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जितिन प्रसाद...एक ऐसा नेता जो खानदानी कांग्रेसी रहा है, वो बीजेपी में क्यों चला गया? एक ऐसा नेता जो 2014 के बाद लगातार चुनाव हार रहा है, उसे बीजेपी ने इतने धूम धड़ाके के साथ क्यों पार्टी में शामिल कराया? इन दोनों सवालों के जवाब आप जितिन की अपनी मजबूरियों, बीजेपी की जरूरतों, यूपी में कांग्रेस की स्थिति और योगी सरकार पर ब्राह्मण विरोधी होने के आरोपों में ढूंढ सकते हैं.
एक तो यूपी में कांग्रेस का बुरा हाल ऊपर से अपनी घटती पकड़, आने वाले यूपी चुनाव से पहले जितिन को नई जमीन की तलाश थी. साल 2014 में उन्होंने धौरहरा सीट से लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए. इसके बाद 2017 में हुए यूपी विधासभा चुनाव में पार्टी ने उन्हें शाहजहांपुर की तिलहर सीट से टिकट दिया, लेकिन जितिन प्रसाद विधानसभा चुनाव भी हार गए. फिर एक बार 2019 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने जितिन प्रसाद पर भरोसा दिखाया और धौरहरा से ही टिकट दिया, लेकिन इस बार भी वो बुरी तरह से हारे. इस हार के बाद से ही यूपी कांग्रेस में उनका रुतबा कम होने लगा था और पार्टी से नाराजगी बढ़ने लगी थी.
जितिन के बगावती तेवर काफी समय से नजर आ रहे थे. ऐसा माना जाता है कि वो लंबे समय से बीजेपी के संपर्क में थे.
साल 2019 लोकसभा चुनाव से ठीक पहले जितिन प्रसाद के बीजेपी में शामिल होने की अटकलें तेज हो गई थीं. जिसमें बताया गया कि जितिन बीजेपी के टिकट से चुनाव लड़ सकते हैं. इसे लेकर जब जितिन से सवाल पूछा गया था तो उन्होंने इनकार भी नहीं किया. उन्होंने कहा कि ये एक काल्पनिक सवाल है, जिसका जवाब मैं नहीं दे सकता हूं. यानी उन्होंने अटकलों पर पूरी तरह विराम नहीं लगाया.
चिट्ठी विवाद थमने के बाद जब पश्चिम बंगाल चुनाव में उम्मीदवारों की घोषणा हो रही थी, तब भी जितिन प्रसाद की नाराजगी देखने को मिली थी. उन्होंने कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी पर हमला बोलते हुए कहा था कि, उम्मीदवारों का ऐलान करने में देरी क्यों हो रही है. साथ ही उन्होंने गठबंधन को लेकर भी सवाल खड़े कर दिए थे.
इसके अलावा जब पश्चिम बंगाल में कांग्रेस की करारी हार हुई तो जितिन प्रसाद को एक और मौका मिला. उन्होंने कांग्रेस कार्य समिति की बैठक में खुलेआम कहा कि कांग्रेस को आईएसएफ के साथ गठबंधन नहीं करना चाहिए था. उन्होंने कहा था कि इस गठबंधन ने कांग्रेस की संभावनाओं को चौपट कर दिया.
अब सवाल ये है कि जब पिछले करीब 7 साल से जितिन प्रसाद का राजनीतिक करियर ठीक नहीं चल रहा है तो ऐसे में बीजेपी ने उन्हें इतने जोर शोर के साथ अपने पाले में क्यों शामिल किया? दरअसल हालिया इतिहास पर गौर करेंगे तो पता चलेगा कि ये अब बीजेपी की SOP का हिस्सा है. हिमाचल में सुखराम हों या फिर उत्तराखंड में एनडी तिवारी, चुनाव पूर्व तोड़फोड़ अब चुनाव लड़ने का अहम हथियार बन चुका है. असम से लेकर बंगाल तक उदाहरण भरे पड़े हैं. यूपी में आने वाले समय में इस पैटर्न पर और भी घटनाक्रम आप देखें तो ताज्जुब नहीं होना चाहिए. यूपी में ये और भी जरूरी है कि क्योंकि योगी सरकार ने प्रोग्रेस से लेकर परसेप्शन तक में खूब बदनामी कमाई है. रही सही कलई कोरोना ने खोल दी. अब नौबत ये है कि बीजेपी आलाकमान से लेकर आरएसएस तक चिंता में है. तो जितिन भले ही अपने साथ बहुत बड़ी सियासी साख नहीं लाएंगे लेकिन माहौल बना सकते हैं. कांग्रेस का 20 साल पुराना सिपहसलार टूटेगा तो सोशल मीडिया के सैनिकों के जरिए खूब पटाखे फोड़े जाएंगे. और एक बार फिर से हम नहीं तो और कौन का नेरिटिव चलेगा.
जितिन को लाने के पीछे एक और वजह हो सकती है ब्राह्मण वोट. पिछले कई महीने से यूपी की राजनीति में ब्राह्मण बनाम ठाकुर की बहस चल ही है. योगी सरकार पर ब्राह्मण नेताओं ने खुलकर ब्राह्मण विरोधी होने के आरोप लगाए हैं. ऐसे में जितिन प्रसाद को लाकर पार्टी एक बैलेसिंग एक्ट कर रही है. जितिन भी हाल फिलहाल अलग ट्विटर हैंडल के जरिए अपनी पोजिशनिंग ब्राह्मण नेता के तौर पर करा रहे थे. ब्राह्मण चेतना परिषद जैसे हैंडल देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि ये पूरी तरह से जितिन का प्रचार कर रहे थे.
प्रत्यक्ष तौर पर लग सकता है कि कांग्रेस को बड़ी चोट है, लेकिन जिस तरह से जितिन बीजेपी की लाइन पर लोकसभा क्षेत्रों के परिसीमन की पैरवी कर रहे थे, जिस तरह से पार्टी को लेकर बयानबाजी कर रहे थे, उससे ये कितनी बड़ी चोट है, ये बहस का विषय हो सकता है. यूपी विधानसभा चुनाव के लिए बीजेपी और जितिन ने अपने दांव खेले हैं, उनके लिए भी देखना होगा कि ये दांव क्या नतीजे लाता है.
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Published: 09 Jun 2021,05:04 PM IST