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ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (AJSU) के अध्यक्ष सुदेश महतो झारखंड में सत्ताधारी और विपक्षी दोनों दलों की पहली पसंद बन गए हैं. भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और आजसू दोनों 2019 का विधानसभा चुनाव अलग-अलग लड़ रहे हैं, लेकिन दोनों ही दलों ने औपचारिक रूप से एक-दूसरे से अलग होने की घोषणा नहीं की है.
बीजेपी और आजसू ने 2014 का चुनाव एक साथ लड़ा था. बीजेपी और आजसू ने क्रमश: 72 और आठ सीटों पर चुनाव लड़ा था और क्रमश: 37 और पांच सीटें जीती थीं.
आजसू सरकार में एक बड़ी भूमिका निभाना चाहती थी, लेकिन झारखंड विकास मोर्चा-प्रजातांत्रिक (जेवीएम-पी) के छह विधायकों को शामिल करने के बाद बीजेपी ने पार्टी के तेवर नरम कर दिए.
आठ जेवीएम-पी विधायकों में से छह के बीजेपी में आने के बाद पार्टी की ताकत बढ़ गई और उसने अपने बल पर बहुमत हासिल कर लिया. आजसू के अध्यक्ष सुदेश महतो ने पिछले पांच वर्षों में अपने ही सत्तारूढ़ गठबंधन के खिलाफ कई बार आवाज उठाई.
आजसू अध्यक्ष ने गठबंधन के मुद्दों पर चर्चा करते हुए कहा था कि "केवल गठबंधन ही नहीं, बल्कि मतदान का एजेंडा महत्वपूर्ण है. हम चाहते हैं कि आम एजेंडा के साथ मिलकर चुनाव लड़ें, ताकि हमें अपनी सरकार के खिलाफ प्रदर्शन पर न बैठना पड़े."
अकेले चुनाव लड़ने का फैसला करने के बाद वह सत्तारूढ़ बीजेपी और विपक्षी दलों, दोनों की पहली पसंद बन गए हैं.
बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने झारखंड चुनाव प्रचार के दौरान आजसू को यह कहकर लुभाने की कोशिश की है कि 'बीजेपी को बहुमत मिलने पर भी आजसू सरकार का हिस्सा होगी.'
आजसू भी बीजेपी और अन्य दलों के असंतुष्ट नेताओं का ठिकाना बन गया है. बीजेपी के दो विधायक राधा कृष्ण किशोर और ताला मरांडी आजसू में शामिल हो गए और उन्हें चुनाव लड़ने के लिए टिकट भी मिला है. किशोर बीजेपी के मुख्य सचेतक थे और मरांडी बीजेपी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष थे.
कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप बलमुचु और जेएमएम के पूर्व विधायक अकील अख्तर भी आजसू में शामिल हुए हैं. पार्टी में विभिन्न दलों के 20 से अधिक नेता शामिल हुए हैं.
महतो ने कहा कि आजसू ने सरकार में बने रहने के बावजूद विपक्ष की भूमिका निभाई थी. यह पूछे जाने पर कि वह चुनाव के बाद किसका समर्थन करेंगे, महतो ने कहा, "ये काल्पनिक प्रश्न हैं. हम पिछले चुनावों की तुलना में बेहतर करेंगे."
(IANS इनपुट)
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