advertisement
राष्ट्रपति चुनाव (Presidential Election) करीब हैं, और सत्ताधारी NDA ने आदिवासी समुदाय से आने वाली द्रौपदी मुर्मू (Draupadi Murmu) को अपना उम्मीदवार बनाया है. विपक्ष ने बीजेपी से टीएमसी में गए यशवंत सिन्हा पर दांव खेला है. इस सबके बीच सवाल ये है कि बीजेपी और उसके सहयोगियों ने द्रौपदी मुर्मू को ही राष्ट्रपति उम्मीदवार के लिए क्यों चुना?
द्रौपदी मुर्मू ओड़िशा के आदिवासी समुदाय से आती हैं. जिनके देश में करीब 9 फीसदी वोटर हैं. बीजेपी ने उन्हें उम्मीदवार बनाकर आने वाले लोकसभा चुनाव में आदिवासी वोटरों पर फोकस किया है. पिछली बार एक दलित को राष्ट्रपति बनाकर बीजेपी के नेताओं ने लगातार कहा था कि हमारी पार्टी सबको बराबर अधिकार देना चाहती है. क्योंकि बीजेपी पर सवर्णों की पार्टी होने का ठप्पा लगता रहा है. जब से नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने हैं तब से लगातार पार्टी अपनी इस छवि को बदलने की कोशिश करती दिखती है. जिसकी एक झलक राज्यपालों की नियुक्ति और राज्यसभा सांसदों के चुने जाने में भी नजर आती है.
देश में लगभग 9 फीसदी वोटर्स वाला ये समुदाय लोकसभा चुनाव में काफी अहम है. क्योंकि 47 सीटें तो अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित ही हैं और इससे कहीं ज्यादा सीटों पर इनका प्रभाव है. बीजेपी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में आरक्षित 47 सीटों में से 31 पर जीत हासिल की थी. अपनी इसी पकड़ को पार्टी और मजबूत करना चाहती है.
दरअसल लोकसभा चुनाव में भले ही आदिवासी बहुल इलाकों में बीजेपी ने जीत दर्ज की, लेकिन उसे कई राज्यों के विधानसभा चुनावों झटका लगा था. इनमें छत्तीसगढ़, झारखंड, राजस्थान और ओड़िशा शामिल हैं. अगले दो सालों में 18 राज्यों में चुनाव होने हैं. जिनमें दक्षिण के बडे राज्य शामिल हैं. इनमें से पांच राज्य ऐसे हैं जहां आदिवासी वोटर्स की संख्या अच्छी खासी है. जैसे- महाराष्ट्र, झारखंड, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और गुजरात. इन राज्यों की करीब 350 सीटें ऐसी हैं जहां मुर्मू फैक्टर बीजेपी के लिए काम कर सकता है.
अगले कुछ वक्त में गुजरात में भी विधानसभा चुनाव होने हैं और पिछली बार बीजेपी ने गुजरात में किनारे पर सरकार बनाई थी. उसे दशकों बाद कांग्रेस से कड़ी टक्कर का सामना करना पड़ा था, जिसकी एक बड़ी वजह आदिवासी वोटर भी थे. क्योंकि गुजरात की कुल आबादी मे करीब 15 फीसदी आदिवासी हैं और उनके लिए 27 सीटें आरक्षित हैं. जिनमें से 2017 के चुनाव में आधी से ज्यादा सीटें बीजेपी हार गई थी. इस बार मुर्मू फैक्टर के सहारे बची सीटों पर बीजेपी कमल खिलाने की कोशिश करेगी.
द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाये जाने के बाद विपक्ष की एकता में सेंधमारी बीजेपी कर सकती है. जैसे ही उनके नाम का ऐलान हुआ, वैसे ही ओड़िशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने इस फैसले का स्वागत किया. आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी ने भी उनका समर्थन किया है. इसका मतलब है वो वोट भी देंगे. इसके अलावा झारखंड में कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार चला रहे हमंत सोरेन के लिए द्रौपदी मुर्मू का विरोध करना आसान नहीं होगा. क्योंकि वो आदिवासी राजनीति करते हैं.
इसके साथ ही बिहार में चिराग पासवान और जीतनराम मांझी की पार्टी ने भी द्रौपदी मुर्मू के समर्थन का ऐलान कर दिया है. जिनसे विपक्ष उम्मीद लगाए बैठा था. नीतीश कुमार भी एनडीए उम्मीदवार का समर्थन करने का ऐलान कर चुके हैं. हालांकि आम आदमी पार्टी, टीआरएस और वाईएसआरसीपी जैसी पार्टियों ने अभी पत्ते नहीं खोले हैं.
भारतीय जनता पार्टी लगातार सोशल इंजीनियरिंग के नए-नए दांव आजमा रही है. राज्यसभा और लोकसभा चुनावों में ओबीसी चेहरों पर फोकस, दलित राष्ट्रपति बनाना और अब आदिवासी को राष्ट्रपति पद के लिए चुनना उसका एक और कदम है. जिसके जरिए वो सवर्णों की पार्टी वाले ठप्पे को कहीं पीछे छोड़ देना चाहती है. इस सोशल इंजीनियरिंग का असर यूपी विधानसभा चुनाव पर भी खूब दिखा. क्योंकि बीजेपी को इस बार अच्छी खासी संख्या में वहां दलित वोट मिला.
बीजेपी के लिए हाल में सपन्न राज्यसभा चुनाव और कुछ राज्यों में एमएलसी चुनाव राष्ट्रपति चुनाव के लिए सुखद हो सकते हैं. क्योंकि इन चुनावों में कई जगह बीजेपी ने अप्रत्याशित तरीके से विपक्ष में सेंधमारी की और उम्मीद के विपरीत अपने उम्मीदवार जिता लिए. जैसे हरियाणा में कांग्रेस के पास जरूरत से ज्यादा वोट होने के बावजूद अजय माकन हार गए और बीजेपी समर्थित कार्तिकेय शर्मा जीत गए. महाराष्ट्र के एमएलसी चुनाव में बीजेपी के पास केवल 2 सरप्लस वोट थे और उन्होंने 24 और वोटों का जुगाड़ करके अपने उम्मीदवार को जितवाया. इससे बीजेपी की उम्मीदों को पर लगे होंगे कि विपक्ष में सेंधमारी की जा सकती है.
29 जून तक नामांकन, 18 जुलाई को मतदान और 21 जुलाई को नतीजे
767 सांसद (540 लोकसभा, 227 राज्यसभा) और कुल 4033 विधायक राष्ट्रपति चुनेंगे.
हर सांसद के वोट का वेटेज 700 है यानी कुल वोट वेटेज 3,13,600
विधायकों के वोट का वेटेज राज्य की आबादी और कुल विधायकों की संख्या से तय होता है
यूपी के विधायक के वोट का सबसे ज्यादा वेटेज 208 है, सिक्किम के विधायक का वोट वेटेज सबसे कम 7 है
कुल 4033 विधायकों का वेटेज 5,43,231 है.
इस तरह चुनाव के लिए कुल वोट वेटेज 10,80,131 होता है
जीतने के लिए 50% यानी 5,40,065 से ज्यादा वेटेज के वोट चाहिए
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)
Published: undefined