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Virbhadra Singh: जिसने कांग्रेस आलाकमान के सामने कभी घुटने नहीं टेके। SIYASAT

Himachal Politics: हारी बाजी जीतने वाले नेता थे वीरभद्र सिंह.

उपेंद्र कुमार
पॉलिटिक्स
Published:
<div class="paragraphs"><p>Virbhadra Singh: जिसने आलाकमान के सामने कभी घुटने नहीं टेके</p></div>
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Virbhadra Singh: जिसने आलाकमान के सामने कभी घुटने नहीं टेके

फोटोः (उपेंद्र कुमार/क्विंट हिंदी)

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हिमाचल की सियासत में सबसे लंबे वक्त तक राजनीतिक पारी खेलने वाले वीरभद्र सिंह की दिल्ली से हमेशा टकराहट ही रही. साल 1993 में जब नरसिम्हाराव सरकार ने उन्हें मुख्यमंत्री बनाने से साफ इनकार कर दिया तो उनके समर्थकों ने दिल्ली से भेजे गए पर्यवेक्षकों को ही हिमाचल में बंधक बना लिया. साल 2003 में जब सोनिया गांधी से टकराहट हुई तो उन्होंने पार्टी को ही तोड़ने की धमकी दे डाली. ऐसे ही साल 1998 में जब पार्टी को सरकार बनाने के लिए एक विधायक की जरूरत थी तो उनके समर्थकों ने बीजेपी से बागी होकर चुनाव जीते एक विधायको को बीच रास्ते ही उठा लिया.

वीरभद्र सिंह के आवास पर हमेशा जनता दरबार लगा रहता था. इसी जनता दरबार में एक बुजुर्ग महिला ने वीरभद्र सिंह से किराया का पैसा मांग लिया. इसके बाद वीरभद्र सिंह ने जो किया उसने सियासी गलियारों में उन्हें एक संवेदनशील मुख्यमंत्री के रूप में स्थापित कर दिया. उनके पास सेंस ऑफ ह्यूमर भी बहुत था. एक विद्यालय के एनुअल फंक्शन में पहुंचे तो छात्रों ने बॉयज स्कूल को को-एड यानी लड़का और लड़की दोनों के पढ़ने लिए घोषणा करने का आग्रह कर दिया. फिर उन्होंने उस स्कूल को को-एड करने की घोषणा तो कर दी लेकिन उन्होंने जो छात्रों से करने की अपील की उससे पूरा हॉल ठहाकों से गूंज उठा वीरभद्र सिंह से जुड़े ये सारे किस्से आइए जानते हैं.

साल था 1993. हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को पूर्ण बहुमत मिला था. लेकिन, दिल्ली में बैठा आलाकमान वीरभद्र सिंह को मुख्यमंत्री बनाने के मूड में नहीं था. दिल्ली से हिमाचल के लिए पर्यवेक्षक भेजे गए कि पंडित सुखराम के पक्ष में माहौल बनाएं और सुखराम को मुख्यमंत्री बनाने के लिए विधायकों को राजी करें. हालांकि, पंडित सुखराम उस समय केंद्र में संचार एवं सूचना प्रद्यौगिकी मंत्री थे. दिल्ली से जिन पर्यवेक्षकों को भेजा गया था उनमें पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह भी शामिल थे. जब विधायक दल की बैठक में पर्यवेक्षक पहुंचे तो वीरभद्र सिंह के पक्ष में उनके समर्थक विधायकों ने नारे लगाने शुरू कर दिए.

वरिष्ठ पत्रकार और हिमाचल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डॉक्टर शशिकांत शर्मा बताते हैं कि वीरभद्र सिंह के पक्ष में माहौल बनता देख कई विधायक उनके खेमे में शामिल हो गए, जो अभी तक सुखराम को सपोर्ट कर रहे थे. पर्यवेक्षकों ने वीरभद्र सिंह और सुखराम के पक्ष में विधायकों से सिग्नेचर करवाना शुरू किया, तब पता चला कि वीरभद्र सिंह के पक्ष में विधायकों की संख्या ज्यादा हो गई है. इस पर वीरभद्र सिंह के समर्थक विधायकों ने मांग करनी शुरू कर दी कि वीरभद्र सिंह को मुख्यमंत्री घोषित किया जाए. पर्यवेक्षकों ने साफ मना कर दिया कि इसकी घोषणा तो दिल्ली से ही होगी.

डॉक्टर शशिकांत बताते हैं कि इसके बाद वीरभद्र सिंह के समर्थक विधायकों ने हॉल की कुंडी लगा दी और वीरभद्र सिंह के पक्ष में नारेबाजी शुरू कर दी. वो मांग करने लगे कि जबतक वीरभद्र सिंह को मुख्यमंत्री बनाने की घोषणा नहीं की जाती तब तक पर्यवेक्षक यहां से नहीं जाएंगे. जैसे-तैसे पर्यवेक्षकों में शामिल पंजाब के मुख्यमंत्री बेअंत सिंह ने वीरभद्र सिंह की घोषणा करने की बात स्वीकारी. इसके बाद वीरभद्र सिंह के समर्थक विधायकों ने मीडिया को बुलाया और उसके बाद वीरभद्र सिंह के नाम की घोषणा कराई.

साल 1995 में पूर्व केंद्रीय मंत्री सुखराम को भ्रष्टाचार के मामले में कांग्रेस से बाहर कर दिया गया. सुखराम ने हिमाचल विकास कांग्रेस का गठन किया. 1998 के विधानसभा चुनाव में सुखराम ने मंडी सदर से चुनाव जीता. इस चुनाव में किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत हासिल नहीं हुआ था. इसके अलावा भारी बर्फबारी की वजह से तीन सीटों पर चुनाव नहीं हुए थे. कांग्रेस को 31 सीटें मिली थीं और बीजेपी को 29 सीटें हासिल हुई थी. अब बीजेपी और कांग्रेस में सरकार बनाने की जोर अजमाइश शुरू हो गई.

वरिष्ठ पत्रकार शशिकांत शर्मा बताते हैं कि इस चुनाव में रमेश धवाला बीजेपी से बागी होकर चुनाव लड़े थे. वो पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार के समर्थक थे और चुनाव जीत गए थे. उस समय बीजेपी के प्रभारी थे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी. मोदी ने जेपी नड्डा की ड्यूटी रमेश धवाला को मनाने के लिए लगाई. धवाला ने शर्त रखी कि वो बीजेपी को समर्थन तभी देंगे जब बीजेपी शांता कुमार को मुख्यमंत्री घोषित करेगी.

शर्मा बताते हैं कि जब रमेश धवाला शिमला के लिए निकले तो बीच में ही उनका अपहरण हो गया. फिर अचानक धवाला कि प्रेस कॉन्फ्रेंस होती है. जिसमें धवाला घोषणा करते हैं कि वह वीरभद्र सिंह को अपना समर्थन दे रहे हैं. उन्होंने एक और विधायक के समर्थन का दावा किया था. वीरभद्र सिंह ने तत्कालीन राज्यपाल रमा देवी के पास जाकर सरकार बनाने का दावा पेश कर दिया. रात के 2 बजे विधायकों की परेड हुई और वीरभद्र सिंह की सरकार बन गई.

इस बीच बीजेपी के एक विधायक हार्ट अटैक से मौत हो गई. लेकिन, सुखराम के समर्थन से बीजेपी फिर 32 सीटों पर पहुंच गई. अब उसे सरकार बनाने के लिए एक सीट की जरूरत थी.

वरिष्ठ पत्रकार शर्मा बताते हैं कि कांग्रेस को रमेश धवाला के फूटने का डर था. इसलिए उन्हें मंत्री पद देकर मुख्यमंत्री के आवास में रखा गया. वो हमेशा कड़ी सुरक्षा में मंत्री आवास में रहते थे. वो जब भी सचिवालय आते थे तो उनके साथ पुलिस की एक बड़ी टीम होती थी. ये सब करीब एक हफ्ते तक चला. जब भी पत्रकार धवाला से सवाल करते थे, तो वो किसी तरह के दबाव को खारिज कर देते थे. लेकिन अततः बीजेपी ने उनसे संपर्क साध लिया और पार्टी में शामिल होने के लिए राजी कर लिया. धवाला के पास एक वेटर के जरिए नैपकिन पर मैसेज भेजा गया कि उन्हें कैसे निकलना है.

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शर्मा बताते हैं कि उस नैपकिन पेपर पर लिखा गया कि जब आप सचिवालय के लिए निकलेंगे तो सचिवालय गेट से थोड़ी दूर पर जो मोड़ है वहां एक गाड़ी खड़ी रहेगी. आप अपनी गाड़ी से उतर कर उसमें बैठ जाइएगा. अगले दिन जब धवाला सचिवालय के लिए निकले तो देखा कि गाड़ी लेकर बीजेपी के राकेश पठानिया खड़े हैं, तब धवाला गाड़ी रुकवाकर झट से उतरे और उस गाड़ी में बैठ गए. सिक्योरिटी में तैनात पुलिकर्मी जब तक कुछ समझते वो गाड़ी आग बढ़ गई. इसके बाद नरेंद्र मोदी ने बीजेपी के पास बहुमत होने का आंकड़ा राज्यपाल के पास पेश किया और फिर बीजेपी की सरकार बनी.

साल 2003 में भी उन्हें मुख्यमंत्री पद के लिए नहीं चुना गया. सोनिया गांधी ने साफ कह दिया था कि इस बार हिमाचल के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह नहीं बल्कि विद्या स्टोक्स होंगी. इसके बाद वीरभद्र सिंह ने आलाकमान के खिलाफ जाकर बगावत की बात कर दी और विद्या स्टोक्स के समर्थक विधायकों को तोड़कर अपने पाले में कर लिया. फिर सरकार के जाने के डर से दिल्ली आलाकमान ने वीरभद्र सिंह को मुख्यमंत्री बनाया.

वीरभद्र सिंह के पास सेंस ऑफ ह्यूमर भी बहुत था. वरिष्ठ पत्रकार शशिकांत शर्मा एक किस्सा बताते हैं कि कोटशेरा कॉलेज के एनुअल फंक्शन में मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह आए हुए थे. तो छात्रों ने उनसे एक मांग रखी कि ये बॉयज कॉलेज है इसको को-एड कॉलेज कर दिया जाए, जिससे इसमें लड़कियां भी पढ़ सकें. वो इस मांग को सुनकर मुस्कराने लगे. फिर जब संबोधन के लिए खड़े हुए थो उन्होंने मंच से घोषणा की कि लड़कों की मांग है कि इस कॉलेज को को-एड कर दिया जाए, तो मैं आज ही इस मंच से घोषणा करता हूं कि इस कॉलेज को को-एड किया जाता है. ये सुनते ही लड़के खुश हो गए और वीरभद्र सिंह के समर्थन में नारे लगाने शुरू कर दिए. तब वीरभद्र सिंह ने बीच में ही उन्हें रोक कर कहा कि हमारी भी एक मांग आप लोगों से हैं. कॉलेज तो को-एड हो गया लेकिन हमारी, आप लोगों से अपील है कि आप सभी लोग अपनी-अपनी बहनों का इस कॉलेज में एडमिशन कराएं. ये सुनते ही वहां सभी उपस्थित लोग ठहाके लगाने लगे.

ऐसे ही एक बार उनके घर पर जनता दरबार लगा हुआ था. इस दौरान लाइन में खड़ी एक बुजुर्ग महिला पर वीरभद्र सिंह की नजर पड़ गई. उस महिला को आगे बुलाकर पूछा कि आप इतनी बुजुर्ग हैं, आप लाइन में क्यों खड़ी हैं? तब महिला ने कहा कि मैं इलाज के लिए शिमला आई हुई थी, लेकिन अब वापस अपने घर चंबा जाने के लिए पैसे नहीं है. मुझे पैसे दे दीजिए ताकि मैं अपने घर जा सकूं. इस पर वीरभद्र सिंह ने मुस्कुराते हुए कहा कि पैसे तो मिल जाएंगे, लेकिन मैं कल ही चंबा जा रहा हूं, आप हमारे साथ चल चलिए, फिर वीरभद्र सिंह  उस बुजुर्ग महिला को अपने साथ हेलिकॉप्टर में ले गए  और उसे उसके घर पहुंचवाया.

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