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बहुमत के साथ केंद्र की सत्ता में पहुंची बीजेपी के तेवर अब बदलते दिख रहे हैं. अब तक सरकार और पार्टी के कार्यक्रमों में सिर्फ बीजेपी की ही चर्चा होती थी और उन्हीं के नारे गूंजते थे. लेकिन अब 2019 लोकसभा चुनाव से पहले एकजुट होते विपक्ष को देखकर शायद बीजेपी नेतृत्व ने सबक ले लिया है. शायद यही वजह है कि बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह अब बदले-बदले दिख रहे हैं.
शुक्रवार को बीजेपी ने अपना स्थापना दिवस मनाया. इस मौके पर अमित शाह मुंबई पहुंचे थे. यहां उन्होंने पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित किया. भाषण के बाद शाह ने प्रेस कॉन्फ्रेंस भी की. इस दौरान शाह ने बीजेपी के अलावा एनडीए में शामिल दूसरे दलों का भी जिक्र किया.
स्थापना दिवस के मौके पर बीजेपी की जनसभा में अमित शाह ने अपने भाषण में बीजेपी के साथ एनडीए शब्द का भी कई बार इस्तेमाल किया. 2019 के आम चुनाव से पहले विपक्षी दलों की एकजुटता से अकेले निपटना बीजेपी के लिए मुश्किल भरा हो सकता है और शायद इस बात का अंदाजा अमित शाह को हो चुका है. यही वजह है कि जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं बीजेपी अपने सहयोगी दलों को साथ रखने के लिए अपनी रणनीति में बदलाव करती दिख रही है.
इसकी शुरुआत खुद अमित शाह ने की है, अगर ऐसा कहें तो गलत नहीं होगा, क्योंकि अमित शाह ने रैली में कई बार दोहराया की 2019 में मोदीजी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार ही बनेगी.
आमतौर पर बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह प्रेस कॉन्फ्रेंस में पत्रकारों के सवालों पर बेहद पॉइंटेड जवाब देना पसंद करते है. इतना ही नहीं राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद से पत्रकार वार्ता में शाह का रुख सख्त और आक्रामक दिखाई देता रहा है. लेकिन 6 अप्रैल को मुंबई में हुई अमित शाह की प्रेस कॉन्फ्रेंस में शाह का अंदाज पत्रकारों की और थोड़ा नरम दिखाई पड़ा. अमित शाह ने ज्यादातर पत्रकारों के सवाल लिए और विस्तार से सवालों का जवाब दिया.
मसलन, पेट्रोल की लगातार बढ़ती कीमतों पर अमित शाह से पूछा गया कि मोदी सरकार के राज में इतना महंगा पेट्रोल बिक रहा है? इस पर जवाब देते हुए शाह ने कहा कि अभी तक यूपीए के दौर से तो सस्ता है लेकिन मोदी सरकार की कोशिश चल रही है कि जल्द पेट्रोल को आम सहमति बनाकर जीएसटी के दायरे में लाया जाये, जिससे लोगों को बड़ी राहत मिलेगी और पेट्रोल के दाम कम होने में मदद मिलेगी."
इसी तरह शिवसेना के बागी तेवर वाले सवाल को भी उन्होंने न टालते हुए जवाब दिया.
एनडीए में बीजेपी की पुरानी साथी शिवसेना अपना रुख पहले ही साफ कर चुकी है कि वह आगामी चुनाव एनडीए से अलग होकर अपने दम पर लड़ेगी. इसके पीछे सबसे बड़ी वजह है कि शिवसेना को मोदी सरकार आने के बाद राष्ट्रीय स्तर पर जो सम्मान मिलने की उम्मीद थी वो नहीं मिल सका, और शायद इसी वजह से पार्टी ने अपना रुख साफ कर दिया.
लेकिन बीजेपी भी इस बात को अच्छी तरह जानती है कि मौजूदा वक्त में जिस तरह सरकार के प्रति लोगों में विश्वास कम हो रहा है. इसे देखते हुए अपने साथियों को साथ रखना जरूरी होगा, हालांकि, देश की राजनीति में फिलहाल मोदी विरोधी जिस तरह साथ आ रहे हैं उसे देखते हुए फिलहाल शिवसेना अपने कदम पीछे लेगी इस बात की उम्मीद कम है. लेकिन राजनीति में कहा जाता है कि आखिरी समय में हालातों को देखकर फैसला लेने वाला ज्यादा फायदे में रहता है.
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Published: 07 Apr 2018,04:13 PM IST