advertisement
महाराष्ट्र (Maharashtra) के मुख्यमंत्री बनने के बाद अयोध्या (Ayodhya) की अपनी पहली यात्रा के दौरान एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) ने रविवार, 9 अप्रैल को यह संदेश देने की कोशिश की कि उनकी पार्टी शिवसेना पूर्ण रूप से हिंदुत्व पार्टी है.
उन्होंने कहा, "राम मंदिर और अयोध्या भारतीय जनता पार्टी और शिवसेना के लिए कोई राजनीतिक मुद्दा नहीं है. यह एक ऐसा मुद्दा है जो हमारे दिल के करीब है, यह हमारी आस्था और भावनाओं से जुड़ा है."
शिंदे ने दावा किया कि उनका गुट शिवसेना के संस्थापक बालासाहेब ठाकरे की विचारधारा को आगे बढ़ा रहा है, उन्होंने कहा कि राम मंदिर का निर्माण देखना ठाकरे का सपना था.
शिंदे ने 2022 में पार्टी प्रमुख और तत्कालीन सीएम उद्धव ठाकरे के खिलाफ यह कहते हुए बगावत कर दी थी कि उद्धव ने अपने पिता की विचारधारा के साथ धोखा किया है. उन्होंने कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के साथ गठबंधन करके अपनी राजनीति से समझौता किया है. शिंदे ने उद्धव पर हिंदुत्व से दूर जाने का आरोप लगाकर अपने विद्रोह को एक वैचारिक और नैतिक आधार दिया और खुद को और अपनी पार्टी का इसका संरक्षक बताया.
जब शिंदे ने ठाकरे से नाता तोड़ा और बीजेपी से हाथ मिलाया, तब उनकी राज्यव्यापी उपस्थिति नहीं थी, और न ही उन्हें एक विशेष रूप से मुखर राजनेता के रूप में जाना जाता था. वह संयोग से एक पार्टी के नेता बन गए और उन्हें अचानक उस पार्टी की पहचान ढूंढनी पड़ी.
शिंदे ने पूरे दिल से हिंदुत्व विचारधारा को अपनाया. वह नियमित रूप से इसका उल्लेख करते हैं और ठाकरे पर व्यक्तिगत लाभ के लिए इसे छोड़ने का आरोप लगाते नहीं थकते. इस प्रक्रिया में, हिंदुत्व को लेकर उनका रुख और स्पष्ट हो गया है. यहां तक कि अब उन्हें गलती से भी कोई बीजेपी नेता समझने की गलती नहीं कर सकता.
शिंदे अपनी शिवसेना को एक हिंदुत्व पार्टी के रूप में स्थापित करने का प्रयास कर रहे हैं. जब कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने हाल ही में वीडी सावरकर पर कटाक्ष किया, तो शिवसेना और बीजेपी ने पूरे महाराष्ट्र में सावरकर गौरव यात्राएं निकालीं. राहुल ने कहा था, "मैं गांधी हूं, सावरकर नहीं और गांधी परिवार माफी नहीं मांगते."
शिवसेना ने सकल हिंदू समाज के बैनर तले राज्यव्यापी हिंदू राष्ट्रवादी रैलियों को मौन समर्थन दी है, जो "भूमि जिहाद" और "लव जिहाद" जैसे व्यापक रूप से खारिज किए गए मुद्दों को उठाते रहे हैं. संदीपन भुमारे, अतुल सावे और प्रदीप जायसवाल जैसे पार्टी नेता इन रैलियों में शामिल भी हुए हैं, लेकिन मुख्यमंत्री के रूप में शिंदे ने न तो इन रैलियों के आयोजकों के खिलाफ कोई कार्रवाई की है और न ही नफरत भरे भाषण देने वालों के खिलाफ कोई कार्रवाई की है.
शिवसेना का कार्यक्रम ज्यादातर बीजेपी जैसा लगने लगा है. शिंदे जिस तरह से अपनी पार्टी की विचारधारा गढ़ रहे हैं, वह बीजेपी की नकल लगती है. वह बीजेपी नेता की तरह लगभग हर मौके पर प्रभावशाली ढंग से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ करते हैं.
शिंदे को अभी इन सवालों का जवाब नहीं देना पड़ सकता है, जब वह मुख्यमंत्री हैं और उनकी पार्टी राज्य में शासन कर रही है. हालांकि, चुनाव के दौरान जब वह वोट के लिए महाराष्ट्र की जनता के पास जाएंगे, तो उन्हें यह सुनिश्चित करना होगा कि मतदाता उनकी पार्टी को भगवा पार्टी की सस्ती कॉपी के रूप में न देखें.
अगर शिंदे इसमें विफल रहते हैं, तो बीजेपी के लिए अतिक्रमण करना और इसे महाराष्ट्र के नक्शे से मिटा देना मुश्किल नहीं होगा, जैसा कि कई राजनीतिक टिप्पणीकारों ने भविष्यवाणी की है.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)
Published: undefined