ADVERTISEMENTREMOVE AD

Exclusive: हिंदुत्व,संघ,UAPA...वरवर राव की किताब से पेंगुइन ने सेंसर किए ये शब्द

कवि Varavara Rao की कविताओं में 'क्रांति', 'भगवाकरण' और 'अयोध्या' के संदर्भ से प्रकाशक Penguin को आपत्ति

Updated
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

भारत की नामी पब्लिशिंग कंपनी पेंगुइन रैंडम हाउस इंडिया, देशद्रोह और अवमानना के आरोपों के डर से तेलुगु कवि वरवर राव (Varavara Rao) की कविताओं के सेंसरशिप की सलाह दी है. Varavara Rao: A Revolutionary Poet किताब के लेटेस्ट एडिट पर किए गए प्रकाशक की कानूनी टीम की टिप्पणियों से इस बात का खुलासा हुआ है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

क्विंट के पास किताब के सबसे ताजा एडिटेड ड्राफ्ट की एक्सक्लूसिव कॉपी है जिससे पता चलता है कि प्रकाशक की कानूनी टीम ‘हिंदुत्व’, ‘संघ परिवार’ और ‘भगवाकरण’ शब्द हटाना चाहती है. क्विंट ने इस बारे में पेंगुइन को अपने सवाल भेजे थे लेकिन अब तक कोई जवाब नहीं मिला है.

भीमा कोरेगांव केस में गिरफ्तार किए गए 84 साल के वरवर राव फिलहाल स्वास्थ्य के आधार पर जमानत पर हैं. पिछले पांच दशकों में उनकी कई कविताएं प्रकाशित हो चुकी हैं जबकि उम्मीद की जा रही है कि उनकी कविताओं का पहला अंग्रेजी अनुवाद पेंगुइन प्रकाशित करेगा.

कई शब्द सेंसर किए गए

प्रकाशक ‘घर वापसी’, ‘गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम कानून (UAPA)’ और ‘अयोध्या’ का संदर्भ भी ड्राफ्ट से हटाना चाहते हैं. इसके अलावा, प्रकाशक 2020-21 में देश को झकझोर देने वाले किसानों के प्रदर्शन के संदर्भ से भी बचना चाहते हैं.

एडिट से ये पता चलता है कि प्रकाशक ने किताब में वरवर राव के लिए ‘क्रांति’ शब्द को परिभाषित किया है. ‘क्रांति’ के किसी भी संदर्भ को "शांतिपूर्ण साधनों और संवाद के माध्यम से एक समतावादी समाज में परिवर्तन" के रूप में परिभाषित किया जाना चाहिए, यह सलाह दी गई है.

क्विंट ने 2021 में खबर दी थी कि पेंगुइन ने किताब का प्रकाशन अनिश्चित काल के लिए रोक दिया था. माना जाता है कि किताब का संपादन इसके बाद ही शुरू हुआ. कवि मीना कांडासामी और लेखक एन वेणुगोपाल इस किताब के संपादक हैं.

चलिए पेंगुइन रैंडम हाउस की लीगल टीम की ओर से सुझाए गए बदलावों पर एक विस्तृत नजर डालते हैं:

अयोध्या से लेकर भगवाकरण: ‘इसे हटाना होगा’

वरवर राव ने 2017 में कविता घर वापसी लिखी थी, जब कई दक्षिण पंथी संगठनों ने देश के धार्मिक अल्पसंख्यकों से हिंदू धर्म की ओर लौटने को कहा था. इसके बाद से हिंदू धर्म में कई सामूहिक धर्मांतरण हुए हैं. इस कविता को लेकर टिप्पणी में लिखा गया है कि हर जगह के लिए टिप्पणी-फुटनोट्स और नोट्स से हिंदुत्व के सभी संदर्भ हटाएं.

कविता घर वापसी के बोल हैं

इस देश के भगवामय आसमान में

सिर्फ चौथी के चांद को इजाजत है

लेकिन नए चांद पर यहां पाबंदी है

प्रकाशक का कहना है कि “भगवामय देश” शब्द पर “फिर से काम” करना चाहिए. टिप्पणियों के अनुसार ये साफ नहीं है कि कविता संग्रह में ये कविता शामिल की जाएगी या नहीं.

कविता 'अ रिवर बॉर्न इन नासिक' में वरवर राव लिखते हैं

फटे हुए पैरों से खून बह रहा है

उनके सिर पर रखी पगड़ी भी सन गयी

चलते फिरते लाल झंडा बन गए हैं

शहर द्वारा बरसाए फूल बन गए हैं

सत्ता झुक नहीं सकती

किसानों के एकता मार्च, जंगल और बहती नदियों के लिए

प्रकाशक ने सुझाव दिया है कि ड्राफ्ट में ये स्पष्टीकरण होना चाहिए कि इसका हाल के किसानों के प्रदर्शन से कुछ लेना-देना नहीं है. कविता जिसका शीर्षक सर्च है, उसके बारे में प्रकाशक ने कहा है कि MISA, TADA, और UAPA के संदर्भ को हटाना होगा.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

इस कविता में वरवर राव लिखते हैं

क्या हम परिचित नहीं हैं

साजिश के मामलों से

MISA, TADA और UAPA

और अचानक होने वाली गिरफ्तारियों से? मैंने उससे पूछा

अपना सूरत बॉम्बे कविता के बारे में प्रकाशक ने नोट में लिखा है कि “ये कविता विवाद का मुद्दा बन सकती है. हटानी पड़ सकती है. ” इस कविता में जिन शब्दों को लेकर विवाद की आशंका है उसमें ‘संघ परिवार’, ‘अयोध्या’ और ‘छह हजार लाल झंडे’ शब्द शामिल थे.

कविता की पंक्तियां हैं:

उन्हें राहत मिलेगी अगर मातृभूमि की बात करने वाला संघ परिवार

उन्हें बता सके उनकी मां की कोख में जाने का रास्ता

एक बाघ की दहाड़ छुपाने के लिए

कमल ने अपनी महक खोल दी है

ये कहते हुए कि विध्वंस जनता की मांग थी

प्रकाशक ने ‘कांग्रेस संस्कृति’ और ‘शिव सेना’ शब्द पर भी विवाद की आशंका जताते हुए इन्हें हटाने को कहा है.

टिप्पणी में लिखा गया है कि “लाइसेंस राज या कुछ और में संभवत: बदला जा सकता है...जब तक कि पहचान न हो”. यहां पर मुद्दा अवमानना है न कि देशद्रोह, इससे ये संकेत मिलता है कि दूसरे उदाहरणों में प्रकाशक को राजद्रोह के आरोप लगने को लेकर भी चिंता हुई होगी.

प्रकाशक ने चेंस राइट नाऊ शीर्षक कविता में इस्तेमाल शब्द ‘तानाशाह’ को लेकर भी चिंता जताई है. दिलचस्प ये है कि ये शब्द कानूनी जांच में पास हो गया है क्योंकि “फुटनोट में कविता को इंदिरा गांधी और MISA के तहत जेल के संदर्भ में पर्याप्त रूप से रखा गया है.”

ADVERTISEMENTREMOVE AD

हालांकि, बाद की एक टिप्पणी में लिखा गया है कि “हालांकि मुद्दा केवल ये है कि मौजूदा समय में इस पर आसानी से UAPA लगाया जा सकता है. इसलिए ये सुविधा के हिसाब से एक आसान फैसला है जो पेंगुइन को करना है. ” यानी मौजूदा समय के संदर्भ में शब्द ‘तानाशाह’ के जिक्र को समस्या पैदा करने वाला बताया गया है.

‘क्रांतिकारी कवि’ से क्रांति को बाहर करना

ऐसा लगता है कि प्रकाशक को वरवर राव के पसंदीदा विषय –‘क्रांति’ की कविताओं पर भी आपत्ति है.

पल्स शीर्षक वाली कविता के बारे में पेंगुइन ने लिखा कि “ हम एक नोट लिख सकते हैं जिसमें ये कहा जाए कि कविताओं में क्रांति के संदर्भ का अर्थ शांतिपूर्ण साधनों और बातचीत के जरिए एक समतामूलक समाज की ओर बदलाव है (या इसी तरह की कुछ और बात) और कवि खुद हिंसक साधनों का समर्थन नहीं करता है.”

एक अन्य कविता रिफ्लेक्शन में, पेंगुइन ने कहा कि शब्द ‘क्रांति’ का मतलब किताब की प्रस्तावना में जरूर परिभाषित किया जाना चाहिए. ये ध्यान देने वाली बात है कि राव ने अपनी किसी भी कविता में, जो अब संग्रह का हिस्सा हैं ‘क्रांति’ को परिभाषित नहीं किया है.

इस संदर्भ में, ‘क्रांति’ शब्द का करीब-करीब हर उल्लेख या ‘आंदोलन’ सहित कोई भी शब्द जिसका जरा भी अर्थ जनता के संघर्ष से हो सकता है, उसे सेंसर किया जा सकता है.

उदाहरण के तौर पर कविता द डे ऑफ नेमिंग में राव ने लिखा:

क्या सल्तनत इसे मान लेगी

अगर बगावत के चलते

आवारा और बेगैरत

नायक खानदानी होने चाहिए

ADVERTISEMENTREMOVE AD

प्रकाशक ने इस हिस्से पर भी विवाद की आशंका जताई और कहा “बगावत” को एक कम हिंसक शब्द जैसे ‘विद्रोह’ या ‘एक रुख तय करने’ से बदला जा सकता है. एक और टिप्पणी में लिखा गया है कि “CPI (ML) के सदस्यों का जिक्र न करें. CPI (माओवादी) के सदस्यों का जिक्र न करें ”

प्रकाशक ने वरवर राव की कविताओं में विवादित नक्सलबाड़ी आंदोलन के संदर्भ पर भी विवाद की आशंका जताई है. राव ने प्लेन स्पीक शीर्षक वाली कविता में लिखा है:

लकीर खींच कर जब खड़ें हों

मिट्टी से बचना संभव नहीं

नक्सलबाड़ी का तीर खींचकर जब खड़े हो

मर्यादा में रह कर बोलना संभव नहीं

प्रकाशक ने ये कहते हुए इस पर विवाद की आशंका जताई कि “हम इस बारे में चर्चा कर सकते हैं... क्या हो अगर हम नक्सलबाड़ी शब्द को हटा दें?... एक बार कविता बदल जाए तो हम इस बारे में बात कर सकते हैं.” एक दूसरे भाग में प्रकाशक ने राय दी है कि कविताएं “किसी भी तरह से नक्सलवाद के समर्थन में नहीं हो सकती हैं.”

ये ध्यान देने वाली बात है कि पेंगुइन से छपी किताबों सहित नक्सलबाड़ी पर कई किताबें, बाजार में पहले से मौजूद हैं. टिप्पणियों से ये साफ होता है कि प्रकाशक उस संदर्भ को शामिल नहीं करना चाहता है जिससे राव की कविताएं जन्म लेती हैं.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

बुक्स ब्लूम्ड आउट ऑफ बैंबो बुश शीर्षक वाली उनकी कविता के बारे में प्रकाशक ने टिप्पणी की है कि “मूल रूप से वो ये कह रहे हैं कि उनकी कविता नक्सल इलाके से पैदा हुई थी...हर आंदोलन जिनका संदर्भ है उसमें मुठभेड़ शामिल है. हालांकि यहां उनको फर्जी बताया गया है, लेकिन क्या वो अदालत में फर्जी साबित हुए थे? अगर ऐसा है तो हर आदेश का हवाला दिया जाना चाहिए. नहीं तो कविता को हटाना होगा.”

संपादन में, जनताना सरकार या लोगों की सरकार के संदर्भ को समस्या पैदा करने वाला बताया गया है. इस बारे में लिखी टिप्पणी कुछ इस तरह से है, “जनताना सरकार की तारीफ नहीं कर सकते-देशद्रोही समझा जाएगा. ”

जहां कविता में कुछ खास शब्दों को सेंसर किया गया, वहीं दूसरे उदाहरणों में पूरी की पूरी कविता को नहीं लेने को कहा गया.

कश्मीर और अन्य: कविताएं हटाई गईं और कुछ हिस्से पर आपत्ति

राव की कविता कश्मीर वैली और डेक्कन प्लेटू, जिसे किताब के संपादकों मीना कांडासामी और एन वेणुगोपाल ने चुना था, अब नहीं शामिल की जाएगी. प्रकाशक की इस कविता की टिप्पणी है “इस कविता को हटाना होगा.”

राव ने कश्मीर वैली और डेक्कन प्लेटू कविता में लिखा है:

एक घाटी है

सिर्फ एक घायल दिल ही देख सकता है

एक मजबूत इरादों वाली घाटी

ईमानदार संघर्ष करने वाले लोग ही जान सकते हैं

कविता द विंड इन मक्का मस्जिद पर, प्रकाशक ने कहा है कि “पुलिस के खिलाफ सभी बयान को मानहानि और शायद भड़काऊ भी माना जाएगा.” इसी तरह कविता सब का नाम नंदीग्राम को “अवमानना के आरोप को निमंत्रण” देने की क्षमता वाला बताया गया है.

राव ने अपनी कविता पोस्टल-मॉर्टम में लिखा है

मान लीजिए

खुफिया विभाग

अपनी खुफिया सूचनाओं को तेजी से जुटाने की मंशा में

हमारे काफी पढ़ी गई चिट्ठियों में नया मतलब तलाश ले

और उन्हें छिपा दे

ADVERTISEMENTREMOVE AD

वरवर राव के संपादक की प्रतिक्रिया, जैसा कि पेंगुइन को बताया गया

वेणुगोपाल, जो कि वरवर राव के भतीजे और लेखक हैं, ने प्रकाशक को लिखे एक लंबे नोट में सुझाए गए बदलावों पर नाराजगी जाहिर की है और इसमें कहा है कि “क्या हिंदुत्व पर भी डिक्शनरी में पाबंदी लगा दी गई है? कितनी अजीब बात है !!”

2021-21 के किसानों के प्रदर्शन पर कानूनी राय के संदर्भ के बारे में, वेणुगोपाल ने लिखा “अगर ये हाल के किसानों के प्रदर्शनों के संदर्भ में भी है तो इसमें क्या समस्या है?” बेशक, ये 2018 के बारे में है, “हाल के किसानों के प्रदर्शन” से काफी पहले का.

क्विंट के पास वेणुगोपाल की ओर से प्रकाशक को भेजे गए जवाब की एक कॉपी है.

संपर्क करने पर मीना कांडासामी और वेणुगोपाल ने कानूनी अड़चनों और जवाब में लिखी बातों पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया. क्विंट को हमारी ओर से भेजे गए प्रश्नों पर पेंगुइन रैंडम हाउस की ओर से जवाब का इंतजार है और जब प्रकाशक कंपनी जवाब देती है तो हम उसे इस लेख में जोड़ेंगे.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×