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योगी के गढ़ गोरखपुर में क्यों लड़ रहे चंद्रशेखर? एक तीर से कर रहे कई शिकार

गोरखपुर से सीएम के खिलाफ लड़कर सिर्फ सुर्खियां नहीं बटोरेंगे सियासी माइलेज भी लेंगे

विकास कुमार
पॉलिटिक्स
Updated:
<div class="paragraphs"><p><strong>योगी के गढ़ गोरखपुर में क्यों लड़ रहे चंद्रशेखर? एक तीर से कर रहे कई शिकार</strong></p></div>
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योगी के गढ़ गोरखपुर में क्यों लड़ रहे चंद्रशेखर? एक तीर से कर रहे कई शिकार

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आजाद समाज पार्टी के मुखिया चंद्रशेखर आजाद रावण (Chandrashekhar Azad Ravana) ने योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) से उनके गढ़ में ही दो-दो हाथ करने का मन बना लिया है. वे गोरखपुर शहरी सीट (Gorakhpur Urban Seat) से चुनाव लड़ेंगे. एसपी से गठबंधन टूटने पर उन्होंने इस बात की मंशा जाहिर की थी. कहा था अखिलेश (Akhilesh Yadav) कहें तो मैं योगी के खिलाफ चुनाव लड़ूंगा. गठबंधन तो टूट गया, लेकिन चंद्रशेखर आजाद ने अपनी मंशा को हकीकत में बदल दिया. लेकिन सवाल है कि इससे योगी की सियासी सेहत पर कोई फर्क पड़ेगा या चंद्रशेखर 'कुछ और' ही साधने की कोशिश में हैं?

पहले गोरखपुर शहरी सीट पर दलित वोटों का हाल जान लेते हैं. गोरखपुर शहर सीट पर दलित वोटों की स्थिति का आकलन करने के लिए वहां पर बीएसपी की स्थिति का पता लगाना होगा. पिछले 4 विधानसभा चुनावों में गोरखपुर शहर में बीएसपी तीसरे नंबर पर ही रही है.

  1. साल 2017 में वहां बीएसपी उम्मीदवार जनार्दन चौधरी को 24 हजार (11%) वोट मिले थे और वे तीसरे नंबर पर थे.

  2. 2012 के विधानसभा चुनाव में देवेंद्र चंद्र श्रीवास्तव ने बीएसपी के टिकट पर चुनाव लड़ा. उन्हें 23 हजार (14%) वोट मिले और वे तीसरे नंबर पर थे.

  3. साल 2007 के चुनाव में विनोद कुमार उपाध्याय ने चुनाव लड़ा, लेकिन वे तीसरे नंबर पर रहे. उन्हें 5 हजार (6%) वोट मिले.

  4. 2002 के विधानसभा चुनाव में अशोक कुमार श्रीवास्तव ने चुनाव लड़ा और वे चौथे नंबर पर थे. उन्हें 14 हजार (14%) वोट मिले थे.

यानी चार में से तीन बार तीसरे नंबर पर और एक बार चौथे पर बीएसपी की स्थिति थी. चंद्रशेखर आजाद का वही कोर वोट बैंक है जो बीएसपी का है. ऐसे में गोरखपुर शहर से बीएसपी भी अपने उम्मीदवार खड़े करती है तो ये वोट भी बंट जाएगा. ऐसे में सोचिए कि चंद्रशेखर आजाद की जीत की उम्मीद ना के बराबर है. फिर वे चुनाव क्यों लड़ रहे हैं?

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गोरखपुर शहर सीट पर दलितों का वोट थोड़ा ही है. अल्पसंख्यक भी कम हैं. जो दलित-ओबीसी और अल्पसंख्यक हैं वो परिसीमन के बाद गोरखपुर ग्रामीण में चल गए. वैश्य, कायस्थ, राजपूत, ब्राह्मण की संख्या ज्यादा है. परिसीमन के बाद गोरखपुर शहर में बीजेपी का वोट ग्राफ बढ़ा है.

गोरखपुर के पत्रकार मनोज कुमार सिंह कहते हैं, एसपी से गठबंधन नहीं होने पर चर्चा हुई कि कहीं चंद्रशेखर ने बीजेपी से तो साठगांठ नहीं कर ली. अब योगी के खिलाफ चुनाव लड़ने के फैसले से उनके खिलाफ बनती छवि भी साफ हो जाएगी. गोरखपुर सीट से जीतने की सबसे ज्यादा संभावना तभी है जब कोई दूसरी पार्टी उनका सपोर्ट कर दे. गोरखपुर में दलित वोट बीजेपी को भी मिलता रहा है. योगी आदित्यनाथ ने इस पर फोकस कर रखा है. गोरखपुर में बहुत सारी दलित बस्तियों के लोगों को युवा वाहिनी से जोड़ने का और उन्हें अपने कार्यक्रमों में बुलाने का काम किया. अबकी बार देखना दिलचस्प होगा कि गोरखपुर का दलित क्या फैसला लेता है.

खतरा योगी को नहीं बल्कि मायावती को हो सकता है?

जो हमने ऊपर बात की थी कि आखिर चुनाव जीतने के अलावा 'कुछ और' क्या है. वो यही है. यहां मामला योगी आदित्यनाथ को चैलेंज करने का नहीं बल्कि खुद को मायावती के एक विकल्प के रूप में स्थापित करने का भी हो सकता है. चंद्रशेखर की छवि युवा दलितों में एक लड़ने वाले और दलित प्राइड को हमेशा ऊपर रखने वाले नेता की रही है. पिछले सालों में मायावती की बीएसपी से ज्यादा दलित हकों के लिए चंद्रशेखर रावण मीडिया सुर्खियों में रहे. उन्होंने आंदोलन किया. सड़कों पर उतरे. लाठी खाई और जेल भी गए और अब सीधे सीएम योगी को चैलेंज करने पहुंच गए. ऐसे में दलित समुदाय के बीच मैसेज जाएगा कि हमारा एक लड़ाकू नेता दलित प्राइड के लिए सीधा सीएम को चुनौती दे रहा है. अब इस सीट से अगर बीएसपी अपने उम्मीदवार को चुनाव में उतारती है और गोरखपुर का दलित बीएसपी की बजाय चंद्रशेखर को ज्यादा वोट दे देता है तो ये मैसेज मायावती और उनकी पार्टी बीएसपी के लिए खतरे का संकेत हो सकता है.

ख्याल रखना होगा चंद्रशेखर ने कभी भी बीएसपी या मायावती के खिलाफ कुछ नहीं बोला है. यानी लाख अनदेखी के बाद भी उन्होंने मायावती को प्रतियोगी नहीं बताया. ऐसे में अब एक सवाल ये भी होगा क्या बीएसपी गोरखपुर शहर सीट से चंद्रशेखर के खिलाफ अपना उम्मीदवार खड़ा करेगी. अगर पार्टी ऐसा करती है तो आरोप लग सकते हैं कि दलितों की हिमायती पार्टी ने एक दलित नेता के खिलाफ प्रत्याशी खड़ा कर दलितों के संघर्ष को कमजोर किया, खासकर ऐसे दलित नेता के खिलाफ जिसने कभी भी माया के खिलाफ कुछ नहीं बोला. अगर ये सवाल उठा तो चुनाव हारकर भी चंद्रशेखर अपने वोटर के बीच जीतेंगे.

चंद्रशेखर की दलित प्राइड वाली छवि मजबूत होगी

चंद्रशेखर आजाद भले ही गोरखपुर शहर सीट से चुनाव न जीते, फिर भी उन्हें फायदा मिलेगा. दरअसल, इस चुनाव में उनका किसी से गठबंधन नहीं हुआ है. यानी वे कुल 403 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ सकते हैं. लेकिन अभी उनकी पार्टी की उतनी पहुंच नहीं है. ऐसे में इस चुनाव में जरिए उनकी पहली प्राथमिकता होगी कि जनता के बीच उनकी और पार्टी की चर्चा हो. दलितों के बीच चंद्रशेखर का मैसेज जाए. उनके बयान ज्यादा से ज्यादा दलितों तक पहुंचे. ये सबकुछ गोरखपुर शहर की सीट से चुनाव लड़ने के दौरान होगा. लोगों में मैसेज जाएगा कि चंद्रशेखर ने सीट जीतने से ज्यादा दलित प्राइड को महत्व दिया. इसका फायदा उन्हें आगे के चुनावों में मिलेगा.

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Published: 20 Jan 2022,02:48 PM IST

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