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योगी कैबिनेट: ठाकुर से अधिक ब्राह्मण, एससी-सोशल इंजीनियरिंग और 2024 का बना प्लान

कई मंत्रियों को बाहर का रास्ता दिखाया, नए चेहरों और प्रोफेशनल्स पर सबसे ज्यादा फोकस

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योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) ने लगातार दूसरी बार उत्तर प्रदेश के सीएम पद की शपथ ली. 2 डिप्टी सीएम के अलावा 16 कैबिनेट मंत्री, 14 राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) और 20 राज्य मंत्री बनाए गए. योगी कैबिनेट 1.0 में डिप्टी सीएम सहित 45 मंत्री थे, जिसमें से करीब 22 मंत्रियों को बाहर कर दिया गया. अबकी बार बीजेपी ने नए चेहरों पर ज्यादा भरोसा जताया है. ब्राह्मणों के अलावा एससी समुदाय के विधायकों को ज्यादा तवज्जो दी गई. ऐसे में समझते हैं कि योगी कैबिनेट 2.0 के जरिए बीजेपी ने क्या संदेश देने की कोशिश की है.

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कैबिनेट के जरिए 'ठाकुरों की पार्टी' वाली छवि तोड़ने की कोशिश

योगी आदित्यनाथ की सरकार पर 'ठाकुरों की पार्टी' का टैग लगा. विपक्ष ने आरोप लगाए कि यूपी सरकार ठाकुरों के पक्ष में फैसले लेती है. बिकरू कांड के बाद विकास दुबे का एनकाउंटर और खुशी दुबे की गिरफ्तारी हुई. तब एसपी सहित बीएसपी ने योगी सरकार को ब्राह्मण विरोधी बताया. चुनाव में इसका फायदा लेने की कोशिश की गई, लेकिन कुछ हद तक मामला संभल गया. अब बीजेपी के लिए जरूरी हो गया था कि वह ब्राह्मण विरोध छवि को तोड़ने की कोशिश करे. कैबिनेट गठन के जरिए वही किया गया.

योगी कैबिनेट में ठाकुरों से ज्यादा ब्राह्मण समाज के 8 विधायकों को मंत्री बनाया गया, जिनके नाम ब्रजेश पाठक, जितिन प्रसाद, योगेंद्र उपाध्याय, दयाशंकर मिश्र दयालु, प्रतिभा शुक्ला, रजनी तिवारी, अरविंद कुमार शर्मा (भूमिहार ब्राह्मण) और सतीश शर्मा हैं. वहीं योगी आदित्यनाथ के अलावा कैबिनेट में ठाकुर समाज के 6 विधायकों को मंत्री बनाया गया है, जिनके नाम जय वीर सिंह, जेपीएस राठौर, दयाशंकर सिंह, दिनेश प्रताप सिंह, मयंकेश्वर शरण सिंह और बृजेश सिंह हैं.

ये ठीक वैसा ही है, जैसा समाजवादी पार्टी के साथ हुआ. समाजवादी पार्टी को भी 'यादवों की पार्टी' कहा गया. इससे अखिलेश यादव को घाटा भी हुआ. साल 2017 में ओबीसी वोटर का एक बड़ा चंक टूटकर बीजेपी में चला गया. लेकिन अबकी बार चुनाव के दौरान अखिलेश ने 'यादव' उम्मीदवारों को सबसे कम टिकट दिए. क्योंकि वो 'यादवों की पार्टी' वाली छवि को तोड़ना चाहते थे.

दलित लीडरशिप में पैदा हुए वैक्यूम में बीजेपी को फिट करने का प्लान

यूपी चुनाव 2022 में मायावती की निष्क्रिय राजनीति की वजह से दलित लीडरशिप में एक वैक्यूम पैदा हुआ है. इसी वजह से बीएसपी का वोट प्रतिशत 19% से घटकर 12% पर आ गया. सीएसडीएस के मुताबिक, अबकी बार मायावती के कोर जाटव वोटर ने बीजेपी प्लस को 21% और एसपी प्लस को 9% वोट किया. ये वो वोटर है, जिसने कभी भी मायावती को नहीं छोड़ा. अब कैबिनेट के जरिए इन वोटर को मैसेज देने की कोशिश की गई है कि उनका महत्व उतना ही है जितना ब्राह्मण वोटर का है.

योगी कैबिनेट में एससी समुदाय से आने वाले 8 मंत्रियों को जगह दी गई है, जिसमें बेबी रानी मौर्य को कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया गया है. उनके अलावा गुलाब देवी, असीम अरुण, दिनेश खटीक, जसवंत सैनी, रामकेश निषाद, अनूप प्रधान और विजय लक्ष्मी गौतम के नाम हैं. इनके अलावा संजीय गौंड (एसटी) को राज्य मंत्री का दर्जा दिया गया है.

योगी कैबिनेट को देखकर लगता है कि ये बीजेपी की सोशल इंजीनियरिंग 2.0 की शुरुआत है. 2007 में मायावती ने दलितों के अलावा ब्राह्मण और अन्य जातियों को जोड़ा था. अब उनसे कहीं बेहतर तरीके से बीजेपी ये काम करती नजर आ रही है.

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लोकसभा चुनाव के लिए वेस्ट यूपी में पार्टी को मजबूत करने की कोशिश

यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान एक नैरेटिव सेट किया गया कि वेस्ट यूपी में बीजेपी बुरी तरह से हारेगी. क्योंकि जाट बहुत ज्यादा नाराज हैं, लेकिन पहले चरण के चुनाव में ही बीजेपी ने 40 सीटों पर कब्जा कर बढ़त ले ली. बीजेपी को वेस्ट यूपी में ज्यादा नुकसान तो नहीं हुआ, लेकिन जाटों की नाराजगी वाला नैरेटिव अभी भी खत्म नहीं हुआ है. ऐसे में कैबिनेट के जरिए बीजेपी ने वेस्ट यूपी में फिर से खुद को मजबूती से स्थापित करने की कोशिश की है, जिसका फायदा लोकसभा चुनाव में मिल सकता है.

योगी कैबिनेट में वेस्ट यूपी से कुल 16 विधायकों को मंत्री बनाया गया है. यहां के 8 जिलों में मेरठ, सहारनपुर, आगरा, मुजफ्फरनगर, बागपत, रामपुर और गाजियाबाद से आए विधायकों को तवज्जो मिली है, जबकि शामली, बिजनौर और बुलंदशहर को निराशा हाथ लगी है. आगरा ग्रामीण से विधायक बेबी रानी मौर्य को कैबिनेट मंत्री का दर्जा मिला. एमएलसी भूपेंद्र सिंह और ठाकुर धर्मपाल सिंह को भी मंत्री पद मिला है.

बलदेव औलख, दिनेश खटीक, चौधरी के पी मलिक, सोमेंद्र तोमर गुजर, ठाकुर कुंवर बृजेश सिंह, एमएलसी जसवंत सैनी और गुलाब देवी सहित कई नाम इस लिस्ट में शामिल हैं.

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कैबिनेट में शक्ति का संतुलन बना रहे, इसलिए दिल्ली का दखल दिखा

यूपी में चुनाव प्रचार के दौरान कई बार खबरें आईं कि बीजेपी आलाकमान योगी से खुश नहीं है. मोदी के करीबी माने जाने वाले पूर्व आईएएस अधिकारी एके शर्मा को लेकर भी विवाद के कयास लगाए गए. ऐसे में योगी कैबिनेट में शक्ति का संतुलन बनाने की कोशिश की गई है.

वरिष्ठ पत्रकार उत्कर्ष सिन्हा कहते हैं कि योगी कैबिनेट में चार नाम ऐसे हैं, जो कहीं न कहीं योगी आदित्यनाथ के तो करीबी नहीं हैं. इसमें दो नाम तो ऐसे हैं जिन्हें डिप्टी सीएम बनाया गया है. केशव प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक. इनके अलावा अरविंद शर्मा और बेबी रानी मौर्य को भी कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया गया है. यूपी के चीफ सेक्रेटरी दुर्गा शंकर मिश्रा को एक्सटेंशन देखकर यूपी का चीफ सेक्रेटरी बनाया गया. जो कहीं न कहीं इशारा है कि दिल्ली कुछ हद तक यूपी में अपना कंट्रोल चाहती हैं.
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योगी कैबिनेट में नए चेहरों और प्रोफेशनल्स पर सबसे ज्यादा फोकस

योगी कैबिनेट में नए चेहरों और प्रोफेशनल्स पर सबसे ज्यादा फोकस किया गया है. करीब 22 ऐसे चेहरे हैं जो योगी के पहले कार्यकाल में मंत्री थे, लेकिन उन्हें अबकी बार बाहर कर दिया गया.नए चेहरों में असीम अरुण, एके शर्मा, सरिता भदौरिया, आशीष पटेल, विजय लक्ष्मी गौतम जैसे नाम हैं.

प्रोफेशनल्स की बात करें तो आईएएस अधिकारी रह चुके एके शर्मा के अलावा असीम अरुण (IPS), जितिन प्रसाद (MBA), अजीत पाल (इंजीनियर), बृजेश पाठक (वकील) और दयाशंकर मिश्र (कॉलेज प्रिंसिपल) जैसे नाम हैं.

बीजेपी को ठाकुर-ब्राह्मण और बनियों की पार्टी कहा जाता था, लेकिन पिछले कुछ चुनावों में ये छवि टूटती नजर आई. गैर यादव ओबीसी और गैर जाटवों बीजेपी के साथ दिखे. हालांकि अबकी बार एसपी का वोट प्रतिशत बढ़कर 34% तक पहुंच गया. यानी कुछ वोटर वापस अखिलेश यादव के साथ जुड़े हैं. ऐसे में बीजेपी ने कैबिनेट गठन के जरिए सोशल इंजीनियरिंग 2.0 की शुरुआत की है, जिसमें ठाकुर, ब्राह्मण और बनियों के अलावा मायावती के जाटव और अखिलेश के यादव वोटों को भी साधने की कोशिश की गई है.

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