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BJP का 'टूलकिट' कोरोना पर आलोचना को क्यों नहीं कर पा रहा कंट्रोल

मोदी सरकार उसी खेल में संघर्ष कर रही है जिसमें वो पिछले 7 सालों से सबसे बड़ी खिलाड़ी थी- 'नैरेटिव को कंट्रोल करना'.

आदित्य मेनन
पॉलिटिक्स
Published:
<div class="paragraphs"><p>केंद्र सरकार द्वारा नैरेटिव कंट्रोल का हर प्रयास हो रहा असफल</p></div>
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केंद्र सरकार द्वारा नैरेटिव कंट्रोल का हर प्रयास हो रहा असफल

(फोटो-अरूप मिश्रा/द क्विंट)

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नरेंद्र मोदी सरकार उसी खेल में संघर्ष करती नजर आ रही है जिसमें वो पिछले 7 सालों से सबसे बड़ी खिलाड़ी थी- 'नैरेटिव को कंट्रोल करना'. सरकार कोरोना महामारी के दूसरी लहर के कथित कुप्रबंधन को लेकर अत्यधिक आलोचना का सामना कर रही है. खासकर अंतरराष्ट्रीय मीडिया में छपी रिपोर्ट सरकार के लिए अत्यधिक शर्मिंदगी की वजह रही. सरकार ने ऐसी कोई कार्रवाई भी नहीं की जो इसका माकूल जवाब लगे.

तो वास्तव में सरकार से इस बार क्या चूक हुई?

इस सवाल का जवाब हम आर्टिकल में इन मुद्दों पर बात करते हुए पता लगाने की कोशिश करेंगे:

  • नैरेटिव को कंट्रोल करने की सरकारी कोशिश का बैकफायर कर जाना

  • अंतरराष्ट्रीय आलोचना और विदेश में मोदी की छवि को खतरा

  • देश के अंदर बढ़ती नाराजगी

  • सरकार का अस्पष्ट संवाद

कोशिशें जो बैकफायर कर गईं

केंद्र सरकार ने नैरेटिव को कंट्रोल करने और आलोचनाओं को रोकने के लिए कई प्रयास किए. लेकिन सारे प्रयास असफल रहे.

1. ब्लॉग vs द लैंसेट

प्रसिद्ध मेडिकल जनरल 'द लैंसेट' में छपे आलोचनात्मक आर्टिकल के जवाब में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने 'पंकज चतुर्वेदी थॉट्स' नामक ब्लॉग को शेयर किया. अगर भारत का स्वास्थ्य मंत्री 'द लैंसेट' के आर्टिकल के जवाब में अनजान ब्लॉग शेयर करे तो यह अपने आप में शर्मिंदगी की बात है. आलोचना इस बात पर भी हुई कि उस आर्टिकल में वैक्सीन पर संदेह व्यक्त करते हुए कई दावे किए गए थे. बावजूद इसके कि बाद में यह कहा गया ब्लॉग के लेखक पंकज चतुर्वेदी एक डॉक्टर हैं, जितना नुकसान होना था हो चुका था.

2. बीजेपी के द्वारा, बीजेपी के लिए, बीजेपी का

प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार के द्वारा महामारी का सामना करने के लिए पर्याप्त एक्शन ना लेने की आलोचना के जवाब में केंद्रीय मंत्रियों ने 'द डेली गार्जियन' के आर्टिकल शेयर किए. इसमें यह दावा था कि 'पीएम सच में बहुत काम कर रहे हैं'. बाद में पता चला कि दरअसल यह एक ओपिनियन पीस था जो बीजेपी के ही मीडिया सेल मेंबर सुरेश वर्मा द्वारा लिखा गया था.

3. रियल या फेक टूलकिट

कांग्रेस लेटर हेड के साथ बीजेपी नेताओं ने दो डॉक्यूमेंट शेयर किये- एक में मोदी सरकार के सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट की आलोचना थी तो दूसरे में बिंदुवार बताया गया था कि महामारी में मोदी सरकार को शर्मिंदा कैसे किया जा सकता है. ऐसे किसी भी टूलकिट को बनाने के आरोप से कांग्रेस ने इंकार कर दिया. AltNews ने फैक्टचेक कर बताया कि दूसरा डॉक्यूमेंट, जिसमें महामारी के बीच मोदी सरकार को निशाना बनाने का प्लान था, दरअसल नकली लेटरहेड पर छपा था.

4. हद से ज्यादा 'पॉजिटिविटी'

महामारी के बीच बीजेपी ,RSS और कई सरकार समर्थक इनफ्लुएंसरों ने पॉजिटिविटी के मैसेज को बढ़ाने की कोशिश की. प्रधानमंत्री के 'मन की बात' ट्विटर हैंडल ने ट्वीट करके लोगों को अपनी प्रेरक कहानियां शेयर करने तथा पॉजिटिविटी की शक्ति को सेलिब्रेट करने को कहा. हालांकि कड़ी ट्रोलिंग और आलोचना के बाद ट्वीट को डिलीट करना पड़ा.

उसके बाद RSS ने 'पॉजिटिविटी अनलिमिटेड' इवेंट का आयोजन किया. लेकिन सोशल मीडिया पर उसकी भी खूब आलोचना हुई तथा जोक्स शेयर किए गए. लोग पूछ रहे थे कि कहीं पॉजिटिविटी का मतलब पॉजिटिव कोविड-19 केसों के बढ़ने से तो नहीं है.

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अंतरराष्ट्रीय आलोचना

मोदी सरकार के कर्ता-धर्ताओं के लिए एक बड़ी समस्या है कि प्रधानमंत्री की जिस अंतरराष्ट्रीय छवि को बड़े करीने से बनाया गया था उसको एक के बाद एक कई धक्के लगे हैं. इन उदाहरणों को लीजिए

'द गार्जियन' ने लिखा 'कोविड नर्क में उतरा भारत' .'द ऑस्ट्रेलियन' ने कहा कि 'मोदी भारत को वायरल प्रलय की ओर ले जा रहे हैं'. 'द इकनॉमिस्ट' ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन के कोविड स्ट्रेस को दूर करने के लिए डार्क चॉकलेट खाने के सुझाव की आलोचना करते हुए 'लेट देम इट चॉकलेट' हेडिंग के साथ उनकी तुलना फ्रांस की अंतिम रानी से की. 'ले मोंडे' ने पीएम मोदी में पूर्वानुमान की कमी, घमंड और भीड़ का नेता होने का आरोप लगाया.

उसके बाद सत्ताधारी दल के कई नेताओं से जुड़े रिपोर्टों, जैसे साध्वी प्रज्ञा का कहना कि गोमूत्र से उनका कोविड ठीक हो गया और कई लोगों का अपने ऊपर गाय का गोबर लगाने की तस्वीरों ने पश्चिमी देशों में भारतीयों को लेकर सबसे बुरे पूर्वाग्रहों को और मजबूत किया.

हालांकि वैश्विक स्तर पर मोदी के घटते कद के लिए सिर्फ महामारी को दोष देना शायद गलत होगा .किसान आंदोलन ने भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है, जिसे काफी अटेंशन मिला था. अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में ट्रंप की हार ने भी इस स्टाइल के नेतृत्व के खिलाफ नैरेटिव को मजबूती दी है.

देश के अंदर आलोचना

सिर्फ अंतरराष्ट्रीय प्रेस ने ही नहीं भारतीय मीडिया ने भी महामारी के ऊपर सरकार से तीखे प्रश्न पूछने शुरू कर दिए हैं. दैनिक भास्कर ग्रुप का उदाहरण लीजिए जिस पर पहले बीजेपी पक्षधर होने का आरोप लगता था. हिंदी अखबार दैनिक भास्कर और उसी ग्रुप के गुजराती अखबार दिव्य भास्कर ने बीजेपी सरकारों के खिलाफ महामारी के कुप्रबंधन से जुड़ी स्टोरी को कवर किया है. दिव्य भास्कर ने अपनी स्टोरी में गुजरात में कोरोना से हुई मौत को लेकर छुपाए गए आंकड़ों को सामने लाया.

भारतीय मीडिया हाउस, विशेषकर स्थानीय मीडिया के लिए दबाव अंतरराष्ट्रीय मीडिया से कंपटीशन के कारण नहीं है. इन खबरों को कवर करने, कोविड से जुड़ी सच्चाई को सामने लाने का दबाव उनके दर्शकों एवं पाठकों की तरफ से भी है. हिंदी अखबार के एक वरिष्ठ संपादक ने मुझसे कहा "जब स्थिति इतनी खराब हो, हमारा पाठक भी प्रभावित हो रहा हो, तब हम वास्तविकता को छुपा नहीं सकते"

इन खबरों का असर बीजेपी की राजनैतिक स्थिति पर भी पड़ी है. प्रधानमंत्री मोदी की अप्रूवल रेटिंग कोविड-19 संकट के बाद के न्यूनतम स्तर पर है. इसके बावजूद मोदी की लोकप्रियता अभी बहुत अधिक है. सबसे बुरा प्रभाव बीजेपी मुख्यमंत्रियों पर पड़ा है. एक बीजेपी नेता ने कहा "इस संकट से पीएम राजनीतिक रूप से पार पा लेंगे, क्योंकि उन्होंने अपने आपको इन सब से दूर रखा है. लेकिन मुख्यमंत्रियों को शायद लना पड़े".

संवाद के मोर्चे पर अस्पष्टता

सरकार की इस समस्या की एक वजह उसके और उसके समर्थक फ्रंटों का कन्फ्यूजन भरा संवाद है. इसको इन नैरेटिवों के द्वारा समझा जा सकता है ,जिसे उन्होंने आगे बढ़ाया था-

1. 'इंडिया ने कोविड को हरा दिया है'

कुछ महीने पहले तक सरकार का मुख्य नैरेटिव था जीत के जश्न का. जैसा प्रधानमंत्री मोदी ने दावोस में भाषण देते हुए दावा किया था कि भारत ने कोविड को हरा दिया है.इससे लोगों को यह विश्वास हो गया कि भारत में कोरोना की दूसरी लहर नहीं आएगी. जब अप्रैल में दूसरी लहर ने दस्तक दी तो सरकार की पहली प्रतिक्रिया थी नकारने की. बीजेपी का पूरा ध्यान तब पश्चिम बंगाल चुनाव पर था जहां उसे अपनी जीत के आसार नजर आ रहे थे.

2. बलि के बकरे की खोज

जब केसों की संख्या और मरने वालों की संख्या बढ़ने लगी तब शायद बीजेपी बलि के बकरे की खोज में लग गई. उसके सोशल मीडिया हेड ने कोविड के बढ़ते मामलों का ठीकरा आंदोलनकारी किसानों पर फोड़ा तो दूसरों ने राज्य सरकारों पर. उत्तर प्रदेश सरकार तो ऑक्सीजन की कमी की शिकायत पर लोगों पर मामले दर्ज करने लगी. कई रिपोर्टों के मुताबिक यह अभी भी कई बीजेपी शासित राज्यों में हो रहा है.

3.फिर सब को दोष दिया जाने लगा

लेकिन जब स्थिति हद से ज्यादा खराब हो गई और आलोचना जमकर होने लगी तब सरकार ने सॉफ्ट अप्रोच अपनाते हुए कुछ गलतियों को स्वीकार किया और कहा कि वह अपना बेस्ट दे रही है. मोहन भागवत ने कहा कि सरकार की तरफ से भी गलतियां हुई हैं .लेकिन उन्होंने साथ में डॉक्टरों ,अस्पतालों और दूसरों पर भी दोष मढ़ दिया. कोविड संकट रोकने में नाकाम रहने पर सरकार को बचाने के लिए 'सब दोषी हैं' का नया नैरेटिव चला दिया गया.

4.पीएम मोदी के खिलाफ साजिश

उसके बाद आया कांग्रेस पर टूलकिट का आरोप- यह कि कांग्रेस छद्म मीडिया संस्थानों के साथ मिलकर प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ माहौल बनाने की कोशिश कर रही है. यह एक जांचा परखा फॉर्मूला है जिसका इस्तेमाल 2016 सर्जिकल स्ट्राइक के बाद भी विपक्ष पर किया गया था. तब सवाल था कि 'विपक्ष सबूत क्यों मांग रहा है?'.

हो सकता है कि यह फार्मूला राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर काम कर जाए, जहां राष्ट्रवादी भावनाएं उफान पर रहती हैं, लेकिन जब देश में हजारों हजार जानें जा रही हों और हर तरफ लाशें ही दिख रही हों तब विपक्ष को दोष देना या उस पर साजिश रचने का आरोप लगाना शायद काम नहीं आए.

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