मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Voices Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Opinion Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019मोदी से मिले कश्मीरी नेता: कितनी बर्फ पिघली,क्या चाहती है PDP, NC?

मोदी से मिले कश्मीरी नेता: कितनी बर्फ पिघली,क्या चाहती है PDP, NC?

परिसीमन पर गैर-बीजेपी दलों द्वारा कोई विरोध दर्ज नहीं करना साफ संकेत है कि दिल्ली के साथ जुड़ाव रखना चाहते हैं

खालिद शाह
नजरिया
Updated:
Kashmiri Leaders| परिसीमन पर गैर बीजेपी दलों का विरोध नहीं
i
Kashmiri Leaders| परिसीमन पर गैर बीजेपी दलों का विरोध नहीं
(फोटो: PTI)

advertisement

जम्मू-कश्मीर के 14 राजनीतिक नेताओं के साथ प्रधानमंत्री की सर्वदलीय बैठक अपने आप में खास है. यह बैठक खास है क्योंकि इस बैठक से कश्मीर के भविष्य की रूप रेखा तय हुई है. मतभेद अनेक हैं जो बैठक में हिस्सा लेने वाले नेताओं के रुख में दिखाई दे रहे हैं. हालांकि, भविष्य की ओर देखने के लिए बैठक में मौजूद रहे लोगों के मतभेदों पर सबकी सहमति जरूरी है.

महबूबा मुफ्ती की बयानबाजी जस की तस

सर्वदलीय बैठक से निकली आवाजों में महबूबा मुफ्ती की आवाज शायद सबसे सख्त है. बैठक के बाद, उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि अनुच्छेद 370 की बहाली और पूर्ववर्ती राज्य द्वारा प्राप्त अन्य विशेष शक्तियां मिलनी चाहिए. ये पीडीपी की मांग है और इसे आगे भी बढ़ाएगी.

वैसे कश्मीर विवाद को सुलझाने के लिए पाकिस्तान के साथ बातचीत की प्रक्रिया शुरू करने की उनकी जिद ने बीजेपी में उनके प्रतिद्वंद्वियों को पहले ही भड़का दिया है.

उनकी स्थिति पीडीपी की चुनावी संभावनाओं की सावधानीपूर्वक गणना से उपजी है, जो कम दिखाई देती है. चुनावी और राजनीतिक रूप से महबूबा मुफ्ती के पास खोने के लिए बहुत कुछ नहीं है. इसके अलावा, उनकी पार्टी के नेताओं के पलायन ने उन्हें संगठन को नए सिरे से पुनर्निर्माण के रास्ते को खोल दिया है. इसलिए, उनका कठोर रुख, जो कश्मीर घाटी में आबादी के एक महत्वपूर्ण हिस्से के प्रभावित करता है, जो लम्बी राजनीतिक लड़ाई और लाभ सुनिश्चित करने का सबसे तरीका हो सकता है लेकिन तत्काल कश्मीरियों को कोई राहत नहीं दे सकता.

क्या उमर अब्दुल्ला खुद को जम्मू-कश्मीर के भावी मुख्यमंत्री के रूप में देखते हैं?

दूसरी ओर, उमर अब्दुल्ला की अधिक यथार्थवादी और कश्मीर की स्थिति पर बारीक नजर निश्चित रूप से फायदा पहुंचाएगा. पूर्व मुख्यमंत्री का यह कहना कि जम्मू-कश्मीर को फिर से स्पेशल स्टेट्स बहाल करना, इसे हटाने वाले लोगों से नहीं होगा.

यदि नई दिल्ली विशेष दर्जा बहाल करना चाहती थी, तो वे इसे पहले पर क्यों हटाएगी?

साथ ही, मामले को अदालतों के सामने रखने से निश्चित रूप से एक कानूनी बहस का अवसर खुल जाता है कि क्या जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति को हटाना संवैधानिक रूप से वैध और आवश्यक था. यह बहाली के लिए एकमात्र रास्ता भी बना हुआ है, यदि कानूनी रूप से संभव हो तो.

उमर अब्दुल्ला की नजरीये में बारीकियां भी राज्य और विधानसभा चुनावों की शीघ्र बहाली के लिए दरवाजे खोलती हैं. एक ऐसा मुद्दा जिस पर राजनीतिक प्रक्रिया के आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए उनकी पार्टी निश्चित रूप से दिल्ली के साथ बातचीत कर सकती है.

डीडीसी चुनावों में अपने प्रदर्शन के दम पर, नेशनल कांफ्रेंस खुद को आगामी विधानसभा चुनावों में सबसे आगे चलने वाले और भारत के बाकी राज्यों के बराबर राज्य में मुख्यमंत्री पद के दावेदार के रूप में देखती है. आंशिक राज्य का दर्जा स्वीकार करना या चुनाव लड़ना, जबकि जम्मू और कश्मीर एक केंद्र शासित प्रदेश बना हुआ है, जो कि नेशनल कॉन्फ्रेंस के लिए एक कठिन रास्ता है.
ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

सज्जाद लोन की तरह कांग्रेस के पास यथार्थवादी लक्ष्य हैं

ऐसा लगता है कि सज्जाद लोन और उनकी पीपुल्स कांफ्रेंस ने भी काफी हद तक यथार्थवादी लक्ष्य निर्धारित किए हैं. पीपुल्स कांफ्रेंस राज्य और विधानसभा चुनावों की जल्द बहाली को जम्मू-कश्मीर के लोगों के लिए आजादी और आत्मनिर्भर हो ने के रूप में देखती है. साथ ही इसे नौकरशाही शासन से तत्काल राहत के रूप में भी देख रही है. पीपुल्स कांफ्रेंस की मांगों को देखे तो जिन्हें बातचीत के लिए टेबल पर रखा जा सकता है, इसमें भूमि और अधिवास अधिकारों के लिए विशेष सुरक्षा की मांग है.

नेकां की तरह, पार्टी को पता है कि अनुच्छेद 370 पर एक कठोर वैचारिक स्थिति वाली वर्तमान सरकार धारा 370 से कभी पीछे नहीं हटेगी. और इस तरह अनुच्छेद 35A, भूमि और अधिवास अधिकारों की सुरक्षा को वास्तविक मुद्दे के रूप में देखती है.

क्या चाहती है बीजेपी?

भाजपा के लिए, राज्य का दर्जा बहाल करने की समय-सीमा और जम्मू-कश्मीर के नए राज्य की रूपरेखा दूसरों से अलग होने का एक संकेत है. जबकि अन्य दलों ने चुनाव से पहले राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग की है, ऐसा लगता है कि भाजपा राज्य के दर्जे का उपयोग सौदेबाजी के रूप में करना चाहती है, शायद परिसीमन प्रक्रिया की वैधता सुनिश्चित करने के लिए.

बीजेपी चुनावों को राज्य का दर्जा बहाल करने के लिए एक मील के पत्थर के रूप में देखती है - जो कश्मीर और जम्मू दोनों क्षेत्रों के लिए एक भावनात्मक मुद्दा है.

इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि यह एक नवगठित कट्टरपंथी-दक्षिणपंथी सामाजिक-राजनीतिक संगठन के खिलाफ खड़ा है, जिसे इक जट्ट जम्मू कहा जाता है, जो धार्मिक आधार पर जम्मू-कश्मीर के विभाजन की मांग करता है. एक राष्ट्रीय समाचार चैनल से बात करते हुए, अपनी पार्टी के प्रमुख ने भी कहा कि उन्होंने आरक्षण, नौकरियों और भूमि अधिकारों पर संवैधानिक गारंटी की मांग की.

वहीं, भूमि और अधिवास अधिकारों पर बीजेपी का रुख स्पष्ट नहीं है. क्या केंद्र सरकार सभी गैर-बीजेपी दलों द्वारा उठाई गई मांगों को समायोजित कर सकती है, यह एक परस्पर विरोधी मुद्दा बना रहेगा.

परिसीमन और संवाद: जम्मू-कश्मीर की पार्टियां अभी भी दिल्ली के साथ जुड़ना चाहती हैं

बैठक में उपस्थित लोगों के बीच व्यापक सहमति है कि आगे का रास्ता बातचीत के माध्यम निकाला जा सकता है. परिसीमन प्रक्रिया पर गैर-भाजपा दलों द्वारा कोई विरोध दर्ज नहीं करना यह एक साफ संकेत है कि गैर-भाजपा दल नई दिल्ली के साथ जुड़ाव जारी रखना चाहते हैं. केंद्र सरकार के लिए यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि परिसीमन की राजनीतिक वैधता हो.

बैठक का दूसरा महत्वपूर्ण परिणाम यह है कि जम्मू-कश्मीर में वास्तविक हितधारक कौन है, इस पर बहस तय हो गई है. घाटी-आधारित राजनीतिक दलों को शामिल करने पर मोदी सरकार का हृदय परिवर्तन, जो बहुत पहले "गुप्कर गैंग" के रूप में उपहासित नहीं थे, एक वास्तविकता की जाँच से प्रेरित है - कि राजनीतिक विकल्पों को आगे बढ़ाना आसान नहीं है.

लेकिन हलवा का प्रमाण खाने में है. और रुख के इस बदलाव को उपराज्यपाल प्रशासन के कार्यप्रणाली से भी समझा जा सकता है. दिन प्रतिदिन के व्यवहार पर नजर दौड़ाए तो घाटी स्थित राजनीतिक कार्यकर्ताओं की चिंताओं को दूर करना, व्यक्तिगत सुरक्षा और लोगों के मुद्दों को हल करने के लिए नौकरशाही तक पहुंच आसान बनाना ये दिखाता है कि रूख में बदलाव है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अंतरराष्ट्रीय छवि को बचाने का प्रयास

हालांकि मोदी सरकार राज्य का दर्जा और चुनाव कराने की समय-सीमा पर अपनी घोषित स्थिति पर अड़ी हुई है, लेकिन केंद्र और राज्य नेताओं के बीच बैठक और घाटी में शासन-प्रशासन के रूख में बदलाव लचीलापन दिखाने जैसा माना जाएगा.

शुरुआत के लिए, नेताओं की बैठक विशेष रूप से लोकतंत्र और नागरिक अधिकारों से संबंधित मामलों पर सरकार की घटती अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा के बचाव के रूप में आ सकती है.

"हमारे लोकतंत्र की सबसे बड़ी ताकत एक मेज पर बैठने और विचारों का आदान-प्रदान करने की क्षमता है." - बैठक के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा ट्वीट किया गया एक संदेश, निस्संदेह अंतरराष्ट्रीय दिखावे के लिए है.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: 25 Jun 2021,04:44 PM IST

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT