मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Politics Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019जम्मू-कश्मीर: धारा 370 के नाम पर बनेगा बिखरे विपक्ष का काम या घाटी में भी खिलेगा कमल?

जम्मू-कश्मीर: धारा 370 के नाम पर बनेगा बिखरे विपक्ष का काम या घाटी में भी खिलेगा कमल?

Lok Sabha Election 2024: 2019 में धारा 370 हटने के बाद केंद्र शासित प्रदेश में पहला बड़ा चुनाव होने जा रहा है.

मोहन कुमार
पॉलिटिक्स
Published:
<div class="paragraphs"><p>जम्मू-कश्मीर: Lok Sabha Election 2024</p></div>
i

जम्मू-कश्मीर: Lok Sabha Election 2024

(फोटो- अल्टर्ड बाई क्विंट हिंदी)

advertisement

देश में लोकतंत्र के महापर्व की तैयारियां जोरों पर है. पूरब से लेकर पश्चिम तक और उत्तर से लेकर दक्षिण तक लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election) का शोर सुनाई दे रहा है. जम्मू-कश्मीर में भी सियासी पारा बढ़ा हुआ है. 2019 में धारा 370 हटने के बाद केंद्र शासित प्रदेश में पहला चुनाव होने जा रहा है. ऐसे में इस चुनाव को सूबे और वहां की क्षेत्रीय पार्टियों के लिए बेहद अहम माना जा रहा है.

चलिए आपको बताते हैं कि जम्मू-कश्मीर की जनता के लिए लोकसभा चुनाव के क्या मायने हैं? प्रदेश के लिहाज से चुनाव में क्या मुख्य मुद्दा है? साथ ही बताएंगे केंद्र शासित प्रदेश के वर्तमान सियासी समीकरण के बारे में भी. भारतीय जनता पार्टी (BJP), कांग्रेस, नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC), पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP) सहित क्षेत्रीय पार्टियों का क्या हाल है?

धारा 370 हटने के बाद पहला चुनाव

5 अगस्त, 2019 को जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल-370 हटा दिया गया था. केंद्र सरकार ने राज्य को 2 हिस्सों, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में बांट दिया था और दोनों को केंद्र शासित प्रदेश बना दिया था. इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर को मिलने वाला स्पेशल स्टेटस भी खत्म हो गया था. केंद्र के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देते हुए 23 याचिकाएं दायर की गई थी. शीर्ष अदालत ने 11 दिसंबर 2023 को जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाने के फैसले को बरकरार रखा था.

आर्टिकल-370 हटने के बाद जम्मू-कश्मीर में पहली बार बड़े चुनाव हो रहे हैं. सूबे में 19 अप्रैल से 20 मई तक 5 फेज में लोकसभा चुनाव के लिए वोटिंग होनी है. भारतीय जनता पार्टी (BJP) जहां अकेले ताल ठोक रही है, वहीं कांग्रेस, नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC), पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP) इंडिया गठबंधन के तहत मैदान में हैं. गुलाम नबी आजाद, सज्जाद गनी लोन और अल्ताफ बुखारी ने मिलकर थर्ड फ्रंट बनाया है.

चुनाव से पहले जम्मू-कश्मीर में पार्टियों के लिए यही सबसे बड़ा मुद्दा है. हालांकि, राजनीति के जानकार इससे इत्तेफाक नहीं रखते हैं.

क्विंट हिंदी से बातचीत में जम्मू-कश्मीर के स्वतंत्र पत्रकार शाकिर मीर कहते हैं, "लोकसभा चुनाव को लेकर लोगों में वो उत्साह नजर नहीं आ रहा है."

धारा 370 पर बात करते हुए वो कहते हैं,

"2019 के फैसले से लोग अभी भी बहुत खफा हैं. लोग चाहते थे कि क्षेत्रीय दल इस मुद्दे को पुरजोर तरीके से उठाएं, लेकिन चुनावों में वो खुद आमने-सामने हैं, जिसकी वजह से लोगों का रुझान कम दिख रहा है. चुनाव के प्रति मोहभंग होने से हमें थोड़ा बहुत बायकॉट देखने को भी मिल सकता है, हालांकि ये पहले के मुकाबले कम होगा."
पंजाब यूनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर आशुतोष कुमार धारा 370 को चुनावी मुद्दा नहीं मानते हैं. उनका कहना है कि, "370 का कोई असर नहीं होगा. धारा 370 चुनावी मुद्दा नहीं है. एक सेंटिमेंट था और मुझे नहीं लगता है कि कोई बड़ा मुद्दा बनेगा."

हालांकि, वो कहते हैं कि इस चुनाव में "विश्वसनीयता" एक बड़ा मुद्दा होगा. "कौन सी पार्टी विश्वसनीय है और कौन सी पार्टी कश्मीर घाटी को आगे लेकर जा सकती है, ये मुद्दा अहम होगा. वहीं जम्मू का मामला एकदम अलग है. यहां बीजेपी बनाम कांग्रेस की लड़ाई देखने को मिलेगी."

वहीं जवाहलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (JNU) में सेंटर फॉर पॉलिटिकल स्टडीज के प्रोफेसर हिमांशु रॉय कहते हैं, "क्षेत्रीय दलों के एजेंडे में कोई बदलाव नहीं हुआ है."

जम्मू कश्मीर में मुख्य चुनावी मुद्दा क्या है?

1. रोजगार और विकास

किसी भी चुनाव में रोजगार और विकास सबसे बड़ा मुद्दा होता है. धारा 370 हटने के बाद क्या सही मायने में जम्मू-कश्मीर की स्थिति में बदलाव हुआ है? ये एक बड़ा सवाल है.

इस साल मार्च महीने में अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) और मानव विकास संस्थान (IHD) की रिपोर्ट के मुताबिक, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, दिल्ली के साथ उत्तर भारत में जम्मू और कश्मीर लगातार रोजगार स्थिति सूचकांक में शीर्ष स्थान पर है, जो उसकी मजबूत आर्थिक और रोजगार स्थितियों को दर्शाता है. रोजगार स्थिति सूचकांक में 2022 में J&K 8वें पायदान पर था.

जम्मू-कश्मीर में 15 से 29 साल के शिक्षित युवाओं की बेरोजगारी दर साल 2022 में 34.81% थी जो कि राष्ट्रीय औसत 21.84% से करीब 13 फीसदी ज्यादा है.

वहीं 15 से 29 साल के युवा जो रोजगार, शिक्षा या प्रशिक्षण में नहीं हैं, साल 2022 में उनकी संख्या 27.47 फीसदी थी, जो कि राष्ट्रीय औसत से 3.30 फीसदी कम थी.

राज्यसभा में एक लिखित जवाब में गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने कहा है कि अनुच्छेद 370 हटने के बाद जम्मू-कश्मीर में बड़े पैमाने पर भर्ती अभियान चलाया गया और राज्य में करीब 30 हजार युवाओं को नौकरी मिली.

जम्मू-कश्मीर में आर्टिकल-370 खत्म करने के चार साल के बाद जीडीपी में जबरदस्त इजाफा देखने को मिला है. आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, जम्मू कश्मीर की जीएसडीपी दोगुनी होकर 2.25 लाख करोड़ रुपये से अधिक हो गई है, जो अगस्त 2019 में आर्टिकल-370 के निरस्त होने से पहले 1 लाख करोड़ रुपए थी.

2. आतंकवाद

South Asia Terrorism Portal की रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2019 से लेकर अप्रैल 2024 तक जम्मू-कश्मीर में आंतकवाद से जुड़ी 1,997 घटनाएं हुई हैं. वहीं 2014-18 के बीच 1,748 घटनाएं हुई थीं.

आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, जम्मू क्षेत्र में आतंकवादियों की भर्ती सहित आतंकवादी गतिविधियों में बढ़ोतरी दर्ज की गई है.

जम्मू संभाग में 5 अगस्त, 2019 से 16 जून, 2023 के बीच 231 आतंकवादियों और उनके ओवरग्राउंड वर्कर्स को गिरफ्तार किया गया- ऐसी गिरफ्तारियों में 71% की बढ़ोतरी हुई है. इसी तरह, IED विस्फोट से मौत की संख्या 2015-19 में तीन से बढ़कर 2019-2023 में 11 हो गई- फिर से लगभग 73% की बढ़ोतरी.

हालांकि, दिसंबर 2023 में संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा था कि "अनुच्छेद 370 हटने के सिर्फ चार साल में आतंकी घटनाओं में 70 फीसदी की कमी आई है."

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

3. पूर्ण राज्य का दर्जा

तीसरा सबसे बड़ा मुद्दा है पूर्ण राज्य का दर्जा. धारा 370 हटने के बाद से जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा प्राप्त है. दिसंबर में संसद में बोलते हुए गृहमंत्री शाह ने कहा था, ''मैंने पहले ही वादा किया है कि उचित समय पर जम्मू-कश्मीर में राज्य का दर्जा बहाल किया जाएगा.''

इसी साल जनवरी में फारूक अब्दुल्ला ने कहा था, "आज आपकी कोई सुनने वाला नहीं. यहां जो हो रहा है, वह कहीं नहीं होता."

"मैंने कभी किसी रियासत को केंद्र शासित प्रदेश बनते नहीं देखा. मैंने केवल एक केंद्र शासित प्रदेश को स्टेट बनते देखा है. मेरे समय में सचिवालय में इतनी भीड़ होती थी, लेकिन अब आपकी सुनने वाला कोई नहीं है."

दिसंबर 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर के राज्य का दर्जा बहाल करने का निर्देश देते हुए सितंबर 2024 तक विधानसभा चुनाव कराने का आदेश दिया है. बता दें केंद्र सरकार ने शीर्ष अदालत में कहा था कि "केंद्र शासित प्रदेश केवल एक अस्थायी दर्जा है."

कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा वापस देने का वादा किया है.

4. सशस्त्र बल (विशेष शक्तियां) अधिनियम यानी AFSPA

जम्मू-कश्मीर में AFSPA का मुद्दा भी अहम है. यहां पिछले 34 सालों से AFSPA लगा हुआ है. इसे 5 जुलाई 1990 को लागू किया गया था. इस कानून को हटाना चाहिए या फिर J&K के हालात के हिसाब से लागू रखना चाहिए, इसको लेकर बातें उठती रही है.

इस साल मार्च महीने में एक इंटरव्यू के दौरान केंद्रीय गृहमंत्री ने कहा था कि केंद्र सरकार जम्मू-कश्मीर से AFSPA हटाने पर विचार करेगी.

"सरकार केंद्र शासित प्रदेश से सैनिकों को वापस बुलाने और कानून व्यवस्था अकेले जम्मू और कश्मीर पुलिस पर छोड़ने पर योजना बना रही है."

शाह के इस बयान पर पीडीपी चीफ महबूबा मुफ्ती ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा था, "पीडीपी ने लगातार सैनिकों को धीरे-धीरे हटाने के साथ-साथ कठोर AFSPA को रद्द करने की मांग की है. इसने हमारे गठबंधन के एजेंडे का एक महत्वपूर्ण हिस्सा भी तैयार किया जिस पर बीजेपी ने पूरी तरह से सहमति व्यक्त की. देर आए दुरुस्त आए."

चुनावी मुद्दों पर बात करते हुए शाकिर मीर कहते हैं कि यहां की आवाम ऐसे प्रतिनिधि चाहती है जो उनकी बातों को संसद में उठा सके. उनकी राय को केंद्र सरकार के सामने रख सके.

वहीं प्रोफेसर आशुतोष कुमार कहते हैं, "मतदाता देखेंगे कि कौन सी पार्टी बढ़िया शासन दे सकती है. उम्मीदवारों की विश्वसनीयता मायने रखेगी. चुनाव में ये दोनों चीजें बेहद अहम होंगी. इसके साथ ही मतदाताओं की नजर पार्टियों के पिछले ट्रैक रिकॉर्ड पर भी रहेगी."

हालांकि, वो ये भी कहते हैं कि लोकसभा चुनाव को लेकर उतना उत्साह देखने को नहीं मिलेगा.

सियासी समीकरण क्या हैं?

जम्मू-कश्मीर में लोकसभा की 5 सीटें है- बारामूला, श्रीनगर, अनंतनाग, उधमपुर और जम्मू. यहां बीजेपी, कांग्रेस, नेशनल कॉन्फ्रेंस, PDP, जम्मू और कश्मीर पीपुल्स कॉन्फ्रेंस (JKPC), डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी (DPAP) कुछ प्रमुख राजनीतिक दल हैं.

एक तरफ बीजेपी अकेले ताल ठोक रही है. दूसरी तरफ जम्मू संभाग में कांग्रेस को PDP और NC का समर्थन मिला है. वहीं कश्मीर घाटी की तीन सीटों पर PDP और NC आमने-सामने है. यहां कांग्रेस ने नेशनल कॉन्फ्रेंस को समर्थन दिया है.

वहीं थर्ड फ्रंट से DPAP ने दो सीटों पर और JKPC ने 1 सीट पर अपने उम्मीदवारों का ऐलान किया है.

पिछले एक दशक से जम्मू संभाग पर बीजेपी का कब्जा है. 2014 और 2019 में बीजेपी ने यहां की दोनों सीटों पर जीत दर्ज की थी. पार्टी इस बार हैट्रिक लगाने के इरादे से चुनावी मैदान में है.

बीजेपी ने लगातार तीसरी बार उधमपुर से डॉ. जितेंद्र सिंह और जम्मू से जुगल किशोर शर्मा को मैदान में उतारा है. इस बीच, कांग्रेस ने उधमपुर से चौधरी लाल सिंह और जम्मू से रमन भल्ला को टिकट दिया है.

"आर्टिकल 370 हटाने के बाद बीजेपी ने कई ऐसे छोटे-छोटे बदलाव किए हैं, जिससे पूरा लीगल आर्किटेक्चर बदल गया है. बीजेपी ने ये बदलाव इतना सोच-समझकर किया है कि चुनावों में उसे बढ़त मिलती दिख रही है. संस्थाओं पर नियंत्रण से लेकर परिसमीन और आरक्षण में हम ये देख चुके हैं."
शाकिर मीर, स्वतंत्र पत्रकार

बता दें कि परिसीमन के बाद जम्मू-कश्मीर में विधानसभा की कुल सीटें 90 हो गई हैं. जम्मू संभाग में 43 और कश्मीर में 47 सीट हैं. जम्मू संभाग में 6 और कश्मीर में 1 सीट बढ़ाई गई है. जम्मू कश्मीर के इतिहास में पहली बार नौ सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित की गई हैं और अनुसूचित जाति के लिए भी सात सीटों का आरक्षण दिया गया है.

वहीं अनुसूचित जनजाति समुदायों के लिए अलग से 10% कोटा को मंजूरी भी दी गई है. इसका सीधा लाभ पहाड़ी जनजातियों- पददारी जनजाति, कोली और गड्डा ब्राह्मण को मिलेगा. वहीं इस कोटा का प्रभाव गुज्जर और बकरवाल समुदायों और पहले से ही अनुसूचित जनजाति का दर्जा प्राप्त अन्य लोगों को मिल रहे कोटा पर नहीं पड़ेगा और उन्हें 10 फीसदी कोटे का लाभ मिलता रहेगा.

कश्मीर घाटी में रोचक मुकाबला

कश्मीर संभाग में तीन सीटे हैं- अनंतनाग, बारामूला और श्रीनगर. INDIA ब्लॉक में शामिल PDP और NC अपने-अपने उम्मीदवार उतार रही है. वहीं थर्ड फ्रंट भी जोर-आजमाइश में जुटा है. हालांकि, बीजेपी ने अपने पत्ते अभी तक नहीं खोले हैं.

अनंतनाग सीट पर मुकाबला सबसे रोचक माना जा रहा है. नेशनल कॉन्फ्रेंस ने गुर्जर नेता और पूर्व मंत्री मियां अल्ताफ को अपना उम्मीदवार घोषित किया है. वहीं पीडीपी चीफ महबूबा मुफ्ती खुद मैदान में हैं. वहीं गुलाम नबी आजाद भी ताल ठोक रहे हैं. ऐसे में वोटों का कटना तय माना जा रहा है. जिसका फायदा बीजेपी को हो सकता है.

इसको समझाते हुए शाकिर मीर कहते हैं,

"पहले दक्षिण कश्मीर के 4 जिलों को मिलाकर अनंतनाग लोकसभा सीट बनती थी. लेकिन 2022 में परिसीमन के बाद इसमें पुंछ और राजौरी को भी जोड़ दिया गया. राजौरी और पुंछ में बीजेपी ने पहाड़ी समुदाय को ST का स्टेटस दे दिया है. दोनों जगहों पर पहाड़ी लोगों की आबादी 58 फीसदी हैं. अब अगर अनंतनाग में बायकॉट होता है और लोग वोट डालने के लिए नहीं निकलते हैं और दूसरी तरफ पुंछ-राजौरी में वोट पड़ते हैं तो बीजेपी को फायदा मिल सकता है."

प्रोफेसर हिमांशु रॉय कहते हैं, "इस बार के चुनाव में उनका (क्षेत्रीय पार्टियों का) वैसा वर्चस्व नहीं रहेगा, जैसे पहले था. मोदी या बीजेपी मतदाताओं को धर्म के मुद्दे से और कश्मीर में जो क्षेत्रीय भावना है, उससे अलग करके राष्ट्रहित के मुद्दे से जोड़ रही है."

5 चरणों में चुनाव

जम्मू-कश्मीर में 19 अप्रैल, 26 अप्रैल, 7 मई, 13 मई और 20 मई को मतदान होगा. नतीजे 4 जून को आएंगे. उधमपुर सीट पर 19 अप्रैल को वोटिंग होगी. वहीं, जम्मू सीट पर 26 अप्रैल को वोट डाले जाएंगे.

अनंतनाग और राजौरी सीट पर 7 मई को मतदान होगा. वहीं, श्रीनगर सीट पर 13 मई को वोटिंग होगी. बारामूला सीट पर सबसे आखिर में 20 मई को लोग अपने मताधिकार का इस्तेमाल करेंगे.

जानकार जम्मू-कश्मीर में लोकसभा चुनाव को विधानसभा चुनाव के ट्रेलर के रूप में देख रहे हैं. बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने इस साल सितंबर तक चुनाव कराने का आदेश दिया है.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: undefined

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT