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बागी शिवसैनिक विधायकों के नेता एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र के नए मुख्यमंत्री (Maharashtra CM Eknath Shinde) बन गए हैं. जब सब महाराष्ट्र के अगले मुख्यमंत्री के रूप में बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस का मुंह ताक रहे थे, बीजेपी ने पासा पलट दिया और कुर्सी पर न्योता एकनाथ शिंदे को दे दिया. देवेंद्र फडणवीस ने राज्य के उपमुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली है.
आम लोगों से लेकर बड़े-बड़े राजनीतिक एक्सपर्ट्स के मन में बीजेपी के इस फैसले ने सवाल खड़ा कर दिया है. सवाल यह है कि जो बीजेपी सरकार बनाने के लिए राजनीति के हर हथकंडे अपनाने को तैयार मानी जाती है, वह महाराष्ट्र में बैक सीट पर बैठने भर से संतोष क्यों कर रही है? बीजेपी के इस ‘त्याग’ की क्या वजह है?
किसी बागी के साथ दोस्ती में सबसे बड़ा रिस्क होता है कि उसे बगावत करने का हुनर आता है. बीजेपी यह जानती है कि एकनाथ शिंदे भले ही उद्धव ठाकरे की तरह के मास लीडर नहीं है लेकिन वो शिवसेना के अंदर ठाकरे को किनारे करके 40 से अधिक विधायकों को लेकर आये हैं. इसमें पिछली सरकार के 9 मंत्री भी शामिल हैं. ऐसे में बीजेपी ने एकनाथ शिंदे को ही मुख्यमंत्री की कुर्सी देकर यह पुख्ता कर लिया है कि वो पलटी ना मारें.
288 सीटों वाली महाराष्ट्र विधानसभा में सबसे अधिक सीटों के साथ बीजेपी सरकार तो बना रही है लेकिन कमान एकनाथ शिंदे के हाथ में दी है. यह पहली बार नहीं है जब बीजेपी सत्ताधारी गठबंधन में बड़ी पार्टी होने के बाद भी खुद नेतृत्व न करके आंकड़ों में छोटी क्षेत्रीय पार्टी के चेहरे को मुख्यमंत्री बनाया है. ऐसा हम बिहार में देख सकते हैं.
बाला साहेब ठाकरे के बनाए पार्टी शिवसेना में उद्धव ठाकरे की स्थिति कमजोर हो गयी है. मुख्यमंत्री पद से उद्धव ठाकरे के इस्तीफे को 24 घंटे भी नहीं हुए थे कि बागी एकनाथ शिंदे के साथ मिलकर बीजेपी ने सरकार बना ली है. ऐसे में संभावना थी कि कट्टर शिवसैनिक इसे ठाकरे परिवार के साथ धोखा मानते.
एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनाकर बीजेपी ने यह भी पुख्ता करने की कोशिश की है कि उद्धव ठाकरे का विरोध दब जाए. उद्धव ठाकरे बीजेपी पर सत्ता हथियाने की कोशिश करने का आरोप लगाते रहे हैं. बीजेपी इस काबिल थी कि वह खुद अपना मुख्यमंत्री बना सकती थी और उसने इसके बावजूद शिंदे के रूप में एक शिवसैनिक को चुना. ऐसा कर उसने उद्धव के विरोध के आधार को ही कमजोर कर दिया है.
बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर भी सरकार नहीं बना सकी थी. कारण थे उद्धव ठाकरे. उद्धव ने चुनाव तो बीजेपी के साथ लड़ा था लेकिन सरकार एनसीपी और कांग्रेस के साथ बनाई थी. ऐसे में बीजेपी ने ढ़ाई साल बाद उन्हें न सिर्फ सीएम की कुर्सी बल्कि पार्टी में भी कमजोर कर बदला ले लिया है.
बीजेपी ने एकनाथ शिंदे को आगे करके यह भी पुख्ता किया है कि एनसीपी प्रमुख शरद पवार और उद्धव ठाकरे अब मराठा कार्ड नहीं खेल सकते. याद रहे कि देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व वाली पिछली बीजेपी सरकार को मराठा आंदोलन की चुनौती का सामना करना पड़ा था.
साथ ही बीजेपी के खिलाफ हिंदुत्व के अपने संस्करण को सामने रखने की ठाकरे की कोशिश विफल रही है. महाराष्ट्र में हिंदुत्व कार्ड पर अब बीजेपी का पूरा एकाधिकार हो गया है.
महाराष्ट्र विधानसभा के डिप्टी स्पीकर ने शिवसेना नेतृत्व की सलाह पर 16 विधायकों को निलंबित कर दिया था. इन विधायकों की वैधता की स्थिति अभी भी विचाराधीन है, सुप्रीम कोर्ट इस मामले की सुनवाई कर रहा है.
क्विंट के सीनियर एडिटर आदित्य मेनन के अनुसार दरअसल दल-बदल विरोधी कानून एक पार्टी के बागी विधायकों के एक समूह के लिए एक स्वतंत्र राजनीतिक पार्टी बनाने में मुश्किल खड़े करता है, भले ही वे पार्टी के कुल विधायकों की संख्या के दो-तिहाई से अधिक हों. ऐसी स्थिति में शिवसेना के बागी विधायकों के पास 2 ही विकल्प थे. या तो वे बीजेपी या NDA से जुड़ी किसी छोटी पार्टी के साथ विलय कर लेते या कानूनी तौर पर 'असली शिवसेना' होने का दावा पेश करते.
ऐसे में बीजेपी ने शिंदे को मुख्यमंत्री बनाकर इस कानूनी लड़ाई को टालने की कोशिश की है. उद्धव ठाकरे अब शायद भी असली शिवसेना होने के दावे के साथ अदालत का दरवाजा खटखटाएंगे. कारण है कि शिवसैनिकों में यह सन्देश जा सकता है कि वह सत्ता लोभ में एक शिवसैनिक मुख्यमंत्री के खिलाफ ही कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं, वह भी तब जब पार्टी 55 विधायकों के साथ सरकार में नंबर वन पोजीशन पर है.
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