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उपवास तो एक बहाना है, असली मंजिल तो सत्ता पाना है !

बजट सत्र बाधित होने पर पीएम समेत बीजेपी के तमाम मंत्री और सांसद देश के अलग-अलग शहरों में उपवास कर रहे हैं.

स्मिता चंद
पॉलिटिक्स
Published:
भारत की राजनीति में इतिहास का महत्व 
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भारत की राजनीति में इतिहास का महत्व 
(फोटो: क्विंट)

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उपवास का हमारे देश में धार्मिक महत्व है, महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए उपवास करती हैं, तो कुछ लोग उपवास को ईश्वर से जुड़ने का जरिया मानते हैं, लेकिन राजनीति में उपवास का अलग ही महत्व है. यहां कभी सत्ता पाने के लिए उपवास किया जाता है, तो कभी सियासत में अपनी मांगे मनवाने के लिए.

वैसे तो अक्सर सत्ता पक्ष का विरोध करने के लिए उपवास किया जाता है, लेकिन आज सत्ता पर काबिज बीजेपी के आला नेता ही उपवास पर बैठे हैं. बजट सत्र बाधित होने पर पीएम नरेंद्र मोदी समेत बीजेपी के तमाम मंत्री और सांसद देश के अलग-अलग शहरों में उपवास पर बैठे हैं. वैसे आपने ऐसा उपवास शायद ही देखा होगा कि सत्ता पक्ष के ही सांसद एक साथ अलग-अलग शहरों में उपवास रखें.

कांग्रेस ने भी किया था उपवास

इससे पहले 9 अप्रैल को राहुल गांधी की अगुवाई में कांग्रेस ने भी उपवास रखा था. कांग्रेस के नेताओं ने 2 अप्रैल को दलित आंदोलन के दौरान हुई हिंसा के खिलाफ उपवास रखा था, लेकिन इस उपवास पर तब विवाद खड़ा हो गया, जब कांग्रेस के कुछ नेताओं की छोले भटूरे खाते हुए एक तस्वीर वायरल हो गई. ये तस्वीर बीजेपी के हाथ लगी, तो सियासी मुद्दा बना और उपवास पर खूब बहस हुई, लेकिन असल मुद्दा हवा हो गया.

उपवास से पहले कांग्रेस नेताओं ने खाए छोले-भटुरे(फोटो: ट्विटर)
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महात्मा गांधी का हथियार था अनशन

वैसे हमारे देश में उपवास का अपना ही इतिहास है. इतिहास के पन्ने पलटे तो भारत में अनशन की शुरुआत महात्मा गांधी ने की थी. बापू ने अपने देश को अंग्रेजों से आजादी दिलाने के लिए उपवास को हथियार बनाया. महात्मा गांधी कई बार अनशन पर बैठे थे. कभी अंग्रेजों से देश को मुक्ति दिलाने के लिए, कभी तो भारत-पाकिस्तान विभाजन के वक्त दंगा रोकने के लिये. कलकत्ता से लेकर दिल्ली तक उन्होंने अनशन किया. बापू के अनशन का ही असर था कि दंगाई उनके पास आकर अपने हथियार तक जमा करा जाते थे.

बापू के बाद देश में कई नेताओं और समाजिक कार्यकर्ताओं ने भी उपवास रखे. चाहे बात विस्थापन की हो या फिर पानी या पर्यावरण की या फिर नागरिक अधिकारों की हो. लेकिन आज के दौर की राजनीति में उपवास की अपनी परिभाषा ही बदल गई है.

महात्मा गांधी का हथियार था अनशन(फोटो: ट्विटर)

अन्ना हजारे का अनशन

2011 में दिल्ली के रामलीला मैदान में जब समाजसेवी अन्ना हजारे अनशन में बैठे तो पूरे देश का समर्थन उन्हें मिला. लोकपाल बिल के लिए किया गया ये अनशन पिछले एक दशक में सबसे बड़ा अनशन कहा जा सकता है, जिसने पूरी यूपीए सरकार को हिलाकर रख दिया था. इस अनशन में पूरे देश के कोने-कोने से लोग पहुंचे थे. 12 दिनों तक रामलीला मैदान का जो नजारा था, वो कम ही देखने को मिलता है.

2011 में अन्ना हजारे ने किया था अनशन(फोटो: पीटीआई)

मोदी ने गुजरात में किया था उपवास

2012 में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री रहे नरेंद्र मोदी ने भी विधानसभा चुनावों से ठीक पहले उपवास की शुरुआत की थी, इसके तहत उन्होंने गुजरात के हर जिले में एक दिन का उपवास करके सहिष्णुता का संदेश फैलाने का दावा किया था. वैसे इसे उपवास का असर ही कह सकते हैं कि 2012 के चुनाव में एक बार फिर मोदी को जनता ने चुना. ठीक उसी तरह 2014 के लोकसभा चुनावों से पहले भी मोदी सद्भावना उपवास पर बैठे.

इस हाइटेक उपवास को पूरे देश की मीडिया ने खूब कवरेज दी, मोदी को इस उपवास का फल भी मिला और 2014 में वो सत्ता के शिखर पर पहुंचे और देश के प्रधानमंत्री बने.

लोकसभा चुनाव से पहले पीएम मोदी का उपवास(फोटो: पीटीआई)

अरविंद केजरीवाल का उपवास

अन्ना के आंदोलन से एक चेहरा उभरकर सामने आया, जिसका नाम था अरविंद केजरीवाल. केजरीवाल ने जब राजनीति में कदम रखा तो उन्होंने भी उपवास को ही अपना हथियार बनाया. दिल्ली में कांग्रेस सरकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ केजरीवाल अनशन पर बैठे. उनके अनशन से दिल्लीवालों का भी दिल पसीज गया और विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया और केजरीवाल को सीएम का ताज पहना दिया.

अरविंद केजरीवाल ने भी रखा था उपवास(फोटो: ट्विटर)

शिवराज सिंह चौहान का उपवास

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने ही शासनकाल में अनशन किया था. मंदसौर पुलिस की फायरिंग में मारे गए किसानों के समर्थन में शिवराज सिंह अनशन पर बैठ गए थे. मध्यप्रदेश में सत्ता उनकी, पुलिस उनकी, उसके बाद भी सीएम साहब खुद उपवास पर बैठ गए थे. और तो और उनका उपवास तुड़वाने के लिए खुद पीड़ित पक्ष आया था.

शिवराज सिंह का चौहान(फोटो: ट्विटर)

उपवास को राजनीतिक हथियार बनाकर नेता अपने-अपने हिसाब से इस्तेमाल करते आए हैं. जिस देश में गांधी ने आजादी के लिए उपवास किए, वहां आज नेता सत्ता के लिए आए दिन अनशन कर रहे हैं. उपवास के राजनीतिक हथियार का अब तक कोई दूसरा तोड़ नहीं निकल सका है, शायद इसलिये सियासतदां इसी हथियार से पलटवार करते रहे हैं.

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