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उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) की बदायूं लोकसभा सीट (Budaun lok sabha hot seat) पर तीसरे चरण में 7 मई को वोटिंग होगी. राजनीति के जानकारों से लेकर आम जनता की नजर भी इस सीट पर टिकी है. यहां मुख्य मुकाबला भारतीय जनता पार्टी (BJP) के दुर्विजय शाक्य (Durvijay Shakya) और समाजवादी पार्टी (SP) के सीनियर नेता शिवपाल यादव के बेटे आदित्य यादव (Aditya Yadav) के बीच है. हालांकि, बहुजन समाज पार्टी (BSP) ने मुस्लिम कैंडिडेट मुस्लिम खां को उतारकर मुकाबला त्रिकोणीय बनाने की कोशिश की है.
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आने वाली बदायूं लोकसभा सीट समाजवादी पार्टी का गढ़ मानी जाती है. एसपी ने शुरुआत में यहां से धर्मेंद्र यादव के नाम का ऐलान किया था, वो बदायूं से दो बार सांसद भी रहे हैं. लेकिन अखिलेश यादव ने बाद में शिवपाल यादव के उम्मीदवारी का ऐलान कर दिया. उसके बाद शिवपाल ने यहां से अपने बेटे आदित्य यादव को मैदान में उतार दिया, जिसके बाद बदायूं सीट चर्चा में आ गई.
दूसरी तरफ बीजेपी ने इस सीट पर मौजूदा सांसद संघमित्रा मौर्य का टिकट काटकर ब्रज क्षेत्र के अध्यक्ष दुर्विजय शाक्य पर भरोसा जताया है. जानकारों की मानें तो वह संघ की पसंद हैं, उन्हें संगठन का पूरा सपोर्ट भी है.
बीजेपी के लिए इस सीट पर चुनौती ज्यादा मानी जा रही है. हालांकि, एंटी इनकम्बेंसी फैक्टर को देखते हुए बीजेपी ने इस सीट पर अपना प्रत्याशी बदला है, बावजूद इसके मुकाबला टक्कर का माना जा रहा है.
2019 लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने स्वामी प्रसाद मौर्य की बेटी संघमित्रा को उतारा था. उन्होंने समाजवादी पार्टी प्रत्याशी धर्मेंद्र यादव को 19 हजार वोटों से हराया था. हालांकि, स्वामी प्रसाद मौर्य के विद्रोह और बीजेपी पर उनके लगातार हमलों के बाद, पार्टी ने उनकी बेटी और मौजूदा सांसद संघमित्रा मौर्य को टिकट देने से इनकार कर दिया.
भले ही मैदान में आदित्य हैं, लेकिन शिवपाल यादव ने चुनाव की कमान संभाल रखी है. इस सीट पर 1996 से एसपी का कब्जा रहा है. 2009 और 2014 में धर्मेंद्र यादव ने जीत दर्ज की थी.
हालांकि, 2019 के चुनाव में एसपी, बीएसपी और RLD गठबंधन में थे. मगर इसका फायदा बदायूं सीट पर नहीं मिला था. इस बार गठबंधन में कांग्रेस समाजवादी पार्टी के साथ है. देखना होगा कि इसका कितना फायदा मिलता है?
बदायूं सीट पर समाजवादी पार्टी से 6 सांसद बन चुके हैं. मुस्लिम-यादव समीकरण के दम पर एसपी के हौसले बुलंद है. हालांकि, बीएसपी ने मुस्लिम कैंडिडेट मुस्लिम खां को उतारकर एसपी के उम्मीदों को झटका दिया है. अगर मुस्लिम वोटर बंटता है, तब हार-जीत का मार्जिन कम हो सकता है. ऐसे में बीजेपी को फायदा हो सकता है.
2019 लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने समाजवादी पार्टी के इस गढ़ में सेंधमारी करते हुए 1991 के बाद जीत दर्ज की. संघमित्रा मौर्य ने धर्मेंद्र यादव को 19 हजार वोटों से हराया था. एसपी का वोट शेयर सिर्फ 2.91% घटा और उसे सीट गंवानी पड़ी. संघमित्रा को 47.30% वोट मिले थे.
2014 लोकसभा चुनाव में प्रचंड मोदी लहर के बीच एसपी ने इस सीट पर अपना कब्जा बरकरार रखा था. धर्मेंद्र यादव ने बीजेपी के वागीश पाठक को 1,66,347 वोटों से हराया था. उनका वोट शेयर 16.8% बढ़कर 48.50% हो गया था.
2009 के चुनाव में एसपी और बीएसपी के बीच मुकाबला था. धर्मेंद्र यादव ने धरम यादव को 32,542 वोटों से हराया था. एसपी को 31.70% और बीएसपी को 27.29% वोट मिले थे.
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