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कर्नाटक में विधानसभा के चुनाव शाम 6 बजे खत्म हो गए. इसके साथ ही तमाम सर्वे एजेंसियों ने अपने-अपने एग्जिट पोल भी जनता के सामने रख दिए. अधिकतर एग्जिट पोल में कांग्रेस की सरकार बनती दिख रही है या वो सरकार बनाने के करीब है. दो सर्वे एजेंसियों ने अपने एग्जिट पोल में बीजेपी को बहुमत दिया है.
हालांकि, फाइनल नतीजे 13 मई को आएंगे, लेकिन उससे पहले आए एग्जिट पोल के नतीजों से साफ हो गया है कि कांग्रेस प्रदेश की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है. 'मोदी मैजिक' शिथिल पड़ गया है, स्थानिय मुद्दे हावी हैं और राहुल-प्रियंका की जोड़ी के साथ खड़गे का नेतृत्व कांग्रेस के लिए अच्छे संकेत लेकर आए हैं.
ऐसे में आइए कुछ बिंदुओं के जरिए हम समझने की कोशिश करते हैं कि आखिर ऐसा हुआ कैसे? बीजेपी कहां पीछे रह गई और कांग्रेस कहां लीड ले गई? लेकिन, उससे पहले एग्जिट पोल के नतीजों पर एक नजर डाल लते हैं.
इंडिया टुडे- एक्सिस माय इंडिया के मुताबिक BJP को 62-80 सीट, कांग्रेस को 122-140 और जेडीएस को 20-25 सीट, जबकि अन्य के खाते में 0-3 सीट आ सकती है.
जन की बात के मुताबिक BJP को 94-117 सीट, कांग्रेस को 91-106 और जेडीएस को 14-24 सीट, जबकि अन्य के खाते में 0-2 सीटें आ सकती है.
एबीपी सी-वोटर के मुताबिक BJP को 83-95 सीट, कांग्रेस को 100-112 और जेडीएस को 21-29 सीट, जबकि अन्य के खाते में 2-6 सीटें आ सकती है.
न्यूज 24 टुडेज चाणक्य एनालिसिस एग्जिट पोल के अनुसार कांग्रेस को 120, बीजेपी को 92 और JD(S) को 12 सीट मिलने का अनुमान लगाया गया है.
Times Now-ETG के एग्जिट पोल के अनुसार बीजेपी को 85, कांग्रेस को 113 और JD(S) को 23 सीट मिलने की संभावना जताई है.
कर्नाटक में पिछले 35 साल की रवायत अभी भी कायम होती दिख रही है. यानी जो सरकार में है, वो चुनाव के बाद विपक्ष में होगा. ये चुनाव कांग्रेस और बीजेपी दोनों के लिए महत्वपूर्ण माना जा रहा था. वो इसलिए, क्योंकि यह दक्षिण भारत का इकलौता राज्य था, जहां बीजेपी किसी भी तरह सत्ता पर स्थापित हुई थी. यहां से दूसरे दक्षिणी राज्यों में पार्टी के लिए गलियारा खुलने की उम्मीद थी.
बीजेपी के लिए दूसरी महत्वपूर्ण बात ये थी कि यहां अभी भी कांग्रेस मजबूत है, जो उसके कांग्रेस मुक्त भारत के अभियान को एक बड़ा झटका है.
दरअसल, राज्य में बीजेपी के पूरे चुनावी अभियान का मुख्य चेहरा मोदी ही रहे. वो जनवरी से मई तक कई बार कर्नाटक दौरे पर गए. एक रिपोर्ट के मुताबिक अभियान के सिर्फ आखिरी चरण में ही उन्होंने राज्य में 22 रैलियों को संबोधित किया. ऐसे वक्त में भी अगर बीजेपी की सत्ता में वापसी नहीं होती है तो निश्चित रूप से पीएम मोदी का चेहरा और बीजेपी की लगातार जीत पर एक डेंट लगेगा.
सीनियर जर्नलिस्ट अशोक वानखेड़े ने क्विंट हिंदी से बातचीत में कहा कि...
एग्जिट पोल में आए नतीजे अगर 13 मई को इसी रूप में मिलते हैं तो कांग्रेस के लिए एक बड़ी जीत होगी. 2024 में लोकसभा के चुनाव हैं, इससे पहले राजस्थान, एमपी, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और आंध्रा में चुनाव होने हैं. जहां, पहले से ही कांग्रेस की दो राज्यों (राजस्थान और छत्तीसगढ़) में सरकार है और जानकारों के मुताबिक एमपी में भी कांग्रेस की स्थिति मजबूत होती दिख रही है. इस चुनाव के नतीजे भी राहुल गांधी की इमेज पर एक अच्छा प्रभाव डालेंगे.
सीनियर जर्नलिस्ट अशोक वानखेड़े ने क्विंट हिंदी से बातचीत में कहा कि...
वानखेड़े आगे कहते हैं कि "कर्नाटक में कांग्रेस की जीत के साथ ही लोकसभा चुनाव में विपक्षी एकता को भी मजबूती मिलेगी. क्योंकि, अभी तक विपक्ष, केंद्र में कमजोर हो रही कांग्रेस पर दांव लगाने के लिए तैयार नहीं था, वह दूसरा विकल्प तलाश रहा था. लेकिन, कर्नाटक की जीत से कांग्रेस के प्रति विपक्ष की भी उम्मीदें जगेंगी. मौजूदा वक्त में विपक्ष जिस तरह से केंद्र के निशाने पर है, वह भी जानता है कि अगर 2024 में सत्ता परिवर्तन नहीं हुआ तो उसके लिए बड़ी मुश्किल हो जाएगा."
एग्जिट पोल में आए नतीजों में अक्सर त्रिशंकु के ही आसार नजर आ रहे हैं. अधिकतर मीडिया सर्वे में कांग्रेस को सबसे बड़ी पार्टी दिखाया तो गया है, लेकिन पूर्ण बहुत के रूप में स्थापित नहीं किया गया है. ऐसे में अगर कर्नाटक विधानसभा चुनाव त्रिशंकु होता है तो इसमें सबसे बड़ा मौका JDS को मिलने वाला है. JDS किंगमेकर की भूमिका में होगी.
हालांकि, इस बार कर्नाटक विधानसभा चुनावों में जेडीएस के चुनावी अभियान को राष्ट्रीय मीडिया ने ज्यादा जगह नहीं दी, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि पार्टी मैदान से नदारद रही. हां ये जरूर है कि दूर से देखने पर कर्नाटक विधानसभा का चुनाव द्विध्रुवीय संघर्ष के रूप में नजर आ रहा हो, लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं है कि बीजेपी और कांग्रेस के बीच जेडीएस ने तीसरी शक्ति के रूप में लगभग दो दशकों से अपनी जगह बनाई हुई है.
2004 से लेकर 2018 तक पार्टी का वोट प्रतिशत 18 से 20 प्रतिशत के बीच ही रहा है, जिसकी बदौलत पार्टी इन वर्षों में 20 से 40 सीटें ही जीत पाई है. बस 2004 में पार्टी को 58 सीटों पर जीत हासिल हुई थी. इतनी सीटों के साथ पार्टी हमेशा 'किंगमेकर' यानी सरकार बनाने वाली पार्टी के मददगार की भूमिका में ही रही है. बीते सालों में पार्टी बीजेपी और कांग्रेस दोनों के ही साथ हाथ मिला कर सरकार बना चुकी है.
इस बार चुनाव से पहले जेडीएस ने न बीजेपी से गठबंधन किया है और न कांग्रेस से. बल्कि कुमारस्वामी ने अपने चुनावी अभियान में दोनों पार्टियों की आलोचना की. बीजेपी और कांग्रेस ने भी जेडीएस पर एक दूसरे की 'बी टीम' होने का आरोप लगाया.
खैर, अभी सर्वे और अनुमानों पर की गई आंकड़े बाजी के खेल में मीडिया और पार्टियों को जो मिला सो मिला, लेकिन 13 मई को आने वाले अंतिम नतीजे ही बताएंगे कि कौन किस पर भारी है और किसका 'युग' और 'मैजिक' शिथिल पड़ने लगा है.
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