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Karnataka Assembly Election Results: कर्नाटक में कांग्रेस की जीत का श्रेय सिद्धारमैया की जन अपील, डीके शिवकुमार के संगठनात्मक कौशल और पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के नेतृत्व को जाता है. लेकिन इनके अलावा एक और नेता रहे हैं जिनके बारे में कहा जाता है कि उन्होंने अपना काम दक्षता के साथ किया - कर्नाटक के प्रभारी कांग्रेस महासचिव रणदीप सिंह सुरजेवाला (Randeep Singh Surjewala) .
कांग्रेस के सूत्रों का कहना है कि जब मल्लिकार्जुन खड़गे अपनी नई टीम की नियुक्ति करेंगे, तो सुरजेवाला एक महत्वपूर्ण कार्यभार संभाल सकते हैं. उस पर और बाद में बात करते हैं.
पहले जानते हैं कि सुरजेवाला ने कर्नाटक चुनाव में क्या भूमिका निभाई?
2019 के लोकसभा चुनावों में, कांग्रेस को कर्नाटक में भारी हार का सामना करना पड़ा. पार्टी केवल 1 सीट जीती थी. डीके शिवकुमार के भाई डीके सुरेश बेंगलुरु ग्रामीण सीट से लोकसभा पहुंचे थे.
इसके बाद कांग्रेस और जनता दल-सेक्युलर के बीच एचडी कुमारस्वामी के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार गिर गई.
कांग्रेस के विधायक जब पार्टी छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए थे तो फिर उपचुनाव कराए गए. लेकिन कई उपचुनावों में भी पार्टी को हार का सामना करना पड़ा.
सबसे पहले, दिनेश गुंडु राव ने कर्नाटक कांग्रेस अध्यक्ष के पद से इस्तीफा दे दिया. कुछ महीने बाद उनकी जगह डीके शिवकुमार ने ले ली. फिर उसी वर्ष बाद में, रणदीप सुरजेवाला ने कर्नाटक कांग्रेस के प्रभारी महासचिव केसी वेणुगोपाल की जगह ली.
सुरजेवाला उस समय संचार के प्रभारी कांग्रेस महासचिव थे. वह 2022 तक उस पद पर रहे. उसके बाद उनकी जगह जयराम रमेश ने ले ली. सूत्र बताते हैं कि शिवकुमार और सुरजेवाला के बीच शुरू से ही अच्छे कामकाजी रिश्ते रहे.
दोनों नेताओं के साथ काम कर चुके एक सूत्र ने खुलासा किया, "दोनों नेता बहुत व्यावहारिक हैं और अपने दृष्टिकोण में दोनों बहुत स्पष्ट हैं."
कांग्रेस में किसी भी प्रभारी महासचिव के लिए सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक गुटीय प्रतिद्वंद्विता से निपटना है. यह तब और भी मुश्किल हो जाता है जब प्रभारी राज्य के प्रमुख नेताओं से जूनियर हो.
इस अर्थ में, सुरजेवाला के लिए भी चुनौती थी क्योंकि कर्नाटक में सिद्धारमैया, शिवकुमार और यहां तक कि जी परमेश्वर जैसे अन्य महत्वपूर्ण राज्य नेता उनसे सीनियर थे.
जाहिरा तौर पर, सुरजेवाला लगातार सभी राज्य के नेताओं का सम्मान करते रहे हैं और उन्होंने अन्य राज्यों के कुछ अन्य वर्तमान और पूर्व प्रभारियों के विपरीत अपने तरीके से आगे बढ़ने की कोशिश नहीं की.
उन्होंने कुछ मौकों पर अपनी नाराजगी जाहिर की, जैसे चुनावी अभियान की शुरुआत में जब सिद्धारमैया और शिवकुमार दोनों ने बारी-बारी से मीडिया में बयान दिए थे.
कर्नाटक अभियान से जुड़े एक पार्टी सूत्र ने खुलासा किया, "पार्टी आलाकमान और प्रभारी दोनों अच्छी तरह से समझते हैं कि सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार दोनों ही अपने काम में माहिर हैं और उन्हें पीछे से दबाव देने की कोई जरूरत नहीं है."
तीन अन्य फैक्टर्स ने दोनों नेताओं के बीच संतुलन बनाने में मदद की:
भारत जोड़ो यात्रा ने राहुल गांधी को कांग्रेस के भीतर निर्विवाद राष्ट्रीय नेता बना दिया. उनका शुरू से ही मानना था कि दोनों नेताओं को मिलकर काम करना चाहिए.
मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस अध्यक्ष बने. कर्नाटक के एक अनुभवी नेता होने के नाते, वह राज्य की राजनीति के हर पहलू को समझते हैं और सिद्धारमैया और शिवकुमार दोनों से सीनियर हैं. इसलिए किसी एक नेता का हावी होना असंभव था.
हिमाचल प्रदेश अभियान और इसमें प्रियंका गांधी की भूमिका ने कांग्रेस को प्रतिस्पर्धी गुटों को एक साथ काम करने का एक प्रभावी मॉडल दिया.
निश्चित रूप से, पहली चुनौती इस तरह से सुचारू सरकार गठन सुनिश्चित करना है जो कई चिंताओं को संतुलित करे - सिद्धारमैया और शिवकुमार दोनों को समायोजित किया जाए, यह सुनिश्चित किया जाए कि विधायक संतुष्ट हों. साथ ही आलाकमान की चिंताओं को भी दूर किया जा सके, शेष रूप से आने वाले 2024 के लोकसभा चुनाव के सन्दर्भ में.
ऐसी अटकलें भी हैं कि कर्नाटक में जीत के बाद, सुरजेवाला को पार्टी में और भी महत्वपूर्ण पद के लिए विचार किया जा सकता है.
छह महीने पहले कांग्रेस अध्यक्ष का पदभार संभालने के बावजूद मल्लिकार्जुन खड़गे ने अभी तक अपनी टीम की नियुक्ति नहीं की है. देरी मुख्य रूप से भारत जोड़ी यात्रा और कर्नाटक चुनाव के कारण हुई थी. इसे जल्द ही करना पड़ सकता है क्योंकि इस साल के अंत में 5 राज्यों में चुनाव होने वाले हैं.
केसी वेणुगोपाल का कार्यकाल समाप्त हो गया है और अब खड़गे को अपनी टीम का पुनर्गठन करना है. बेशक, जब कांग्रेस की बात आती है, तो कुछ भी निश्चित तौर पर कहना मुश्किल है. लेकिन कम ही लोग इस बात से इनकार कर सकते हैं कि कर्नाटक की जीत के बाद सुरजेवाला का कद पार्टी के अंदर बढ़ गया है.
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