गुरुवार को नई दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में सर्वदलीय बैठक में भाग लेकर श्रीनगर लौटने के बाद जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) के संरक्षक फारूक अब्दुल्ला ने शनिवार को कहा कि उन्हें पता नहीं है कि केंद्र सरकार जम्मू-कश्मीर की जमीं पर मौजूदा अविश्वास को दूर करने के लिए तैयार है भी या नहीं. यहां आने के बाद मीडिया से बात करते हुए अब्दुल्ला ने कहा, "हमें किसी नतीजे पर अभी ही नहीं पहुंचना चाहिए कि केंद्र जम्मू-कश्मीर में जमीन पर मौजूद अविश्वास को दूर करने के लिए तैयार है या नहीं."

केंद्र इसे कैसे हटाता है, ये उन्हें तय करना है- फारूक

उन्होंने कहा, "मैंने उनसे कहा कि पहले प्रधानमंत्री ने हमसे जनमत संग्रह का वादा किया था, लेकिन फिर उससे मुकर गए. नरसिम्हा राव ने स्वायत्तता का वादा किया था और कहा था कि आकाश की सीमा है. वह स्वायत्तता कहां है? मैं आपको स्पष्ट रूप से बता दूं कि यहां अविश्वास का एक स्तर है जिसे हटाना होगा. केंद्र इसे कैसे हटाता है, यह उन्हें तय करना है."

यह पूछे जाने पर कि क्या केंद्रीय नेतृत्व के साथ दूसरी बैठक होगी? फारूक अब्दुल्ला के बेटे और जम्मू-कश्मीर के पूर्व सीएम उमर अब्दुल्ला, जो राष्ट्रीय राजधानी में सर्वदलीय बैठक में भाग लेने वाले कश्मीरी नेताओं के प्रतिनिधिमंडल का भी हिस्सा थे, ने कहा, "अभी कुछ तय नहीं है."

महबूबा की सख्ती बरकरार

बता दें कि सर्वदलीय बैठक से निकली आवाजों में महबूबा मुफ्ती की आवाज शायद सबसे सख्त है. बैठक के बाद, उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि अनुच्छेद 370 की बहाली और पूर्ववर्ती राज्य द्वारा प्राप्त अन्य विशेष शक्तियां मिलनी चाहिए. ये पीडीपी की मांग है और इसे आगे भी बढ़ाएगी. कश्मीर विवाद को सुलझाने के लिए पाकिस्तान के साथ बातचीत की प्रक्रिया शुरू करने की उनकी जिद ने बीजेपी में उनके प्रतिद्वंद्वियों को पहले ही भड़का दिया है.

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