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हरियाणा में जिला पंचायत के आए नतीजे बीजेपी के लिए आंख खोलने वाले हैं. पार्टी ने 102 सीटों पर अपने सिंबल पर चुनाव लड़ा था, लेकिन वो महज 22 सीट ही जीत पाई. पंचकुला और सिरसा में तो बीजेपी खाता भी नहीं खोल पाई. यहां बीजेपी को सभी 10 की 10 सीटों पर हार का सामना करना पड़ा. ये परिणाम तब आए हैं जब हाल ही में हुए आदमपुर उपचुनाव में बीजेपी को 15000 से ज्यादा वोटों के अंतर से जीत मिली थी.
इस पर हरियाणा से बीजेपी नेता प्रवीन आत्रे कहते हैं कि " बीजेपी का प्रदर्शन खराब नहीं रहा. पार्टी ने इस चुनाव को अपने जिला इकायों पर छोड़ दिया था. जो जिला इकाई सिंबल पर चुनाव लड़ना चाहती थी वो सिंबल पर लड़ी और जो बिना सिंबल का लड़ना चाहती थी वो बिना सिंबल के लड़ी. अभी जो परिणाम आए हैं उसमें से सबसे ज्यादा (151) जीतने वाले जिला परिषद बीजेपी समर्थित ही हैं. जैसे हिसार जिले में 15 उम्मीदवार ऐसे जीते हैं जो बीजेपी समर्थित हैं."
पंचकुला में सभी 10 सीटों के हारने पर बीजेपी नेता कहते हैं कि "हां, पंचकुला की सभी सीटों पर पार्टी ने सिंबल पर चुनाव लड़ा था और उसके नतीजे स्थानीय स्तर पर पार्टी कार्यकर्ताओं में नारजगी रही. जिन कार्यकर्ताओं को टिकट नहीं मिला उनकी नारजगी का असर ही नतीजों पर पड़ा है. इस पर पार्टी विचार करेगी."
हालांकि, जिला पंचायत चुनाव के नतीजे हरियाणा में सत्तारूढ़ बीजेपी के लिए किसी झटके से कम नहीं हैं. पार्टी नेताओं का एक वर्ग इसे पिछले 8 साल से सत्ता में पार्टी के साथ "सत्ता विरोधी लहर" के संकेत के रूप में देख रहा है. जिला पंचायत के परिणाम इसलिए भी अधिक महत्वपूर्ण हैं क्योंकि लगभग 65% आबादी राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है. पंचकुला के नतीजे पार्टी नेतृत्व के लिए और भी चौंकाने वाले हैं, क्योंकि यहां पार्टी सिंबल पर लड़ी गई सभी 10 सीटों पर उसे हार का सामना करना पड़ा है. यह राज्य की राजधानी चंडीगढ़ से पंचकुला की निकटता के बावजूद हुआ.
वहीं, अंबाला में बीजेपी सिर्फ दो सीटें जीत सकी. AAP तीन सीटें जीतने में कामयाब रही, जिसे आदमपुर उपचुनाव में करीब 3000 वोट ही मिले थे. जिसके बाद कहा जाने लगा था कि पंजाब में भले ही AAP को जीत मिली है, लेकिन हरियाणा में उसे जमने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ेगी. हालांकि, जानकार अभी भी मान रहे हैं कि AAP को हरियाणा में मेहनत करने की जरूरत है, लेकिन ये नतीजे उसके पार्टी नेतृत्व और कार्यकर्ताओं में जोश भरने वाले हैं.
22 जिला परिषद की 411 सीटों के चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशियों ने जबरदस्त तरीके से जीत हासिल की है. बीजेपी-JJP के लिए चुनाव नतीजे चौंकाने वाले हैं. सात जिलों में 102 सीटों पर पार्टी सिंबल पर चुनाव लड़ने वाली बीजेपी को सिर्फ 22 सीटें मिली हैं, जबकि उसके सहयोगी JJP को दो सीटें मिली हैं. जिला परिषद की 115 सीटों पर लड़ने वाली आम आदमी पार्टी ने 15 और 98 सीटों पर चुनाव मैदान में उतरी इनेलो को 13 सीटों पर जीत मिली है. निर्दलीय उम्मीदवार 357 सीटों पर जीतने में कामयाब रहे.
बीजेपी नेताओं का मानना है कि पार्टी का ग्रामीण इलाकों में वोट फीसदी में बढ़ोतरी हुई है, जो पार्टी के लिए अच्छा संकेत है. लेकिन, वरिष्ठ पत्रकार बलवंत तक्षक इस बात को नकारते हैं. वो कहते हैं कि "बीजेपी के कोर वोटर ने ही उससे मुंह मोड़ लिया है. इसका सबसे अच्छा उदाहरण पंचकुला और हिसार के आए परिणामों से पता चलता है. शहरी इलाकों से भी बीजेपी का जनाधार खिसका है. इसकी सबसे बड़ी वजह टिकट वितरण में अनियमितता रही. जनता बीजेपी के 8 साल के कार्यकाल से ऊब चुकी है. ये बीजेपी के लिए खतरे की घंटी है."
तक्षक बताते हैं कि बीजेपी जिस भाई भतीजावाद के खिलाफ लड़ती है वही जिला पंचायत चुनाव में देखना को मिला. स्थानीय नेताओं को दरकिनार कर अपने परिवार के सदस्यों को टिकट दिया, जिसका असर चुनाव परिणामों पर देखने को मिला.
हरियाणा के राज्यमंत्री अनूप धानक की चाची को टिकट मिला और वो हार गईं.
कुरुक्षेत्र से बीजेपी सांसद नायब सैनी की पत्नी को भी जिला परिषद चुनाव में हार मिली.
कैबिनेट मंत्री रणजीत सिंह के सिरसा जिले से समर्थक उम्मीदवार की भी हार गया.
सरपंच चुनाव में जेजेपी के प्रदेश अध्यक्ष निशांत सिंह के बेटे भी हार गए.
हरियाणा पंचायत चुनाव में कांग्रेस ने अपने किसी भी प्रत्याशी को सिंबल पर चुनाव नहीं लड़ाया था, लेकिन कांग्रेस का दावा है कि उसके समर्थित प्रत्याशी सबसे ज्यादा जीते हैं.
हरियाणा से कांग्रेस के नेता केवल ढ़ींगरा कहते हैं "कांग्रेस ने भले ही सिंबल पर अपने प्रत्याशी नहीं उतारे थे, लेकिन हरियाणा पंचायत चुनाव में कांग्रेस के समर्थित प्रत्याशियों की संख्या किसी भी पार्टी से ज्यादा है. ढ़ींगरा दावा करते हैं कि 357 निर्दलियों में से आधे से अधिक कांग्रेस समर्थित जीते प्रत्याशी हैं, जिनकों कांग्रेस से समर्थन मिला था."
बीजेपी के दावों पर कांग्रेस नेता कहते हैं कि "बीजेपी के पास तो कैंडिडेट ही नहीं थे कि वो चुनावी मैदान में उतार सके. बीजेपी दावा करती है कि उसका संगठन सबसे पड़ा है और पन्ना (ग्रामीण स्तर का बीजेपी कार्यकर्ता) भी चुनाव जीत सकता है तो फिर वो सिर्फ 102 सीटों पर ही प्रत्याशी क्यों उतारे? क्योंकि, उसके पास उम्मीदवार ही नहीं थे. इसलिए जनता ने कांग्रेस समर्थित उम्मीदवारों पर भरोसा जताया. इसका फायदा कांग्रेस को आने वाले लोकसभा और विधानसभा के चुनावों में देखने को मिलेगा.
हरियाणा पंचाय चुनाव के आए परिणामों ने बीजेपी की चिंता बढ़ा दी है. ग्रामीण मतदाताओं द्वारा निर्दलीय पर दिखाए गए इस भरोसे ने बीजेपी की नींद हराम कर दी है. 2024 में लोकसभा के बाद ही विधानसभा चुनाव होने है. ऐसे में ग्रामीण क्षेत्रों में जिस तरह से बीजेपी को हार मिली है, वो पार्टी के लिए निराशाजनक है. किसान आंदोलन से बीजेपी के खिलाफ उपजी नाराजगी अभी भी खत्म होने का नाम नहीं ले रही है. 2014 में पार्टी ने जिस तरह से अपना आधार मजबूत किया था, वो लगातार कमजोर पड़ा है. पंचायत चुनाव नतीजे बताते हैं कि ग्रामीण मतदाताओं ने बीजेपी पर भरोसा जताने के बजाय निर्दलीय और जमीनी नेताओं पर भरोसा किया है.
इनपुटः परवेज खान
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