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मोदी सरकार में रक्षा मंत्री के तौर पर काम करने के बाद अब मोदी सरकार 2.0 में निर्मला सीतारमण को वित्त मंत्रालय सौंपा गया है. बतौर रक्षा मंत्री सीतारमण को कई बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ा था. ठीक इसी तरह अब बतौर वित्त मंत्री उनके सामने कई बड़ी चुनौतियां होंगी. जिनसे निपटना उनके लिए बिल्कुल भी आसान नहीं होने वाला है.
हाल ही में जारी रिपोर्ट्स के मुताबिक अर्थव्यवस्था में सुस्ती वित्त साल 2020 में भी बनी रह सकती है और चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में इसका तत्काल असर देखने को मिल सकता है. ऐसे में अब मोदी सरकार में वित्त मंत्री बनीं निर्मला सीतारमण के सामने सुस्त पड़ी अर्थव्यवस्था को रफ्तार देना सबसे बड़ी चुनौती है. अर्थव्यवस्था की विकास दर वित्त वर्ष 2018-19 की चौथी तिमाही में 6.3 फीसदी रहने की उम्मीद की जा रही है, जोकि पिछली छह तिमाहियों में सबसे कम होगी.
भारत में पिछले कुछ सालों के दौरान बेरोजगारी सबसे बड़ी समस्या बनकर उभरी है. बढ़ती आबादी में पर्याप्त रोजगार मुहैया कराना वित्त मंत्री और मोदी सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी. NSSO ने भी बताया कि देश में बेरोजगारी 45 साल में सबसे ज्यादा है. हालांकि सरकार ने इस डाटा को मानने कसे मना कर दिया है. सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी (CMIE) के सर्वे के मुताबिक नौकरी की तलाश वाले लोगों की संख्या में भी कमी आई है. इसका ये मतलब निकाला जा रहा है कि लोगों को नौकरी मिलने की उम्मीद नहीं बची है.
मोदी सरकार और वित्त मंत्री सीतारमण के सामने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की गिरती हुई दर पर लगाम लगाना भी एक चुनौती है. आने वाले वित्त वर्षों में जीडीपी की दर में सुधार लाना भारत के लिए बेहद जरूरी है. वित्त वर्ष 2019 की दूसरी तिमाही से जीडीपी विकास दर लगातार घटती जा रही है. वित्त वर्ष 2018-19 की पहली तिमाही में जीडीपी विकास दर 8 फीसदी थी जो दूसरी तिमाही में घटकर 7 फीसदी और तीसरी में 6.6 फीसदी पर आ गई.
निर्मला सीतारमण के सामने राजकोषीय घाटे को कम करने का भी बड़ा चैलेंज है. वित्त वर्ष 2018-19 में सरकार ने राजकोषीय घाटा 3.4 फीसदी रखने का लक्ष्य रखा गया था जिसे बाद में संशोधित कर 3.3 फीसदी कर दिया गया. फरवरी के अंत में राजकोषीय घाटा बढ़कर 8,51,499 करोड़ रुपये हो गया, जिसने बजट के अनुमान को भी पार कर लिया. इसके साथ ही ये जीडीपी का 4.52 फीसदी भी हो गया.
बैंकों के एनपीए का संकट अभी खत्म भी नहीं हुआ था कि IL&FS की चूक के बाद NBFC में फंड की किल्लत का पहाड़ टूट पड़ा और NBFC संकट खड़ा हो गया. इंफ्रास्ट्रक्टर प्रोजेक्ट में पैसे डूब जाने की वजह से 91 हजार करोड़ रुपये का कर्ज डिफॉल्ट होने की कगार पर आ गया. इसकी वजह से एनबीएफसी की पाइपलाइन बंद हो गई. जिसे सुधारना जरूरी है.
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Published: 31 May 2019,03:16 PM IST