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भारत जोड़ो यात्रा, हिमाचल-गुजरात नतीजे सचिन पायलट के राजनीतिक भविष्य के लिए अहम

हिमाचल की सफलता में Sachin Pilot की भूमिका से गहलोत के खेमे से मिला 'गद्दार' का टैग आलाकमान की नजर से मिट गया है

आदित्य मेनन
पॉलिटिक्स
Published:
<div class="paragraphs"><p>भारत जोड़ो यात्रा, हिमाचल-गुजरात नतीजे सचिन पायलट के राजनीतिक भविष्य के लिए अहम</p></div>
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भारत जोड़ो यात्रा, हिमाचल-गुजरात नतीजे सचिन पायलट के राजनीतिक भविष्य के लिए अहम

(फोटो-सचिन पायलट फेसबुक पेज)

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कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा (Bharat Jodo Yatra) में 14 दिसंबर को राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के साथ भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन शामिल हुए, जिसकी तस्वीरें अब सोशल मीडिया पर वायरल हैं. राहुल गांधी और रघुराम राजन के साथ राजस्थान कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सचिन पायलट (Sachin Pilot) भी चल रहे थे, जो राजस्थान में 'भारत जोड़ो यात्रा' के साथ-साथ लगातार बने रहे हैं.

अभी यह यात्रा पूर्वी राजस्थान के दौसा जिले से गुजर रही है, जो राज्य में पायलट के प्रभाव का मुख्य क्षेत्र है. भारत जोड़ो यात्रा का 'राजस्थान एपिसोड' सचिन पायलट के लिए महत्वपूर्ण है, यह समय में हो रही है जब पायलट राज्य कांग्रेस के साथ-साथ पार्टी की राष्ट्रीय संरचना, दोनों में अपनी किस्मत तलाशने की कोशिश कर रहे हैं.

इसके चार पहलू हैं:

1. हिमाचल प्रदेश की सफलता

सचिन पायलट ने हिमाचल प्रदेश के चुनावी कैंपेन में लगभग 18 रैलियों को संबोधित किया था, जिनमें से अधिकांश में अच्छी खासी भीड़ थी. शुरुआत में उन्हें केवल कुछ ही कार्यक्रमों में जाना था लेकिन अच्छी प्रतिक्रिया मिलने के बाद, उन्होंने हिमाचल प्रदेश कांग्रेस की ओर से जितने भी कार्यक्रमों में आने का न्योता मिला, उसमें जाने का फैसला किया.

पायलट हिमाचल में कांग्रेस के चुनावी कैंपेन में सबसे एक्टिव गैर-हिमाचल नेताओं में से थे. हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की शानदार जीत के बाद उन्हें मीडिया में इसका उचित श्रेय भी मिला. कांग्रेस ने देवभूमि में बीजेपी की 25 सीटों के मुकाबले 40 सीटें जीतीं हैं.

हिमाचल फतह पर पायलट को मिली प्रतिक्रिया उनके लिए राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है - इससे पता चलता है कि वह संभावित रूप से राजस्थान में ही नहीं बल्कि हिंदी भाषी राज्यों में भी कांग्रेस आलाकमान द्वारा चुनावी कैंपेनों में बड़े पैमाने पर तैनात किए जा सकते हैं.

2. 'भारत जोड़ो यात्रा' में पायलट द्वारा उठाए गए मुद्दे

राजस्थान में पूरी भारत जोड़ो यात्रा के दौरान, सचिन पायलट 'बेकारी से रोजगार तक, आओ साथ चलें' और 'किसानों के अधिकार तक,आओ साथ चलें' जैसे अलग-अलग नारों वाली टी-शर्ट पहने हुए हैं.

भारत जोड़ो यात्रा के दौरान स्लोगन वाली टी-शर्ट पहने सचिन पायलट

(फोटो- सचिन पायलट फेसबुक पेज)

इसे पायलट के साथ काम करने वाली पॉलिटिकल कंसल्टेंसी फर्म DesignBoxed की पहल बताया जा रहा है. पायलट की टीम के एक सूत्र ने क्विंट को बताया कि टी-शर्ट पर लिखे नारों के पीछे का विचार उन मुद्दों को उठाना था जो सीधे तौर पर लोगों को प्रभावित करते हैं और चुनावी नतीजों को आकार देंगे.

साथ ही सचिन पायलट ने यात्रा के राजस्थान में प्रवेश से ठीक पहले लोगों को इसके लिए आमंत्रित करते हुए एक वीडियो भी जारी किया था. इस वीडियो में सचिन पायलट को दौड़ते हुए देखा जा सकता है और इसे ट्विटर पर अब तक 8.5 लाख से ज्यादा बार देखा जा चुका है.

पायलट की टीम के एक सदस्य ने कहा, "हम उनके व्यक्तित्व, फिटनेस, युवाओं को अपनी ओर आकर्षित करने की क्षमता और सोशल मीडिया तक पहुंच को भुनाने के लिए एक नए तरीके के साथ आना चाहते थे."

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3. 'गद्दार' का टैग अब दूर जा चुका है

हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की सफलता में पायलट की भूमिका का एक फायदा यह है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खेमे के कई नेताओं ने पायलट को जो 'गद्दार' का टैग दिया था, वह कम से कम आलाकमान की नजर से ओझल हो गया है.

इसका एक अन्य कारण कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव के दौरान हुआ राजस्थान कलह भी है, जिसमें गहलोत के समर्थकों पर केंद्रीय पर्यवेक्षकों की उपेक्षा का आरोप लगाया गया था.

पायलट खेमे के विधायक ने क्विंट को बताया, "वही वो पल था जब उन्होंने (गहलोत खेमा) सचिन पायलट को 'गद्दार' कहने का अधिकार खो दिया था. तब तक हम हमेशा डिफेंस मोड में रहते थे."

खास बात है कि पायलट ने राजस्थान के इस कलह के दौरान मामले को आगे नहीं बढ़ाया और उसकी जगह सुरक्षित खेलने का फैसला किया. सामने आकर बवाल की जगह, उन्होंने सोनिया गांधी के साथ एक बैठक के दौरान निजी तौर पर उन्हें अपनी चिंताओं से अवगत कराया.

पायलट के पक्ष में यह तथ्य है कि जहां हिमाचल में पायलट ने चुनाव प्रचार किया वहां पार्टी को जीत मिली है, जबकि जिस गुजरात में गहलोत मैनेज कर रहे थे, वहां पार्टी बुरी तरह से हार गई है.

4. गहलोत या पायलट: राजस्थान में भविष्य अभी भी अनिश्चित

हिमाचल की जीत से भले ही राष्ट्रीय स्तर पर पायलट की स्थिति में सुधार हुआ हो, लेकिन राजस्थान की राजनीति में अभी भी उनके लिए एक कठिन राह है. कम से कम अब तक ऐसे कोई संकेत नहीं मिले हैं कि गहलोत इस्तीफा दे रहे हैं और किसी के लिए भी रास्ता बना रहे हैं, , पायलट की बात तो छोड़ ही दें.

यहां तक ​​कि जिन गहलोत के जिन वफादारों को कारण बताओ नोटिस दिया गया था, उन्हें भी अभी तक उनके पदों से नहीं हटाया जा सका है. इसके विपरीत, अजय माकन ने खुद राजस्थान के लिए पार्टी के प्रभारी पद से इस्तीफा दे दिया है. माकन को कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव के दौरान गहलोत समर्थकों के विरोध का सामना करना पड़ा था.

यहां तक ​​कि अगर गहलोत इस्तीफा दे भी देते हैं और उनके वफादारों को आलाकमान दंड दे भी देता है, तो भी इसका मतलब यह नहीं है कि पायलट तुरंत सीएम बन जाएंगे. राजस्थान में अब भी कई विधायक ऐसे हैं जो गहलोत को हटाए जाने से तो सहमत हैं लेकिन पायलट को सीएम बनाए जाने से नहीं.

आखिर में, बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि नए कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे राजस्थान मामले को कैसे संभालते हैं. जनवरी के अंत में भारत जोड़ो यात्रा के समाप्त होने के बाद पूरी संभावना है कि यह स्पष्ट हो जाएगा.

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