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नागरिकता संशोधन बिल को लेकर संसद के उच्च सदन यानी राज्यसभा में जमकर हंगामा हो रहा है. सरकार और विपक्ष को लेकर तीखी बहस जारी है. बुधवार को बहस के दौरान जब गृह मंत्री अमित शाह नागरिकता संशोधन बिल को सही ठहराने के लिए तर्क पेश कर रहे थे, तो विपक्ष लगातार हंगामा कर रहा था. इस बीच विपक्ष के हंगामे को देखते हुए कुछ देर के लिए राज्यसभा टीवी का लाइव टेलीकास्ट रोक दिया गया.
बता दें, राज्यसभा टीवी का लाइव टेलीकास्ट उच्च सदन के लिए सभापति वेंकैया नायडू के निर्देश पर रोका गया.
सभापति वेंकैया नायडू ने राज्यसभा टीवी का लाइव टेलीकास्ट रोकने का फैसला उस वक्त लिया, जब गृह मंत्री अमित शाह असम के लोंगों के हितों की रक्षा पर सफाई दे रहे थे और विपक्ष उन्हें घेर रहा था. अमित शाह ने कहा-
गृह मंत्री जब असम समझौते के क्लॉज 6 के तहत गठित कमेटी की रिपोर्ट को लेकर चर्चा कर रहे थे, तभी विपक्ष की तरफ से एक सांसद की आवाज आई कि 'यह (अमित शाह जो बता रहे हैं) भ्रामक है...' सभापति ने शाह को बीच में टोकने वाले विपक्षी सांसद से कहा कि उनका व्यवहार सही नहीं है. उन्होंने कहा, 'यह आचरण गलत है, कृपया बैठ जाइए. यह रिकॉर्ड पर नहीं जाएगा. इसे दिखाया भी नहीं जाना चाहिए.'
सभापति ने ये भी कहा कि अगर सदस्यों ने हंगामा नहीं रोका, तो वे उनका नाम आगे दे देंगे, जिसके तहत सदस्य को एक दिन के लिए सदन की कार्यवाही से बाहर कर दिया जाता है. उन्होंने ये भी कहा कि हंगामा कर रहे सदस्य जो कुछ भी कहेंगे वो रिकॉर्ड पर नहीं जाएगा.
राज्यसभा सभापति वेंकैया नायडू ने कहा, 'कुछ भी नहीं दिखाया जाना चाहिए.' सभापति के दोबारा बोलने के बाद 4-5 सेकंड के अंदर राज्यसभा का लाइव टेलीकास्ट रोक दिया गया. इसके बाद 20-22 सेकंड तक रुकने के बाद सदन की कार्यवाही का दोबारा लाइव टेलीकास्ट शुरू हुआ.
राज्यसभा के सूत्रों का कहना है कि विपक्षी सदस्यों के बढ़ते हंगामे के बाद सभापति वेंकैया नायडू ने राज्यसभा टीवी पर प्रसारित हो रही बहस का लाइव टेलीकास्ट रोकने के निर्देश दिए. इसके बाद कुछ देर के लिए लाइव टेलीकास्ट रोक दिया गया.
राज्यसभा टीवी के सूत्रों ने बताया कि जब सभापति रेड लाइट बटन दबाते हैं तो इसका संदेश होता है कि टेलीकास्ट रोक दिया जाए.
नागरिकता संशोधन बिल, पड़ोसी देशों के मुस्लिम प्रवासियों को नागरिकता प्राप्त करने से रोकता है. इस बिल को लेकर देशभर में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं.
नागरिकता कानून को लेकर तभी से विवाद शुरू हो गया था, जब इस साल की शुरुआत में असम के सभी 3.3 करोड़ निवासियों को नेशनल सिटिजनशिप रजिस्टर के तहत निर्देश जारी किए गए थे. एनआरसी के तहत असम के सभी निवासियों को दस्तावेजी सबूतों से ये साबित करना था, कि वे या उनके पूर्वज भारतीय नागरिक थे. इस प्रक्रिया के बाद असम के लगभग 20 लाख लोगों की नागरिकता खतरे में पड़ गई है.
900 साइंटिस्ट और स्कॉलर्स के एक ग्रुप ने नागरिकता संशोधन बिल के खिलाफ एक संयुक्त बयान जारी कर कहा है कि भारतीय नागरिकता देने के लिए धर्म का कानूनी मापदंड के रूप में इस्तेमाल ठीक नहीं है.
एक ओपन लेटर के जरिए लगभग 600 लेखकों, कलाकारों, कार्यकर्ताओं, पूर्व नौकरशाहों और पूर्व न्यायाधीशों ने भी भारत सरकार से संविधान को धोखा न देने की अपील की है.
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Published: 11 Dec 2019,04:16 PM IST