. एसपी की सीटें भी घट गईं. 2014 में बीजेपी ने कमबैक किया और पार्टी को यूपी में 71 सीट (42.6%) मिली. एसपी घटकर 5 पर आ गई. साल 2019 में बीजेपी की सीट 71 से घटकर 62 पर आ गई लेकिन वोट शेयर 50% तक पहुंच गया.
यूपी में 1989 तक ब्राह्मण समुदाय से जुड़े चेहरे ही सत्ता पर काबिज रहे हैं. प्रदेश के पहले सीएम गोविंद बल्लभ पंत (Govind Ballabh Pant) सहित कुल 8 बार यूपी का सीएम चेहरा कोई ब्राह्मण ही रहा. लेकिन मंडल के बाद प्रदेश की राजनीति बदल गई. सत्ता ब्राह्मणों के हाथ से खिसककर पिछड़ा और दलित समुदाय के पास चली गई, लेकिन ब्राह्मण समुदाय हमेशा सत्ता के करीब रहा. जहां भी गया उनकी सरकार बनवाने में महत्वपूर्ण भूमिका में रहा.
यूपी में ब्राह्मण वोटर बीजेपी का माना जाता है, लेकिन योगी के पहले कार्यकाल में इस इमेज पर थोड़ा डेंट लगा. विपक्ष ने भी आरोप लगाए कि योगी आदित्यनाथ की सरकार तो ब्राह्मण विरोध है. चुनाव में भी प्रचारित किया. लेकिन इस नैरेटिव से बीजेपी को बहुत ज्यादा घाटा नहीं है. उल्टा पार्टी और सतर्क हो गई और योगी कैबिनेट 2.0 में ब्राह्मण और एससी समुदाय को सबसे ज्यादा महत्व दिया गया. ऐसा इसलिए क्योंकि बीजेपी का फोकस धीरे-धीरे 'ब्राह्मण' से 'ब्राह्मण प्लस एससी' पर शिफ्ट हो रहा है.
ऊपर जो सवाल उठाया गया कि क्या अबकी बार बीजेपी यूपी में अपना ट्रैक रिकॉर्ड तोड़ते हुए ब्राह्मण की बजाय किसी दलित को प्रदेश अध्यक्ष का पद सौंप सकती है? इसके पीछे बड़ी वजह है. यूपी विधानसभा चुनाव में मायावती की निष्क्रिय पॉलिटिक्स करने वाली इमेज, जिसका खामियाजा हुआ कि उनका कोर 'जाटव वोटर' भी उन्हें छोड़कर बीजेपी और एसपी में चला गया. बीएसपी का वोट प्रतिशत 19% से घटकर 12% पर आ गया.
इस बार के चुनाव में जाटव का 21% वोट बीजेपी गठबंधन को गया. जबकि इससे पहले ये वोटर कभी भी बीएसपी ने नहीं टूटा. ऐसे में बीजेपी इसे एक बड़े मौके के तौर पर देख रही है. 2014 और 2019 के चुनाव में बीजेपी गैर यादव ओबीसी और गैर जाटव वोटर में सेंध लगाने में कामयाब रही और दो बार भारी बहुमत से जीत गई, लेकिन अबकी बार मौका इससे भी बड़ा है. अगर जाटव वोटर में भी सेंधमारी सफल होती है तो 2024 में बीजेपी के लिए जीत का रास्ता आसान हो सकता है.
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Published: 05 Apr 2022,09:00 AM IST