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किसान प्रदर्शन तीसरे महीने भी लगातार जारी है और किसान नेता कह रहे हैं कि ये आंदोलन अनिश्चितकाल तक चलेगा या जबतक सरकार किसान कानूनों को वापस नहीं ले लेती. राकेश टिकैत का कहना है कि "अगर सरकार ने हमारी मांगें नहीं मानी, तो हम 2024 तक भी धरने पर बैठे रहेंगे." इस बीच संयुक्त किसान मोर्चे की अहम बैठक 10 फरवरी को हुई. जिसमें आंदोलन को धार देने से जुड़े फैसले लिए गए.
इससे पहले संसद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की कि ये कानून 'वैकल्पिक हैं और अनिवार्य नहीं' हैं. उन्होंने आश्वासन देते हुए कहा कि केंद्र सरकार तीन नए कृषि कानूनों पर किसानों के तार्किक सुझावों को स्वीकार करने के लिए तैयार है. प्रधानमंत्री ने लोकसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर बोलते हुए यह घोषणा की.
दो महीने से दिल्ली की सीमाओं पर चल रहे किसान आंदोलन की पृष्ठभूमि में, मोदी ने कहा कि 'अफवाह फैलाई जा रही है कि ये कानून किसानों के खिलाफ हैं.' प्रधानमंत्री ने कहा कि ये कानून संसद में कृषि क्षेत्र में सुधार के मद्देनजर पारित किए गए क्योंकि यह समय की आवश्यकता है. उन्होंने पूछा कि क्या इन तीनों कृषि कानूनों से किसानों की सुविधाओं को छीना जा रहा है, जो उन्हें पहले मिल रहे थे?
उन्होंने कहा, "किसी पर कोई प्रतिबंध नहीं है. ये कानून किसानों के विकास में बाधा पैदा नहीं करते हैं. ये कानून वैकल्पिक हैं, अनिवार्य नहीं हैं. ये कानून न तो पुराने 'मंडियों' को रोकते हैं और न ही इससे न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर उपज की खरीद प्रभावित होती है."
प्रधानमंत्री ने कहा कि सरकार ने किसानों को हमेशा सम्मानित किया है और सरकार उन्हें भविष्य में भी सम्मान देना जारी रखेगी. सरकार उनके साथ कई दौर की बातचीत के बाद भी इन कानूनों पर उनके तार्किक सुझावों को स्वीकार करने के लिए तैयार है.
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