advertisement
कांग्रेस पार्टी की भारत जोड़ो यात्रा जिसका नेतृत्व राहुल गांधी कर रहे हैं, उसे कई अप्रत्याशित जगहों से समर्थन मिला है, जिसमें हिंदुत्व समर्थक (pro-Hindutva) आवाजें भी शामिल हैं. यात्रा के लिए समर्थन व्यक्त करने वालों में अयोध्या में राम मंदिर के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास, विश्व हिंदू परिषद के चंपत राय जो राम जन्मभूमि ट्रस्ट के महासचिव भी हैं, ट्रस्ट के कोषाध्यक्ष महंत गोविंद देव गिरि और अयोध्या में हनुमान गढ़ी मंदिर के महंत संजय दास शामिल हैं.यह ध्यान रखना दिलचस्प है कि इन टिप्पणियों के बाद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने एक बयान दिया जिसमें उन्होंने कांग्रेस पर "राम मंदिर के निर्माण में देरी" करने का आरोप लगाया और वादा किया कि 1 जनवरी 2024 तक राम मंदिर का निर्माण पूरा हो जाएगा. हिंदुत्व नेताओं द्वारा अचानक से यात्रा को दिया गया समर्थन क्या दर्शाता है? जैसा कि कुछ रिपोर्टों में कहा गया है क्या यह वाकई बीजेपी के लिए खतरे की घंटी है?
इसमें कई परतें हैं.
विश्व हिंदू परिषद (VHP), राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) और उत्तर प्रदेश कांग्रेस के पदाधिकारियों के साथ बातचीत के आधार पर इन परतों को इस लेख के माध्यम से सामने लाने की कोशिश की गई है. कुछ बातें भारत जोड़ो यात्रा से पहले की चर्चाओं से ली गई हैं, उन्हें भी इस लेख में इसलिए शामिल किया गया है, क्योंकि यहां वो प्रासंगिक हैं.
ऊपर जिन लोगों के नाम लिए गए हैं वे सभी अयोध्या से हैं और मोटे तौर पर वे हिंदूवादी विचारधारा से हैं. हालांकि, उन सभी को एक साथ जोड़ना सही नहीं होगा.
उदाहरण के तौर पर हनुमान गढ़ी के महंत संजय दास अयोध्या के सबसे प्रमुख पुजारियों में से एक महंत ज्ञान दास के उत्तराधिकारी हैं. संजय दास ने इस बात से अवगत कराया है कि महंत ज्ञान दास ने राहुल गांधी और भारत जोड़ो यात्रा के लिए "आशीर्वाद" प्रदान किया है.
अयोध्या फैसले के पहले से ही, महंत ज्ञान दास ने आम सहमति से विवाद के समाधान का समर्थन किया था और कई मौकों पर बाबरी मस्जिद को गिराए जाने की सार्वजनिक रूप से आलोचना की थी. उनके अनुसार, "मंदिर को बिना किसी दोष (विकृति) या रक्तपात के बनाया जाना चाहिए."
अयोध्या में मस्जिद निर्माण के लिए आर्थिक सहयोग देने के लिए भी उनको जाना जाता है.
महंत ज्ञान दास के स्वतंत्र रुख के कारण अयोध्या में गैर-बीजेपी नेता उनके संपर्क में बने रहते हैं. 2016 में राहुल गांधी ने महंत ज्ञान दास और महंत संजय दास से मुलाकात की थी, इसलिए इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि उन्हें भारत जोड़ो यात्रा के लिए आमंत्रित किया गया. अतीत में महंत ज्ञान दास समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव की तारीफ कर चुके हैं. वहीं 2021 में आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल ने भी उनसे मुलाकात की थी.
इन सब उदाहरणों को देखते हुए इसमें कोई संदेह नहीं है कि महंत ज्ञान दास और महंत संजय दास महत्वपूर्ण व्यक्ति हो सकते हैं. लेकिन भारत जोड़ो यात्रा के लिए उनके समर्थन को व्यापक हिंदुत्व इकोसिस्टम के प्रतिनिधित्व के तौर पर नहीं माना जा सकता है.
एक अन्य मामले में आचार्य सत्येंद्र दास ने एक पत्र के माध्यम से राहुल गांधी को आशीर्वाद दिया है. राम मंदिर के पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास अक्सर भगवान के साथ "चर्चा" के बाद राम लला की ओर से बोलने का दावा करते हैं. यहां तक कि भारत जोड़ो यात्रा को लेकर उन्होंने जो पत्र लिखा है उसमें उन्होंने न सिर्फ अपना बल्कि रामलला का आशीर्वाद भी राहुल गांधी तक पहुंचाया है.
सत्येंद्र दास, महंत ज्ञान दास की तरह विद्रोही नहीं हैं. लेकिन वे रबर स्टैम्प भी नहीं हैं. उत्तर प्रदेश चुनावों के दौरान उन्होंने एक बयान दिया था जिसमें कहा था कि वे इस बात से खुश हैं कि सीएम योगी आदित्यनाथ अयोध्या से चुनाव नहीं लड़ रहे हैं, क्योंकि मंदिर निर्माण के कारण जिन लोगों के घर और दुकानें उजड़ गईं, वे लोग योगी आदित्यनाथ से नाराज थे.
उन्होंने कहा था -
इसमें कोई शक नहीं है कि राम मंदिर फैसले और मंदिर निर्माण की शुरुआत के बाद उनकी स्थिति बदल गई है. आगे चलकर उन्होंने कहा है कि "बीजेपी ही एकमात्र ऐसी पार्टी है जिसे राम मंदिर की परवाह है."
यहां पर मुद्दा यह है कि कांग्रेस को समर्थन देने का मतलब बीजेपी से नाता तोड़ना नहीं है, ठीक उसी तरह जैसे बीजेपी की आलोचना करने का मतलब हमेशा उससे दूर जाना नहीं होता. इस सच्चाई के दायरे में चंपत राय और गोविंद देव गिरी भी आएंगे.
हालांकि, इसमें कोई संदेह नहीं है कि उनका समर्थन महत्वपूर्ण है, कम से कम यह कांग्रेस और राहुल गांधी के साथ उनके संबंधों में एक गर्माहट का संकेत देता है. संबंधों में गर्माहट क्यों आयी है और इसका क्या अर्थ निकाला जाए? इसकी चर्चा हम अगले भाग में करेंगे.
ऐसा नहीं है कि भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी या कांग्रेस ने कुछ निमंत्रण भेजने के अलावा हिंदुत्ववादी पक्ष को बहुत ही स्पष्ट रूप से प्रस्ताव दिया. हालांकि, अब तक पूरी भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी हिंदू प्रतीकों का सम्मान करते रहे हैं.
3 जनवरी, जिस दिन दिल्ली में फिर से यात्रा शुरू हुई और उसने उत्तर प्रदेश की ओर कूच किया, उस दिन की शुरुआत राहुल गांधी ने कश्मीरी गेट के हनुमान मंदिर से की थी.
एआईसीसी मुख्यालय (कांग्रेस पार्टी मुख्यालय), इंडिया गेट, राजघाट या राजनीतिक या धार्मिक महत्व के किसी अन्य जगह से इस यात्रा की शुरुआत राहुल गांधी बहुत अच्छी तरह से कर सकते थे. लेकिन उन्होंने इसकी शुरुआत कश्मीरी गेट के हनुमान मंदिर से की जोकि इसे दिलचस्प दृष्टिकोण प्रदान करता है.
कुछ हिंदुत्व समर्थक व्यक्तियों (हिंदुत्ववादी लोगों) ने इसलिए भी इस यात्रा का समर्थन किया है क्योंकि ये पूरी भारत की यात्रा और राहुल गांधी शारीरिक कष्ट उठा कर इसे कर रहे हैं.
राहुल गांधी और भारत जोड़ो यात्रा की खुलकर प्रशंसा करने वाली पहली हिंदुत्ववादी आवाजों में से एक फ्रांसीसी मूल के हिंदुत्व विचारक फ्रेंकोइस गौटियर थे. उन्होंने 11 दिसंबर को ट्वीट किया जिमसें लिखा कि-''राहुल गांधी और कांग्रेस के बारे में मेरे विचार जो भी हों लेकिन 1. थोड़े आराम के बाद भी पूरे भारत की यात्रा करना एक थका देने वाला काम है इसमें सब्र और आत्मविश्वास की जरूरत पड़ती है.
2. असली भारत को समझने के लिए इसके गांवों की यात्रा से बेहतर कोई तरीका नहीं.''
उन्होंने 25 दिसंबर को फिर ट्वीट किया जिसमें लिखा : ''अगर मैं नरेंद्र मोदी होता तो राहुल गांधी के कम नहीं आंकता. पहली बात तो ये है कि रोज 22 किलोमीटर चलना कोई मजाक की बात नहीं. दूसरी बात ये है कि असल में कई लोग यात्रा से जुडे़ हैं और तीसरी बात बीजेपी ने 2000 में उनकी मां को कम आंका और हारी. राहुल गांधी के लिए इज्जत बढ़ी है.''
गौटियर के विचार किसी हिंदुत्व संगठन को प्रतिबिंबित नहीं करते हैं. लेकिन हिंदुत्व सोशल मीडिया और बौद्धिक इकोसिस्टम का वे एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं. उनके ट्वीट्स ने इस ओर इशारा किया कि भारत जोड़ो यात्रा ने राहुल गांधी के लिए इस इकोसिस्टम में कुछ चर्चा पैदा की थी. इस वर्ग का ध्यान गांधी की ओर आकर्षित हुआ. कम से कम उनके (राहुल गांधी के) प्रति नकारात्मकता कुछ कम हुई थी.
यहां तक कि चंपत राय द्वारा की गई प्रशंसा भी इसी तर्ज पर थी. उन्होंने कहा था कि "वह (राहुल गांधी) हर दिन कठिन मौसम में पदयात्रा कर रहे हैं. इस बात की सराहना की जानी चाहिए."
हिंदुत्व समर्थकों में भी गांधी के प्रति नकारात्मक भावना में कमी देखी जा सकती है.
कर्नाटक के एक स्वयंसेवक ने क्विंट से कहा कि "मैं अभी भी कांग्रेस विरोधी हूं और शायद मरते दम तक रहूंगा, लेकिन राहुल गांधी को कन्याकुमारी से उत्तर भारत तक पैदल जाते हुए देखकर कम से कम मुझे यह प्रतीत हो रहा है कि वह भी राष्ट्रवादी सिद्धांतों से प्रेरित हैं. वह वास्तविक भारत को समझना चाहते हैं और एक बेहतर राजनेता बनना चाहते हैं. इससे वाकई में किसी को कोई समस्या नहीं हो सकती है."
हालांकि हिंदुत्व इकोसिस्टम में चंपत राय, गोविंद देव गिरि और सत्येंद्र दास जैसे प्रमुख व्यक्तियों की ओर से आने वाली टिप्पणियों का मतलब सिर्फ ये नहीं है कि राहुल के लिए विरोध में कमी आई है, इसका ज्यादा राजनीतिक महत्व है. उन महत्वों को उत्तर प्रदेश के राजनीतिक संदर्भ में देखने की जरूरत है.
इसके कई कारण हैं.
बेशक, उनमें से एक यह है कि ऐतिहासिक रूप से कांग्रेस इन संगठनों से जुड़ी रही है. 1980 के दशक में कांग्रेस के ही कई लोग राम मंदिर के मुखर समर्थक थे और हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि राजीव गांधी ने अयोध्या से अपने चुनाव अभियान की शुरुआत की थी.
विश्व हिंदू परिषद के एक लीडर ने 2022 के उत्तर प्रदेश चुनावों के दौरान बताया था कि "जाति के आधार पर पार्टियों के विपरीत, कांग्रेस हिंदू समाज को विभाजित करने की कोशिश नहीं करती है. यह हिंदू समाज को अलग नजरिए से देखती है, जिससे हमें दिक्कत है. लेकिन कम से कम यह हिंदू समाज को विभाजित करने की कोशिश तो नहीं करती है."
यूपी में हिंदुत्व समर्थक अक्सर इस बात पर तर्क करते रहते हैं कि एसपी (समाजवादी पार्टी) और बीएसपी (बहुजन समाज पार्टी) "एक जाति समूह और मुसलमानों के वर्चस्व" के लिए खड़ी हैं या उनका समर्थन करती हैं.
ब्राह्मणों के बीच यह तेवर नया नहीं है, 2017 और 2022 दोनों विधानसभा चुनावों से पहले यह हुआ था. भले ही ब्राह्मण वोटों का बीजेपी से दूर जाने का कोई स्पष्ट संकेत नहीं मिला था, लेकिन उन्होंने यह दिखाया कि "ब्राह्मण नाराज हैं", इससे यह संकेत भेजा गया था कि इस समुदाय को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए.
इस संदर्भ में, कांग्रेस के पुनरुद्धार (1980 के दशक तक ब्राह्मण वोटों पर कांग्रेस का दबदबा था) से ब्राह्मण नेताओं को बीजेपी में अधिक पकड़ बनाने का मौका मिल सकता है. यह बात अब और महत्वपूर्ण हो गयी है, क्योंकि राम मंदिर निर्माण को 2024 के लिए एक प्रमुख चुनावी मुद्दा बनाने के लिए बीजेपी पूरी तरह तैयार है, खासतौर पर अमित शाह की इस घोषणा को देखते हुए कि 1 जनवरी 2024 तक मंदिर बनकर तैयार हो जाएगा.
अंत में, ऐसा प्रतीत होता है कि यूपी में हिंदुत्व नेतृत्व का एक वर्ग ऐसा है जो कांग्रेस को सामाजिक न्याय-आधारित पार्टियों को कमजोर करने और बीजेपी पर अपना प्रभाव बढ़ाने या संबंधों में अधिक सौदेबाजी की शक्ति हासिल करने के लिए "उपयोगी" के तौर पर देख रहा है.
यह देखना बाकी है कि क्या यह रणनीति काम करेगी? - क्या उत्तर प्रदेश में कांग्रेस फिर से समर्थन हासिल कर पाएगी और यदि ऐसा होता है, तो उसके लिए कांग्रेस को क्या कीमत चुकानी होगी?
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)
Published: undefined