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छत्तीसगढ़ सरकार का राम पर प्यार, BJP पर राजनीतिक वार है?

Chhattisgarh: मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और छत्तीसगढ़ कांग्रेस सरकार द्वारा हिंदू देवी देवताओं पर यह फोकस नया नहीं है.

विष्णुकांत तिवारी
पॉलिटिक्स
Published:
<div class="paragraphs"><p>छत्तीसगढ़ सरकार का राम पर प्यार, BJP पर राजनीतिक वार है?</p></div>
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छत्तीसगढ़ सरकार का राम पर प्यार, BJP पर राजनीतिक वार है?

(फोटो- क्विंट हिंदी)

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छत्तीसगढ़ में कुछ महीनों बाद होने वाले विधानसभा चुनावों के पहले आज से राज्य सरकार राष्ट्रीय रामायण महोत्सव का आयोजन कर रही है. आयोजन रायगढ़ के रामलीला मैदान में तीन दिनों तक चलेगा, जिसमे इंडोनेशिया और कंबोडिया के रामायण दलों द्वारा भी कार्यक्रम प्रस्तुत किया जाएगा.

हालांकि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और छत्तीसगढ़ कांग्रेस सरकार द्वारा हिंदू देवी देवताओं पर यह फोकस नया नहीं है.

2018 विधानसभा चुनावों में भारी बहुमत के साथ सरकार बनाने के एक वर्ष के अंदर ही राज्य में राम से जुड़े धार्मिक स्थलों को विकसित किए जाने की चर्चाएं तेज हो गईं थीं और एक साल के अंदर ही राम वन गमन पथ को विकसित करने की मंजूरी भी राज्य सरकार की कैबिनेट मीटिंग में मिल गई थी.

सरकारी दावा है कि राम ने अपने वनवास के दौरान छत्तीसगढ़ के लगभग 51 जगहों पर रुककर समय व्यतीत किया था और इन्ही जगहों में से 9 स्थलों को राम वन गमन पथ के पहले भाग के अंदर विकसित करने की योजना बनाई गई.

योजना के चालू होने से लेकर अब तक में दो ही स्थानों को पूरी तरह से तैयार किया जा चुका है जिसमे रायपुर के पास चंद्रखुरी में कौशल्या माता का मंदिर और शिवरीनारायण शामिल हैं.

लेकिन इस योजना के, राम पर छत्तीसगढ़ कांग्रेस के उमड़ते प्रेम के और धार्मिक टूरिज्म के अलावा भी मुख्यमंत्री बघेल और कांग्रेस पार्टी द्वारा राम पर केंद्रित  रहने के राजनीतिक मायने भी हैं.

राम के नाम पर राजनीति से चुनाव में फायदा मिलेगा ?

छत्तीसगढ़ वैसे तो धार्मिक कट्टरता के नही जाना जाता है लेकिन बीते कुछ वर्षों में राज्य में हिन्दू मुस्लिम झड़पें, आदिवासी समुदाय में आदिवासी और ईसाई आदिवासियों के बीच हिंसा होती रही है.

बीते 8 अप्रैल को राजधानी से सटे इलाके बिरनपुर में दो समुदायों की झड़प में पहले एक व्यक्ति की मृत्यु हुई जिसके बाद भारी पुलिस बल तैनात किया गया था. इस हिंसा के बाद हिंदुत्व संगठनो ने विरोध प्रदर्शन किया था जिसके अगले दिन उसी इलाके में सामुदायिक हिंसा के तीन दिन बाद दूसरे समुदाय के बाप बेटे की हत्या कर दी गई थी.

इसके पहले इसी वर्ष जनवरी में बस्तर के नारायणपुर जिले में आदिवासी और ईसाई आदिवासियों के बीच हिंसक झड़प हुई थी जिसमे जिले के पुलिस अधीक्षक तक का सर फूट गया था.

तमाम मामलों में राज्य के वरिष्ठ पत्रकारों के अनुसार राज्य सरकार ने लगभग चुप्पी सी साध रखी थी.

राज्य के एक वरिष्ठ पत्रकार ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि "धार्मिक तनावों की वारदातें जो बीते कुछ समय में हुई हैं उनमें राज्य सरकार का रवैया केंद्र की मोदी शासित सरकार जैसा ही रहा है. ज्यादातर इन मामलों में राज्य सरकार ने कुछ भी कहने से बचने का प्रयास किया है". 

यह पूछने पर कि क्या इस से कांग्रेस को चुनाव में फायदा मिलेगा इस पर पत्रकार कहते हैं कि

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"राज्य के मध्य और उत्तरी भाग में क्योंकि भाजपा 15 वर्षों तक शासन में थी जिसके चलते इन इलाकों में धार्मिक कट्टरता बढ़ी है. हालांकि राज्य में अन्य समुदाय जैसे की मुस्लिमों की आबादी महज 2-3 प्रतिशत ही है और ईसाइयों को आबादी भी काफी कम है इसके बावजूद कट्टर हिंदुत्व की भावनाओं ने जोर पकड़ा है और इसी बात का फायदा अब कांग्रेस उठा रही है. मसलन ये कहना सही होगा कि कांग्रेस उस तर्ज़ पर काम कर रही है कि अगर धर्म के आधार पर ही वोट देना है तो हम किसी से कम नहीं"

राज्य के राजनीतिक विश्लेषक अशोक तोमर कहते हैं कि मुख्यमंत्री बघेल पीएम मोदी से एक कदम आगे चल रहे हैं छत्तीसगढ़ में.

जब आप बघेल जी का कार्यकाल देखेंगे तो आप पाएंगे कि उन्होंने भाजपा के चुनावी एजेंडे और हथियार को पूरी तरह से छीन लिया है. भाजपा हमेशा से धर्म की राजनीति करती रही है अब कांग्रेस ने राम वन गमन पथ बना दिया, कौशल्या माता का मंदिर भव्य बना दिया, रामायण महोत्सव करवा रहे है तो अब भाजपा के पास ये बोलने के लिए नही बचा कि ये सरकार एंटी हिंदू है. ये वैसा ही है कि अगर मोदी जी हार्डबैक एडिशन हैं धर्म के तो बघेल जी पेपरबैक एडिशन". 
अशोक तोमर, राजनीतिक विश्लेषक

राज्य में कांग्रेस के राम जटित राजनीति का विरोध भी हुआ है, क्या असर पड़ेगा?

मुख्यमंत्री बघेल और कांग्रेस पार्टी का राममय राजनीति का विरोध भी देखने को मिला है. छत्तीसगढ़ के आदिवासी हिस्से बस्तर में आदिवासी समुदाय कांग्रेस के राम आश्रित राजनीति का विरोध जता चुका है.

राज्य में जब 'श्रीराम वनगमन पथ पर्यटन रथ यात्रा' निकाली गई उस समय उत्तरी छत्तीसगढ़ के कोरिया इलाके से तो रैली आसानी से निकल गई थी लेकिन दक्षिण के इलाके सुकमा में भारी विवाद हुआ था.

सुकमा के रामाराम में जहां सदियों से आदिवासियों का मेला लगता है और आराध्य देवी चिटमिट्टीन की पूजा-अर्चना भी होती है वहां पर स्थानीय आदिवासियों ने भारी विरोध किया था.

बीबीसी के लिए छत्तीसगढ़ से पत्रकार आलोक प्रकाश पुतुल की एक रिपोर्ट के अनुसार आदिवासियों के भारी विरोध के कारण रथयात्रा को बिना मिट्टी के ही गांव से रवाना होना पड़ा.

भारतीय जनता पार्टी भी कांग्रेस पर दिखावे की राजनीति करने का आरोप लगाती थी है.

भाजपा के प्रवक्ता केदार गुप्ता ने आरोप लगाते हुए कहा कि कांग्रेस सिर्फ दिखावे की राजनीति कर रही है.

"जब कांग्रेस ने देखा कि अयोध्या में राम मंदिर भाजपा ने बनवा दिया और कोर्ट ने इस पर हमारे पक्ष में फैसला दिया तब इनको समझ में आया कि राजनीति में हिंदुत्व का महत्व क्या है. लेकिन इसके बाद क्योंकि इनकी सीरत ही तुष्टिकरण की है इसलिए ये आज भी वही कर रहे हैं. एक तरफ ये रामायण और राम राम चिल्लाते हैं वहीं दूसरी तरफ से बस्तर में हो रहे धर्मांतरण पे चुप्पी साधे रहते हैं"
केदार गुप्ता, प्रवक्ता भाजपा

हालांकि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता सुशील आनंद शुक्ला का कहना है कि राम वन गमन पथ और रामायण महोत्सव राजनीति से ज्यादा सांस्कृतिक विरासत का मामला है.

"राम को लेकर कांग्रेस पार्टी राजनीति नहीं कर रही है. ये छत्तीसगढ़ के कल्चरल हेरिटेज से जुड़ा मामला है ये हमारी सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा है. ये राम का ननिहाल है. राम जी ने वन गमन के दौरान लगभग 10 साल छत्तीसगढ़ में बिताए थे और हमारी सरकार आने के बाद हमने राज्य की विरासत और इतिहास को संजोने का काम किया है. इसी कड़ी में हमने राज्य के खान पान, तीज त्योहारों को बढ़ावा दिया है. लोग राम को जानते हैं लेकिन छत्तीसगढ़ के हिस्से के राम को नही जानते हैं और हम उसी के लिए कार्य कर रहे हैं" 
सुशील आनंद शुक्ला, प्रवक्ता छत्तीसगढ़ कांग्रेस

कहने को तो कांग्रेस पर कई बार सॉफ्ट हिंदुत्व के इल्जाम लगाते आए हैं, भाजपा के एजेंडे पर काम करने का भी आरोप लगा है लेकिन अगले विधानसभा चुनावों के कुछ पहले ही एक बड़ा सरकारी रामायण महोत्सव कांग्रेस को राजनीतिक फायदा पहुंचाने में कितना सक्षम होता है ये देखने लायक बात होगी.

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