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कोरोना महामारी की दूसरी लहर ने पूरे देशभर के अस्पतालों और सरकारी व्यवस्था की पोल खोलकर रख दी. इलाज के लिए दर-दर भटकते मरीज और अस्पताल के बाहर उखड़ती सांसों ने राज्य और केंद्र सरकार के दावों की सच्चाई बताई. लेकिन इस सबके बावजूद सरकारें सब कुछ ठीक होने का दावा कर रही हैं. गांवों में स्वास्थ्य व्यवस्थाय और खस्ताहाल है. इसे दिखाने के लिए हमने यूपी के कुछ जिलों में मौजूद कुछ स्वास्थ्य केंद्रों का दौरा किया.
जिला अयोध्या स्थित रुदौली कटरा हनुमान मंदिर के पास मौजूद इस प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में डॉक्टर ही नहीं आते, इसीलिए यहां हमेशा लोगों को ताला ही लटका हुआ दिखता है.
अयोध्या जिले के ही रुदौली ब्लॉक के पकड़िया गांव में स्थित इस स्वास्थ्य केंद्र में कभी कोई डॉक्टर नहीं आते. यह सिर्फ पोलियो ड्रॉप देने के समय खुलता है. यहां सुविधा मिले तो आसपास के नौ गांव को लाभ होगा. फिलहाल ये पार्किंग और आराम करने के लिए इस्तेमाल हो रहा है. साथ ही पिछले हिस्से में जानवरों के चारा की व्यवस्था भी की गई है.
सोनभद्र जिले के कोन क्षेत्र में तत्कालीन समाजवादी पार्टी सरकार में सदर विधायक अविनाश कुशवाहा ने 2015 में सीएचसी की स्वीकृति दी थी, जिसका टेंडर होते ही 2016 से निर्माण कार्य शुरू हुआ और दिसंबर 2019 मे बनकर तैयार हो गया. लेकिन आज तक भी यहां सिर्फ बिल्डिंग ही है. इस केंद्र में किसी डॉक्टर की पोस्टिंग नहीं हुई है. महामारी के दौरान भी यहां कोई डॉक्टर नहीं आया.
झांसी के करारी गांव में बना प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र भूतिया घोषित हो चुका है. यानी कहा जाता है कि भूत के डर की वजह से लोग यहां इलाज करवाने ही नहीं आते. साथ ही डॉक्टर भी इस अफवाह का पूरा फायदा उठा रहे हैं. ग्रामीण का कहना है कि अस्पताल में भूत और चुड़ैल रहते हैं जिस वजह से यहां कर्मचारी और डॉक्टर नहीं पहुंचते हैं. झांसी मुख्यालय से करीब 8 किलोमीटर की दूरी पर करारी में स्थित है.
जिला फतेहपुर के ऐरांया ब्लॉक के मोहम्मदपुर गौंती नाम के इस गांव में यह प्राथमिक केंद्र 3 साल पहले खुला. गांव के वर्तमान प्रधान कफील अहमद ने बताया कि दस बेड के इस अस्पताल में कोविड शुरू होने से पहले से डॉक्टर उपलब्ध नहीं है. पिछले एक साल से यहां ताला लगा हुआ है. लोगों को इलाज के लिए 10 किमी दूर या फिर झोलाछाप डॉक्टरों के पास जाना पड़ता है.
फतेहपुर के ही पीएचसी सरकंडी के स्वास्थ्य केंद्र का हाल तो कुछ ऐसा है कि यहां कभी इलाज ही नहीं हुआ. आज ये स्वास्थ्य केंद्र किसी खंडहर से कम नहीं लगता है.
अब यूपी के जिला ललितपुर की बात करें तो यहां के कस्बा नाराहट छेत्र के अंतर्गत ग्राम डोगरा खुर्द में लाखों की लागत से अस्पताल तैयार हुआ. लेकिन इसके बाद से ही डॉक्टरों के अभाव में ये बंद पड़ा है.
जनपद ललितपुर की ही एक तहसील मड़ावरा के अंतर्गत आने वाले ग्राम गिरार में डॉक्टरों के अभाव के कारण चिकित्सा सुविधा से नहीं मिल रही है. स्थानीय लोगों का कहना है कि यहां डॉक्टर हफ्तों में आते हैं इसलिए ज्यादातर अस्पताल बंद ही पड़ा रहता है.
जालौन जिले के महेबा का ये चुर्खी गांव ऐतिहासिक है, क्योंकि यहीं रानी लक्ष्मी बाई ने अपनी पीठ पर बच्चे को बांधा था. यहां उनकी बहन का ससुराल है. लेकिन यहां के स्वास्थ्य केंद्र में सिर्फ फर्स्ट एड की सुविधा है. दवाओं और ऑक्सीजन की कोई सुविधा नहीं है. जबकि 7 हजार लोगों की आबादी पर ये एक अस्पताल है.
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