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Kichcha Sudeep BJP के साथ, क्या कन्नड़ फिल्म इंडस्ट्री चुनाव पर असर डाल सकता है?

बीजेपी क्यों चाहती है कि कन्नड़ अभिनेता किच्चा सुदीप कर्नाटक चुनाव 2023 में पार्टी के लिए प्रचार करें?

नाहिद अताउल्ला
पॉलिटिक्स
Published:
<div class="paragraphs"><p>कन्नड़ अभिनेता किच्चा सुदीप मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई के साथ.</p></div>
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कन्नड़ अभिनेता किच्चा सुदीप मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई के साथ.

(फोटो: द क्विंट)

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भारतीय जनता पार्टी (BJP) और कांग्रेस (Congress), दोनों की तरफ अपने पाले में करने की कोशिश के बाद कन्नड़ फिल्म अभिनेता किच्चा सुदीप (Kichcha Sudeep) ने 5 अप्रैल को आखिरकार कर्नाटक की सत्तारूढ़ पार्टी को चुना. उन्होंने हालांकि साफ तौर से कहा है कि वह चुनाव नहीं लड़ेंगे, मगर कर्नाटक के मुख्यमंत्री और बीजेपी नेता बसवराज बोम्मई के चुनाव प्रचार में शामिल होने की पेशकश की है.

10 मई को होने वाले विधानसभा चुनाव में बीजेपी की हार की भविष्यवाणी करने वाले कुछ जनमत सर्वेक्षणों के बीच चंद मौजूदा विधायकों ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया है, आरक्षण की नई व्यवस्था पर विवाद हो रहा है, उम्मीदवारों की जारी होने वाली लिस्ट को लेकर बेचैनी है, और इस सबके बीच बोम्मई बचाव की मुद्रा में हैं.

अनुसूचित जातियों के लिए आंतरिक आरक्षण के राज्य सरकार के फैसले का बंजारा समुदाय ने विरोध शुरू कर दिया है, जिन्हें एससी लिस्ट में 4.5 फीसदी आरक्षण दिया गया है. बोम्मई के निर्वाचन क्षेत्र शिग्गांव में आरक्षण को लेकर एक बंजारा पुजारी ने आत्महत्या की कोशिश भी की.

किच्छा सुदीप

(फोटो: ट्विटर) 

ऐसा लगता है कि सुदीप को साथ लाकर बोम्मई का मकसद वाल्मीकि या नायक वोटरों को रिझाना है. ये अनुसूचित जनजातियों की कैटेगरी में आते हैं और राज्य की 6.76 करोड़ की कुल आबादी का करीब 6.6 प्रतिशत हैं. कर्नाटक में कुल 224 निर्वाचन क्षेत्रों में से 36 विधानसभा सीटें अनुसूचित जाति के लिए और 15 अनुसूचित जनजाति के लिए रिजर्व हैं. सुदीप वाल्मीकि समुदाय से आते हैं और ऐसा लगता है कि उन्हें चित्रदुर्ग, बेल्लारी और रायचुर में वाल्मीकि बहुल निर्वाचन क्षेत्रों में चुनाव प्रचार में उतारने की तैयारी है.

‘अगर मामा बोम्मई को मदद की जरूरत हो…’

मुख्यमंत्री के साथ एक संवाददाता सम्मेलन में 51 साल के अभिनेता, जो कन्नड़ रियलिटी शो ‘बिग बॉस’ की मेजबानी भी करते हैं, ने कहा कि जहां भी उनके मामा बोम्मई कहेंगे वहां वह प्रचार करेंगे.

"अगर उन्हें (बोम्मई) किसी मदद की जरूरत होगी तो मैं उनकी मदद करूंगा. मैं कहना चाहता हूं कि यह पूरी तरह एक शख्स का समर्थन है. बोम्मई उन लोगों में से हैं, जो तब मेरे साथ थे, जब मैं मुश्किल में था. यह इस शख्स के लिए मेरी जिम्मेदारी और कृतज्ञता है…”
किच्चा सुदीप

किच्चा सुदीप (दाएं से दूसरे) मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई और मंत्री के. सुधाकर के साथ.

(फोटो: द क्विंट)

किच्छा सुदीप ने मंत्री एन. मुनिरत्ना के लिए उस समय प्रचार किया था, जब उन्होंने 2020 में कांग्रेस से इस्तीफा देने के बाद बेंगलुरु की राजराजेश्वरी नगर सीट से उपचुनाव लड़ा था. सुदीप के चाचा सरोवर श्रीनिवास 2000 के दशक में दो बार जनता दल (सेक्युलर) से MLC रह चुके हैं.

बोम्मई को समर्थन देने के सुदीप के ऐलान पर फिल्म समुदाय से मिली-जुली प्रतिक्रिया आई है. अभिनेता और एक्टिविस्ट प्रकाश राज ने ट्वीट किया: “मुझे पक्का यकीन है कि कर्नाटक में बीजेपी की हार की बौखलाहट में फैलाई गई यह फेक न्यूज है. किच्छा सुदीप इतने समझदार हैं कि वह झांसे में नहीं आएंगे.”

AICC महासचिव और कर्नाटक प्रभारी रणदीप सिंह सुरजेवाला ने ट्वीट किया: “एक फिल्म स्टार यह चुनने के लिए आजाद है कि वह किसका समर्थन करे, कई बार IT-ED या कोई और वजह हो सकती है. कर्नाटक में बीजेपी का दिवालियापन साफ दिख रहा है. चूंकि कोई भी सीएम बोम्मई और बीजेपी नेताओं को सुनने के लिए नहीं आता है, वो अब भीड़ खींचने के लिए फिल्मी सितारों पर निर्भर हैं. फिल्मी सितारे नहीं बल्कि लोग कर्नाटक की किस्मत का फैसला करेंगे.”

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क्या कन्नड़ फिल्म इंडस्ट्री चुनाव पर असर डाल सकता है?

क्या फिल्म जगत के दिग्गज राजनीतिक दलों के लिए वोट जुटाते हैं? पड़ोसी राज्य तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश के उलट, जहां एमजी रामचंद्रन, जे. जयललिता, एम. करुणानिधि और एनटी रामाराव जैसे दिग्गजों को क्षेत्रीय दल को लॉन्च करने और सरकार चलाने का श्रेय दिया जाता है, कन्नड़ फिल्म इंडस्ट्री या सैंडलवुड (Sandalwood) के अभिनेताओं को दो श्रेणियों में रखा जा सकता है.

पहले वर्ग में, ऐसे अभिनेता आते हैं, जो चुनावी राजनीति में कदम रखते हैं और दूसरे वर्ग में ऐसे अभिनेता हैं, जो सिर्फ चुनाव के दौरान अपनी करीबी पार्टियों के लिए रैलियों को संबोधित करने आते हैं. इसके अलावा कन्नड़ फिल्म इंडस्ट्री सिर्फ इंडस्ट्री के भीतर की समस्याओं को लेकर ही सामने आई है.

कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए, जहां किच्चा सुदीप ने उनके लिए अपना समर्थन जताया.

(फोटो: द क्विंट)

“कन्नड़ फिल्म अभिनेता चुनाव के दौरान आम लोगों के बीच जाते हैं. राजनेता उन्हें स्टार प्रचारक के तौर पर इस्तेमाल करते हैं, बाद में वे गायब हो जाते हैं. दिवंगत एमएच अंबरीश, उमाश्री, तारा या मुख्यमंत्री चंद्रू जैसे तमाम लोग पूर्णकालिक राजनीति नहीं करना चाहते थे.” यह कहना है कर्नाटक प्रदेश कांग्रेस कमेटी (KPCC) महासचिव मिलिंद धर्मसेना का जिन्होंने तीन कन्नड़ फिल्मों के लिए संगीत दिया है.

नाम न छापने की शर्त पर एक राजनीतिक पर्यवेक्षक ने कहा, ऐसा कोई उदाहरण नहीं है, जब सैंडलवुड के सितारों की रैलियों के परिणामस्वरूप उम्मीदवारों के पक्ष में वोटों का झुकाव हुआ हो. राजनीतिक पर्यवेक्षक ने कहा, “लोग अभिनेताओं को देखने और सुनने आते हैं, लेकिन अंतिम फैसला उम्मीदवार के कद, पार्टी, जाति और उम्मीदवार की पार्टी द्वारा किए गए विकास के कामों से ही करते हैं.”

1990 के दशक में अभिनेता अनंत नाग और उनके भाई शंका नाग ने जनता पार्टी के लिए प्रचार किया था. बाद में अनंत नाग ने चुनाव लड़ा और जनता दल सरकार में मंत्री बने. उन्होंने अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपना समर्थन देने की पेशकश की है.

एक फिल्म की सीन में अनंत नाग.

(फोटो: फेसबुक)

फिल्म पत्रकार और कर्नाटक फिल्म जर्नलिस्ट संघ (KFJA) की उपाध्यक्ष सुनयना सुरेश कहती हैं:

“राजनीति और सिनेमा के बीच का रिश्ता बहुत हद तक सहजीवी है, क्योंकि दोनों में जन अपील और नेतृत्व की क्षमता है. जो सपने देखते हैं, मुझे लगता है कि उनके लिए राजनीति वह जगह है जहां रुपहले पर्दे पर निभाई उनकी भूमिका को विस्तार मिल सकता है."

एक और फिल्म पत्रकार जीएस कुमार कहते हैं, “अंबरीश में भीड़ खींचने का करिश्मा था और वह स्टार प्रचारक थे. लेकिन चुनाव और प्रचार दो अलग-अलग चीजें हैं और कोई दावा नहीं कर सकता है कि चुनाव प्रचार वोटों में तब्दील हो सकता है.’'

राजनीति के मैदान में आने वाले अभिनेताओं में एक अकेला अपवाद कन्नड़ फिल्म आइकन डॉ. राजकुमार (फिल्मी नाम) हैं. डॉ. राजकुमार (Dr Rajkumar) राजनीति से एकदम अलग रहे और जब भी राजनेताओं ने उन्हें समर्थन देने के लिए बुलाया, उन्होंने इन्कार कर दिया. 1978 के चिकमगलुरु लोकसभा सीट के उपचुनाव में जनता पार्टी राजकुमार को पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के खिलाफ उतारना चाहती थी. राजकुमार तमिलनाडु में चेन्नई से 100 किलोमीटर दूर रानीपेट के पास एक फार्म हाउस में छिप गए, जबकि जनता पार्टी के नेता उन्हें फिल्म उद्योग के उनके साथियों के घरों में ढूंढते रहे.

डॉ. राजकुमार

(फोटो: ट्विटर) 

डॉ. राजकुमार के परिवार की राजनीति में सक्रिय भागीदारी सिर्फ एक बार तब देखी गई जब उनकी बहू ( शिवराज कुमार की पत्नी) गीता राजकुमार ने 2014 में शिवमोगा लोकसभा सीट से पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा के खिलाफ चुनाव लड़ा था. लेकिन गीता के राजनीति में उतरने का फैसला राजकुमार के बजाय उनके पिता और कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री एस. बंगरप्पा के चलते अधिक था.

डॉ. राजकुमार को छोड़कर सैंडलवुड से सभी ने कर्नाटक चुनाव में हिस्सेदारी निभाई है.

फिल्मी सितारों की भागीदारी

कन्नड़ फिल्म उद्योग के कई प्रमुख अभिनेता चुनावी राजनीति में उतरे, जिसका फायदा उनके राजनीतिक दलों को मिला. ‘बागी नायक’ एमएच अंबरीश यकीनन राजनीतिक मोर्चे पर सबसे कामयाब सितारे रहे हैं. उन्होंने अपनी राजनीतिक पारी जनता दल (सेक्युलर) के साथ शुरू की, बाद में कांग्रेस में शामिल हो गए और मांड्या लोकसभा क्षेत्र से सांसद बनने के बाद UPA (1) सरकार में केंद्रीय मंत्री बने, मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के मंत्रिमंडल में मंत्री बने. मांड्या-दा गंडू (मांड्या का दबंग) के नाम से मशहूर अंबरीश मांड्या में प्रभावशाली वोक्कालिगा जाति के वोटों को खींचने वाले नेता थे, और 2013 में कांग्रेस को जिले में विधानसभा सीटें जिताने में मदद की थी.

एमएच अंबरीश और सुमलता.

(फोटो: ट्विटर)

2018 में उनके निधन के बाद उनकी पत्नी और अभिनेत्री सुमलता अंबरीश ने 2019 में मांड्या लोकसभा सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा और पूर्व मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी के अभिनेता-पुत्र निखिल कुमारस्वामी को हराकर जीत हासिल की. 2019 के चुनाव के दौरान कांटे की टक्कर में दो दमदार महारथी आमने-सामने थे– 'रॉकिंग स्टार’ यश और दर्शन थोगुदीपा ने उनके लिए चुनाव प्रचार किया और बीजेपी ने कोई उम्मीदवार नहीं उतारा. ऐसी अटकलें हैं कि थोगुदीपा इस चुनाव में बीजेपी को समर्थन दे सकती हैं. हाल ही में सुमलता ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपना समर्थन देने का ऐलान किया है.

दिलचस्प बात यह है कि हाई प्रोफाइल मांड्या लोकसभा सीट ने दूसरे कन्नड़ अभिनेताओं का भी ध्यान खींचा. अंबरीश के बाद इस सीट की नुमाइंदगी राम्या (फिल्मी नाम) ने की, जो 2013 में कांग्रेस के टिकट पर जीती थीं. आठ महीने के अपने छोटे से कार्यकाल में राम्या निर्वाचन क्षेत्र के विकास से सक्रिय रूप से जुड़ी रहीं. हालांकि अपनी चुनावी महत्वाकांक्षा को लेकर उन्होंने इस साल खामोशी अख्तियार कर रखी है.

इस विधानसभा चुनाव में निखिल कुमारस्वामी रामनगर से जनता दल (सेक्युलर) के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ेंगे. एक और मशहूर सपोर्टिंग एक्टर उमाश्री, जिन्होंने कन्नड़ टीवी सीरियल ‘पुत्तकन्ना मक्कलू’ (Puttakanna Makkalu) में लोकप्रिय भूमिका निभाई है, बागलकोट जिले के तेरदल से चुनाव लड़ेंगी.

किच्छा सुदीप इस लंबी सूची में सबसे नए मेहमान हैं.

किच्चा सुदीप कौन हैं?

सुदीप को 2001 की फिल्म ‘हुच्चा’ से शुरुआती नाम ‘किच्चा’ मिला, जिसमें उनका स्क्रीन नाम किच्चा था. दो साल बाद ‘किच्चा’ नाम की एक फिल्म रिलीज हुई, जिसमें सुदीप ने एक ग्रेजुएट की भूमिका निभाई. उनकी फिल्म ‘ईगा’ को ‘मक्खी' नाम से हिंदी में डब किया गया था और यह हिट रही थी. उनकी मुख्य भूमिका वाली पिछली फिल्म 2022 में रिलीज हुई ‘विक्रांत रोणा’ (Vikrant Rona) थी. उन्होंने फरवरी 2023 में रिलीज हुई ‘कब्जा’ में एक्सटेंडेड कैमियो किया था.

क्या किच्चा सुदीप कर्नाटक में बीजेपी के लिए मददगार साबित होंगे? हिंदुत्ववादी पार्टी ऐसा ही सोचती है. बसवराज बोम्मई कहते हैं, “इससे पार्टी को ज्यादा सीटें हासिल करने में मदद मिलेगी. मैं उन्हें हमारा समर्थन करने के लिए बधाई देता हूं.”

(नाहीद अताउल्ला बेंगलुरु के वरिष्ठ राजनीतिक पत्रकार हैं)

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