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कर्नाटक की सियासत का तुरुप, जनार्दन रेड्डी.
कहानी शुरू होती है. 90 के दशक से...
एक पुलिस कॉन्स्टेबल का बेटा अपने दम पर खनन कारोबार की दुनिया का बेताज बादशाह बनता है और कर्नाटक की राजनीति उसके इर्द-गिर्द घूमने लगती है. साल आता है 2008. ये वही वक्त होता है, जब बीजेपी के लिए दक्षिण का द्वार खुलता है और इसके द्वारपाल बनते हैं, जनार्दन रेड्डी. बीजेपी की सरकार बनती हैं और इसके मुखिया बनते हैं, येदियुरप्पा. कैबिनेट में शामिल होते हैं, रेड्डी ब्रदर्स. जनार्दन रेड्डी, करुणाकर रेड्डी और सोमशेखर रेड्डी. यहीं से जनार्दन रेड्डी के खनन कारोबार में चार चांद लगता है और 10 लाख रुपए से बनाई गई खनन कंपनी का कारोबार देखते ही देखते, 5 हजार करोड़ के ऊपर पहुंच जाता है.
सियासत में आज कहानी कर्नाटक के रेड्डी ब्रदर्स की. लेकिन, कहानी को आगे बढ़ाने से पहले एक अपील है. अगर आपको मेरी कहानियां अच्छी लगती हैं, तो आप क्विंट मेंबर बनिए और हमें सपोर्ट कीजिए. इसके कई फायदे भी हैं, जिन्हें आप इस वीडियो के डिस्क्रिप्शन में देख सकते हैं.
साल 1999. सोनिया गांधी की राजनीति में एंट्री की तैयारी होती है. कांग्रेस लॉबी सोनिया गांधी को दो जगहों से चुनाव लड़ने की सलाह देती है. साल 1999 के लोकसभा चुनाव के लिए सोनिया गांधी दो जगहों से नामांकन दाखिल करती हैं. एक यूपी की अमेठी सीट से तो दूसरी कर्नाटक की बेल्लारी लोकसभा सीट से. सोनिया गांधी को चुनौती देने के लिए बीजेपी अपने सबसे बड़ी महिला नेता सुषमा स्वराज को बेल्लारी से चुनावी मैदान में उतारती है.
इसी चुनाव में रेड्डी ब्रदर्स, सुषमा स्वराज के चुनावी कैंपेन की जिम्मेदारी उठाते हैं. सुषमा स्वराज भले ही ये चुनाव हार गई थीं, लेकिन रेड्डी ब्रदर्स उनका विश्वास जीतने में सफल हो गए. इसके बाद से लगातार 10 साल तक हर साल सुषमा बेल्लारी में वारा महालक्ष्मी की पूजा में जाती रहीं. रेड्डी भाई सुषमा को थाई यानी मां कहकर बुलाते थे. कहा जाता है कि सुषमा स्वराज के कहने पर ही रेड्डी ब्रदर्स ने बीजेपी ज्वाइन की थी. जनार्दन रेड्डी की राजनीति में एंट्री साल 2006 में हुई थी, जब बीजेपी ने उन्हें MLC बनाकर कर्नाटक विधानसभा के ऊपरी सदन में भेजा.
अब आता है साल 2008. विधानसभा के चुनाव होते हैं. BJP को 224 में से 110 सीटें हासिल होती हैं. बहुमत के लिए पार्टी को सिर्फ 3 सीटों की जरूरत थी. आरोप लगते हैं कि रेड्डी ब्रदर्स की मदद से BJP ने कांग्रेस के तीन और JDS के चार विधायकों का इस्तीफा करवा दिया और ये विधायक BJP में शामिल हो गए. उपचुनाव में BJP ने 7 में से 5 सीटों पर जीत दर्ज की और पार्टी का आंकड़ा 115 पर पहुंच गया. विधायकों को तोड़ने का आरोप रेड्डी ब्रदर्स पर लगा था.
2008 में येदियुरप्पा सरकार में जनार्दन अपने दोनों भाइयों और दोस्त श्रीरामुलु के साथ मंत्री बने. मंत्री बनने के एक साल के अंदर ही उन्होंने बेल्लारी में चल रहे माइनिंग के बिजनेस पर पूरी तरह कंट्रोल कर लिया. रेड्डी भाइयों की सिर्फ कर्नाटक में ही नहीं, बल्कि आंध्रप्रदेश में भी मजबूत पकड़ थी. आंध्रप्रेदश के मुख्यमंत्री रहे YSR रेड्डी से उनके काफी अच्छे संबंध थे.
उधर, 2009 में आंध्रप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री YSR रेड्डी की एक हलीकॉप्टर हादसे में मौत हो गई. यही वो दौर था, जब रेड्डी का विशाल एम्पायर टूटना शुरू हुआ. अवैध खनन मामले में जनार्दन रेड्डी दोनों राज्यों में आरोपों से घिरते चले गए. इसके बाद उन पर फॉरेस्ट अफसरों को डरा-धमकाकर खदान लेने का मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया. उधर, CBI के रडार पर जनार्दन रेड्डी पहले से ही थे. 2009 में कर्नाटक में अवैध खनन के मामलों की जांच CBI को सौंप दी गई.
इसके बाद आंध्र प्रदेश में भी जनार्दन रेड्डी पर कार्रवाई करने की मांग तेज हो गई. भारी आलोचनाओं के बाद आंध्रप्रदेश सरकार को रेड्डी के खिलाफ जांच के लिए तीन मेंबर्स की कमेटी बनानी पड़ी. इस कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर ही CBI ने 2011 में रेड्डी को बेल्लारी में उनके घर से गिरफ्तार किया था. इसी साल कर्नाटक के लोकायुक्त संतोष हेगड़े ने भी रेड्डी के अवैध माइनिंग बिजनेस के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था.
उन्होंने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि रेड्डी के अवैध खनन से राज्य को 25 हजार करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है. रेड्डी भाइयों ने अवैध खनन के जरिए देश के 10 बंदरगाहों से चीन को तकरीबन 16,500 करोड़ रुपए का लौह अयस्क गैरकानूनी तरीके से निर्यात किया था. लोकायुक्त जस्टिस संतोष हेगड़े ने अपनी रिपोर्ट में 'बेल्लारी रिपब्लिक' को रेड्डी बंधुओं के काले कारोबार का गढ़ बताया.
जांच में पता चला कि आयरन की खुदाई करने वालों के पास ना कोई माइनिंग परमिट था और ना ही आयरन की ढुलाई करने वालों के पास ट्रांसपोर्ट परमिट था. निर्यात करने वालों के पास भी एक्सपोर्ट पर्मिट नहीं था.
बीएस येदियुरप्पा और रेड्डी बंधुओं ने बीजेपी छोड़ी दी. येदियुरप्पा ने कर्नाटक जनता पक्ष नाम से अपनी पार्टी बनाई तो रेड्डी ब्रदर्स के करीबी बी श्रीरामुलु ने बीएसआर कांग्रेस. बीजेपी को हराने के लिए 2013 में खूब जोर लगाया. रेड्डी ब्रदर्स उस समय जेल में थे. कांग्रेस कर्नाटक की सत्ता में वापसी कर चुकी थी तो रेड्डी का खनन का साम्राज्य खतरे में पड़ गया था. ऐसे में 2014 के चुनाव से ठीक पहले येदियुरप्पा और श्रीरामुलु की बीजेपी में वापसी हुई.
केंद्र में मोदी सरकार बनने के बाद 2015 में रेड्डी ब्रदर्स को भी जेल से जमानत मिल गई. 2018 में बीजेपी ने जनार्दन रेड्डी को छोड़कर उनके दो भाईयों को पार्टी में शामिल कर लिया और उन्हें टिकट भी दिया...कुछ सीटों की इंचार्ज भी बनाया गया. उन्हें जबरदस्त जीत मिली. हालांकि कांग्रेस ने जेडीएस के साथ तब सरकार बना ली. बाद में बीजेपी ने जेडीएस को तोड़कर अपनी सरकार बना ली.
हालांकि, जनार्दन रेड्डी सत्ता से बाहर ही रहे. अब जनार्दन रेड्डी ने सियासी वनवास को खत्म करते हुए नई पार्टी का ऐलान कर दिया है. पार्टी का नाम रखा गया है. कल्याण राज्य प्रगति पक्ष यानी KRPP, चुनाव चिन्ह फुटबॉल मिला है. जनार्दन रेड्डी ने कोप्पल जिले की गंगावती सीट से चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है. जनार्दन रेड्डी की बेल्लारी, कोप्पल, रायचूड़ और विजयनगर जिले की कुल 23 सीटों पर प्रभाव है. उनकी कर्नाटक के SC बेल्ट में भी कुछ हद तक पकड़ है, जिससे चुनाव में अन्य पार्टियों के वोट बैंक प्रभावित हो सकते हैं.
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