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छत्तीसगढ़ में कुछ महीनों बाद होने वाले विधानसभा चुनावों के पहले आज से राज्य सरकार राष्ट्रीय रामायण महोत्सव का आयोजन कर रही है. आयोजन रायगढ़ के रामलीला मैदान में तीन दिनों तक चलेगा, जिसमे इंडोनेशिया और कंबोडिया के रामायण दलों द्वारा भी कार्यक्रम प्रस्तुत किया जाएगा.
हालांकि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और छत्तीसगढ़ कांग्रेस सरकार द्वारा हिंदू देवी देवताओं पर यह फोकस नया नहीं है.
2018 विधानसभा चुनावों में भारी बहुमत के साथ सरकार बनाने के एक वर्ष के अंदर ही राज्य में राम से जुड़े धार्मिक स्थलों को विकसित किए जाने की चर्चाएं तेज हो गईं थीं और एक साल के अंदर ही राम वन गमन पथ को विकसित करने की मंजूरी भी राज्य सरकार की कैबिनेट मीटिंग में मिल गई थी.
योजना के चालू होने से लेकर अब तक में दो ही स्थानों को पूरी तरह से तैयार किया जा चुका है जिसमे रायपुर के पास चंद्रखुरी में कौशल्या माता का मंदिर और शिवरीनारायण शामिल हैं.
लेकिन इस योजना के, राम पर छत्तीसगढ़ कांग्रेस के उमड़ते प्रेम के और धार्मिक टूरिज्म के अलावा भी मुख्यमंत्री बघेल और कांग्रेस पार्टी द्वारा राम पर केंद्रित रहने के राजनीतिक मायने भी हैं.
छत्तीसगढ़ वैसे तो धार्मिक कट्टरता के नही जाना जाता है लेकिन बीते कुछ वर्षों में राज्य में हिन्दू मुस्लिम झड़पें, आदिवासी समुदाय में आदिवासी और ईसाई आदिवासियों के बीच हिंसा होती रही है.
बीते 8 अप्रैल को राजधानी से सटे इलाके बिरनपुर में दो समुदायों की झड़प में पहले एक व्यक्ति की मृत्यु हुई जिसके बाद भारी पुलिस बल तैनात किया गया था. इस हिंसा के बाद हिंदुत्व संगठनो ने विरोध प्रदर्शन किया था जिसके अगले दिन उसी इलाके में सामुदायिक हिंसा के तीन दिन बाद दूसरे समुदाय के बाप बेटे की हत्या कर दी गई थी.
इसके पहले इसी वर्ष जनवरी में बस्तर के नारायणपुर जिले में आदिवासी और ईसाई आदिवासियों के बीच हिंसक झड़प हुई थी जिसमे जिले के पुलिस अधीक्षक तक का सर फूट गया था.
तमाम मामलों में राज्य के वरिष्ठ पत्रकारों के अनुसार राज्य सरकार ने लगभग चुप्पी सी साध रखी थी.
राज्य के एक वरिष्ठ पत्रकार ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि "धार्मिक तनावों की वारदातें जो बीते कुछ समय में हुई हैं उनमें राज्य सरकार का रवैया केंद्र की मोदी शासित सरकार जैसा ही रहा है. ज्यादातर इन मामलों में राज्य सरकार ने कुछ भी कहने से बचने का प्रयास किया है".
यह पूछने पर कि क्या इस से कांग्रेस को चुनाव में फायदा मिलेगा इस पर पत्रकार कहते हैं कि
राज्य के राजनीतिक विश्लेषक अशोक तोमर कहते हैं कि मुख्यमंत्री बघेल पीएम मोदी से एक कदम आगे चल रहे हैं छत्तीसगढ़ में.
मुख्यमंत्री बघेल और कांग्रेस पार्टी का राममय राजनीति का विरोध भी देखने को मिला है. छत्तीसगढ़ के आदिवासी हिस्से बस्तर में आदिवासी समुदाय कांग्रेस के राम आश्रित राजनीति का विरोध जता चुका है.
राज्य में जब 'श्रीराम वनगमन पथ पर्यटन रथ यात्रा' निकाली गई उस समय उत्तरी छत्तीसगढ़ के कोरिया इलाके से तो रैली आसानी से निकल गई थी लेकिन दक्षिण के इलाके सुकमा में भारी विवाद हुआ था.
सुकमा के रामाराम में जहां सदियों से आदिवासियों का मेला लगता है और आराध्य देवी चिटमिट्टीन की पूजा-अर्चना भी होती है वहां पर स्थानीय आदिवासियों ने भारी विरोध किया था.
भारतीय जनता पार्टी भी कांग्रेस पर दिखावे की राजनीति करने का आरोप लगाती थी है.
भाजपा के प्रवक्ता केदार गुप्ता ने आरोप लगाते हुए कहा कि कांग्रेस सिर्फ दिखावे की राजनीति कर रही है.
हालांकि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता सुशील आनंद शुक्ला का कहना है कि राम वन गमन पथ और रामायण महोत्सव राजनीति से ज्यादा सांस्कृतिक विरासत का मामला है.
कहने को तो कांग्रेस पर कई बार सॉफ्ट हिंदुत्व के इल्जाम लगाते आए हैं, भाजपा के एजेंडे पर काम करने का भी आरोप लगा है लेकिन अगले विधानसभा चुनावों के कुछ पहले ही एक बड़ा सरकारी रामायण महोत्सव कांग्रेस को राजनीतिक फायदा पहुंचाने में कितना सक्षम होता है ये देखने लायक बात होगी.
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