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सितंबर की पांच तारीख को झारखंड विधानसभा और देश में विपक्षी राजनीति का एक अलग चैप्टर लिखा गया. कलम चली झारखंड विधानसभा से. जहां हेमंत सोरेन ने विपक्ष बीजेपी की आंख में आंख डालकर कहा कि वो विधायकों की खरीद-फरोख्त में लगी है. लेकिन वो डरनेवाले नहीं हैं.
सुबह 10.30 में सदन में पहुंचने के बाद जब विधानसभा की कार्यवाही शुरू हुई, सत्तापक्ष की तरफ से हेमंत ने खुद मोर्चा संभाला. उन्होंने साफ कहा कि,
हेमंत सोरेन अपने मतदाताओं को ये संदेश देने में सफल रहे कि बीजेपी दिल्ली से लेकर रांची तक उनके खिलाफ साजिश कर रही है. वो ये भी बताने में सफल रहे कि बीजेपी राज्य में घट रही घटनाओं को धर्म के आधार पर देख रही है, लेकिन हमारी सरकार धर्म के बजाय केवल घटनाओं के आधार पर न्याय दिलाने का प्रयास कर रही है. यही नहीं, उन्होंने राज्यपाल रमेश बैस पर भी सीधा हमला बोला. उन्होंने साफ कहा कि
वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र सोरेन कहते हैं,
इस आत्मविश्वास की बड़ी वजह है एक ट्राइएंगल. पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी, छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल और झारखंड में सोरेन. ये ट्राइएंगल फिलहाल बीजेपी की केंद्रीय जांच एंजेंसी वाली राजनीति से लड़ने के लिए मजबूत ढाल बन चुका है. आनेवाले समय में इस ट्राइएंगल को विस्तार मिलना तय है, जब बिहार से तेजस्वी यादव और नीतीश कुमार खुद को इससे जोड़ते हुए आगे आएंगे.
बीते 25 अगस्त को खबर आई कि सीएम हेमंत सोरेन की विधायकी रहेगी या जाएगी, इस फैसले पर केंद्रीय चुनाव आयोग ने अपना मत दे दिया है. ये मत आयोग ने राज्यपाल रमेश बैस को भेज दिया है. इसके अगले दिन से स्थानीय अखबारों, नेशनल मीडिया में खबर आने लगी कि सीएम हेमंत सोरेन की विधायकी जानी तय है. कभी कहा गया कि आज त्यागपत्र देंगे, तो कभी कहा गया कि कुछ देर में देंगे. हाल ये था कि अश्वथामा मारा गया. हाथी या आदमी, ये आम जनता तय करे.
विधायकी जाने, कांग्रेस के तीन विधायकों का कोलकाता में कैश के साथ पकड़ जाने, फिर विधायकों को रायपुर शिप्ट करने के बाद सीएम हेमंत सोरेन ने एक दिन का विधानसभा का सत्र बुलाया. राज्यपाल के अनुमोदन के बिना विधानसभा अध्यक्ष के विशेषाधिकार का इस्तेमाल कर बुलाए गए इस सत्र में बहुत कुछ देखने समझने को था. कुल मिलाकर अगर बीजेपी को परोक्ष में कोई चाल चल रही थी तो सोरेन ने प्रत्यक्ष में उसका तोड़ निकाला. अगर विधायकों के तोड़े जाने का डर था उन्होंने उनकी पक्की रखवाली की. पहले लतरातू डैम पर दिन भर पिकनिक कराई, फिर रायपुर भेजने के लिए खुद एयरपोर्ट तक आए और फिर एक चार्टर्ड प्लेन का इंतजाम किया ताकि जब जरूरत हो विधायकों को रांची लैंच करा लें. विधायकों को राज्यपाल के पास भेजना भी एक बढ़िया चाल थी. विधायकों और गठबंधन से लगातार बैठकों का दौर चला. ये सब कर सोरेन साथियों को एकजुट रखने में कामयाब रहे.
चर्चा है कि बीजेपी के पास विधायकों को तोड़ने का मौका था क्योंकि कई विधायक सोरेन सरकार से खफा थे. नाराजगी की वजह में फंड रोकने से लेकर विकास के कामों में कमी गिनाए जा रहे हैं. तो परेशानी शुरू होने के बाद सोरेन ने कई लोकलुभावन फैसले किए, जिससे विधायकों को भी दिलासा मिला. राजनीतिक अनिश्चितताओं के बीच हेमंत सोरेन ने अपने चुनावी वादों के मुताबिक कई बहुप्रतीक्षित फैसले लिए.
बीते एक हफ्ते में सरकार ने ओल्ड पेंशन स्कीम लागू किया.
रघुवर सरकार द्वारा तीन साल के लिए बहाल किए गए सहायक पुलिसकर्मियों को एक साल का एक्सटेंशन दिया.
साथ ही वादा किया कि ओबीसी आरक्षण पर सरकार बहुत जल्द फैसला लेगी.
लेकिन असमंजस में छोड़ दिया स्थानीय नीति का वादा. हर बार की भांति इस बार भी कह दिया कि साल 1932 को आधार वर्ष मानकर हम स्थानीय नीति लागू करना चाहते हैं. लेकिन इसके लिए कोई पहल करती सरकार फिलहाल दिख नहीं रही है.
पत्रकार सुरेंद्र सोरेन सीएम के ही एक बयान का जिक्र करते हैं. वो कहते हैं, ‘सीएम ने कहा कि बीजेपी ने हाल ही में एक सर्वे कराया है. जिसमें उसे साफ पता चला है कि आगामी विधानसभा चुनाव में वह बुरी तरह हार रही है.’ वो ये भी कहते हैं कि ‘इसका आकलन फिलहाल मुश्किल है.’
जाहिर है बीजेपी की हालत इस वक्त ऐसी हो गई है कि कि न माया मिली न राम. क्योंकि अगर कोई ऑपरेशन लोटस था तो वो फेल हुआ, यानी बीजेपी हारी. इससे न सिर्फ जनता को संदेश जाएगा बल्कि बीजेपी के कार्यकर्ता भी निराश होंगे. अगर कोई ऑपरेशन नहीं था सोरेन ने सदन के अंदर बीजेपी को इसके लिए दोषी ठहराया और इस तरह से जनता की सहानुभूति बटोरने की कोशिश की. आने वाले चुनावों में इन चीजों का असर देखने को मिले तो कोई ताज्जुब नहीं.
इस एक दिनी विशेष सत्र में बीजेपी भले ही हेमंत सोरेन के आईना दिखाने में उस तरीके से सफल ना हुई हो, लेकिन कुछ विधायकों ने जरूर सरकार को लताड़ा. निर्दलीय विधायक सरयू राय ने तो स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता को भरी सभा में भ्रष्ट मंत्री कह डाला. तिलमिलाए बन्ना गुप्ता ने स्पीकर से कहा कि सरयू राय के इस बात को प्रोसिडिंग में शामिल नहीं किया जाए. सरयू राय ने यह भी कहा कि-
इन सब के बीच में मंझधार में फंसे नजर आए बाबूलाल मरांडी. चूंकि पूरी बहस के केंद्र में विधायकों की खरीद-फरोख्त में बीजेपी के शामिल होने की बात रही. ऐसे में ये बाद भी निकल कर आई कि साल 2014 में जब बाबूलाल मरांडी अपनी उस वक्त की पार्टी झारखंड विकास मोर्चा के साथ 8 विधायकों संग सदन पहुंचे तो छह विधायक बीजेपी में शामिल हो गए. और उस वक्त बाबूलाल मरांडी ने भी खरीद-फरोख्त का सीधा आरोप बीजेपी पर लगाया. उनके पूर्व साथी और वर्तमान में कांग्रेस में शामिल हो चुके प्रदीप यादव ने तो अखबारों में छपे उनके बयानों के कतरनों को भी सदन में लहराया.
इन सब के बीच नजर अब भी राजभवन पर ही है. फैसला जो भी हो, आनेवाले दिनों में कुछ और विधायकों की विधायकी जानी तय लग रही है. इसकी चर्चा भी हेमंत ने सदन में कर दी.
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