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आम आदमी पार्टी (आप) दस साल में पहली बार गुजरात में आक्रामक रूप से प्रचार कर रही है। यह राजनीतिक दलों और मतदाताओं के लिए चर्चा का विषय बन गया है। राजनीतिक विश्लेषकों और समाजशास्त्री का कहना है कि पार्टी अपने सफल मॉडल और नेतृत्व के बारे में एक धारणा बनाने में सक्षम रही है, लेकिन यह एक दोधारी तलवार है और संभावना है कि आप या तो एक राजनीतिक दल या दोनों को नुकसान पहुंचाएगी।
इस बात की बहुत कम संभावना है कि प्रतिबद्ध मतदाता आप की ओर शिफ्ट होंगे, लेकिन कुछ मुफ्तखोरी से प्रभावित हो सकते हैं और दिल्ली और पंजाब के शासन के मॉडल से प्रभावित हो सकते हैं और आप को वोट दे सकते हैं। राजनीतिक विश्लेषक और अर्थशास्त्री हेमंत शाह का कहना है कि यह आप के पक्ष में 4 से 5 प्रतिशत वोट स्विंग ला सकता है।
समाजशास्त्री किरण देसाई का मानना है कि अगर आप नरम हिंदुत्व का कार्ड भी खेलती है तो उसके भाजपा के वोटों में सेंध लगने की संभावना कम होती है, क्योंकि भाजपा न केवल मतदाताओं के दिमाग में, बल्कि उनके परिवारों, दैनिक जीवन और उत्सवों तक भी पहुंच गई है। उन्होंने कहा कि गुजरात में हिंदुत्व पर भारतीय जनता पार्टी का कॉपीराइट और पेटेंट है, जहां अन्य पार्टियों या नेताओं के लिए कोई जगह नहीं है। लेकिन देसाई देखते हैं कि मुफ्त उपहार और दिल्ली/पंजाब मॉडल मतदाताओं को आप की ओर आकर्षित करेगा। इसके कार्यकर्ता पूरे विश्वास के साथ मैदान में हैं और जनता के मुद्दों को उठा रहे हैं। एकमात्र सवाल यह है कि क्या यह राज्य में परिवर्तन लाने के लिए पर्याप्त होगा, या यह चाय की प्याली में तूफान साबित होगा।
ऐसे में सवाल यह उठता है कि आप के आने से सबसे ज्यादा नुकसान किसको होगा? इस सवाल का जवाब देते हुए राजनीतिक विश्लेषक जनक पुरोहित कहते हैं, आप दोधारी तलवार है, ग्रामीण इलाकों में यह कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लगाएगी, और अगर इसके मुफ्त के वादे शहरी मतदाताओं को प्रभावित करते हैं, तो यह बीजेपी के वोट बैंक को भी नुकसान पहुंचा सकती है।
शहरी क्षेत्रों में एक वर्ग, बुद्धिजीवी या कुलीन समाज है, जो भाजपा के कट्टर समर्थक हैं और लंबे समय से पार्टी को वोट देते आ रहे हैं। उन्हें कांग्रेस से एलर्जी है, लेकिन वे आप को एक समान विचारधारा वाली पार्टी के रूप में देख रहे हैं और उसकी ओर रुख करने लगे हैं। इससे भाजपा घबरा गई है, यही वजह है कि गोपाल इटालिया के तर्कवादी वीडियो क्लिप ऐसे मतदाताओं को पीछे खींचने के लिए प्रसारित किए जाते हैं, यह राजनीतिक विश्लेषक नरेश वरिया ने कहा है।
शाह बताते हैं- यह एक मिथक है कि किसी पार्टी के पास कार्यकर्ताओं की फौज होने पर ही वह मतदाताओं को मतदान केंद्रों पर ला सकती है। एक बार जब कोई मतदाता किसी विशेष उम्मीदवार या पार्टी को वोट देने का फैसला करता है, तो उसे बाहर लाने के लिए पार्टी कार्यकर्ताओं की जरूरत नहीं होती है, और इस बार आप के साथ भी ऐसा हो सकता है।
--आईएएनएस
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