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झारखंड में आखिर 'एटम बम' फूट ही गया. कुछ दिन पहले राज्य के राज्यपाल रमेश बैस ने एक इंटरव्यू में कहा था कि जल्द ही एटम बम फूटने वाला है और अब ईडी ने हेमंत सोरेन को पूछताछ के लिए तलब कर लिया है. इस खबर के आते ही झारखंड की राजधानी में अफरातफरी मच गई. देर शाम यूपीए विधायकों की बैठक हेमंत सोरेन के घर हुई. हेमंत सोरेन ने साफ इशारा दे दिया है कि न तो वो ईडी के दफ्तार जाएंगे और न ही अपने तेवर नरम करेंगे.
बुधवार को कांके रोड स्थित मुख्यमंत्री आवास में झारखंड मुक्ति मोर्चा और सहयोगी पार्टियों के विधायकों की बैठक हुई, जिसमें ये तय किया गया कि गुरुवार को हेमंत सोरेन नहीं, ईडी के दफ्तर में सत्तारूढ़ गठबंधन के विधायक पहुंचेंगे और धरना प्रदर्शन करेंगे. ये धरना प्रदर्शन राजभवन के सामने भी किया जाएगा.
सरकार ने 11 नवंबर को विधानसभा का सत्र बुला लिया है. कहा गया है कि सरकार झारखंड में पदों एवं सेवाओं की रिक्तियों में आरक्षण वृद्धि तथा 1932 अथवा उसके पूर्व के सर्वे खतियान के आधार पर स्थानीयता विधेयक विधानसभा के विशेष सत्र में पारित कराने का प्रयास करेगी. ये तो प्रत्यक्ष है, लेकिन परोक्ष मकसद ये हो सकता है कि सदन के अंदर बीजेपी को घेरा जाए. खुद सोरेन ने ट्वीट किया है जब विपक्ष राजनीतिक तौर प र नहीं मुकाबला कर पाया तो संस्थाओं का सहारा लिया जा रहा है.
पहली बार सीएम हेमंत सोरेन ने अपने सरकारी कार्यक्रम की जानकारी समय से काफी पहले मीडिया को दे दी है. सीएम ने आगामी 15 नवंबर तक के अपने सरकारी कार्यक्रम की जानकारी देकर ईडी को स्पष्ट संदेश दिया है कि वो ईडी के सामने किसी हाल में हाजिर नहीं होने जा रहे हैं.
ईडी के समन की खबर मिलते ही बीजेपी का खेमा सोरेन पर हमलावर हो गया.
बीजेपी एमपी निशिकांत दुबे ने जहां सोरेन से इस्तीफा मांग लिया वहीं बीजेपी नेता बाबुलाल मरांडी ने पूछा कि क्या अब जेल से ही सरकार चलाएंगे सोरेन?
पूरी संभावना है कि ईडी के समन को अदालत में चुनौती दी जाएगी. लेकिन अगर आगे जाकर हेमंत सोरेन की विधायकी जाती है तो भी सरकार पर आंच आएगी, इसकी कम संभावना है. अभी तक यूपीए कैंप एकजुट नजर आ रहा है.
गठबंधन के पास फिलहाल तो मजबूत गठबंधन है. अगर उनपर भ्रष्टाचार के आरोपों के बाद भी विधायक नहीं टूटते हैं तो नंबर गेम में सोरेन आगे रहेंगे और इसलिए सरकार बची रहेगी. काफी चर्चा है कि राजभवन से कोई विपरीत फैसला आने पर सोरेन पार्टी से किसी और को सीएम की कुर्सी पर बिठाकर कमान अपने हाथ में रख सकते हैं.
सवाल बस एक है अगर सोरेन पर शिंकजा कसा तो क्या वो पिछली बार की तरह सफलता पूर्व अपने विधायकों को बांधे रख पाएंगे. इस कमजोर मौके की ताक में बीजेपी रहेगी. फिलहाल रांची में आने वाले दिनों में नवंबर की सर्दी में भी सियासत का पारा आसमान पर रहने वाला है, ये तय है.
इनपुट- आनंद दत्ता
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