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नीतीश को याद आए मोदी? 96 मिनट में पोस्ट डिलीट, कर्पूरी ठाकुर के बहाने CM का क्या संदेश?

Bihar: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा नरेंद्र मोदी को लेकर सोशल मीडिया पर किया गया पोस्ट क्या संकेत दे रहा है?

पल्लव मिश्रा
पॉलिटिक्स
Published:
<div class="paragraphs"><p>नीतीश को याद आए मोदी? 96 मिनट में पोस्ट डिलीट, कर्पूरी ठाकुर के बहाने CM का क्या संदेश? </p></div>
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नीतीश को याद आए मोदी? 96 मिनट में पोस्ट डिलीट, कर्पूरी ठाकुर के बहाने CM का क्या संदेश?

(फोटो: क्विंट हिंदी)

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भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के नायक और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान "भारत रत्न" से नवाजा जाएगा. केंद्र सरकार ने मंगलवार (23 जनवरी) को कर्पूरी ठाकुर की 100वीं जयंती से एक दिन पहले इसकी घोषणा की. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने घोषणा की है कि कर्पूरी को मरणोपरांत "भारत रत्न" दिया जाएगा.

इसी बीच बिहार के सीएम नीतीश कुमार का एक सोशल मीडिया पोस्ट चर्चा में आ गया. फिर क्या था नीतीश कुमार के 'यू-टर्न' की राजनीति को हवा मिलने लगी.

नीतीश ने क्या पोस्ट किया?

दरअसल, केंद्र सरकार द्वारा कर्पूरी ठाकुर को "भारत रत्न" देने के ऐलान के बाद बिहार में क्रेडिट लेने की होड़ मच गई. इसी क्रम में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी सोशल मीडिया "एक्स" पर पोस्ट किया, जिसके सियासी मायने निकालने जा रहे हैं.

नीतीश कुमार ने 23 जनवरी को रात 9:14 बजे एक पोस्ट में लिखा, "पूर्व मुख्यमंत्री और महान समाजवादी नेता स्व. कर्पूरी ठाकुर जी को देश का सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ दिया जाना हार्दिक प्रसन्नता का विषय है. केंद्र सरकार का यह अच्छा निर्णय है. स्व. कर्पूरी ठाकुर जी को उनकी 100वीं जयंती पर दिया जाने वाला यह सर्वोच्च सम्मान दलितों, वंचितों और उपेक्षित तबकों के बीच सकारात्मक भाव पैदा करेगा. हम हमेशा से ही स्व. कर्पूरी ठाकुर जी को ‘भारत रत्न’ देने की मांग करते रहे हैं. वर्षों की पुरानी मांग आज पूरी हुई है."

नीतीश कुमार का पहला पोस्ट

पोस्ट का स्क्रीनशॉट

लेकिन कुछ देर बाद नीतीश कुमार ने पोस्ट को डिलीट कर दिया और रात 10:50 बजे एक दूसरा पोस्ट कर लिखा, " पूर्व मुख्यमंत्री और महान समाजवादी नेता स्व॰ कर्पूरी ठाकुर जी को देश का सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ दिया जाना हार्दिक प्रसन्नता का विषय है. केंद्र सरकार का यह अच्छा निर्णय है. स्व. कर्पूरी ठाकुर जी को उनकी 100वीं जयंती पर दिया जाने वाला यह सर्वोच्च सम्मान दलितों, वंचितों और उपेक्षित तबकों के बीच सकारात्मक भाव पैदा करेगा. हम हमेशा से ही स्व॰ कर्पूरी ठाकुर जी को ‘भारत रत्न’ देने की मांग करते रहे हैं. वर्षों की पुरानी मांग आज पूरी हुई है. इसके लिए माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी को धन्यवाद."

नीतीश कुमार का दूसरा पहला पोस्ट

पोस्ट का स्क्रीनशॉट

दोनों पोस्टों को ध्यान से देखेंगे तो समझ आएगा की ये एक ही हैं. लेकिन 96 मिनट के भीतर किए गए दूसरे ट्वीट में सिर्फ एक लाइन को जोड़ा गया है, वो है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम, जिसका जिक्र नीतीश ने पहले पोस्ट में नहीं किया था यानी सीएम ने दूसरे पोस्ट में कर्पूरी ठाकुर को "भारत रत्न" देने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को धन्यवाद दिया है.

अब नीतीश कुमार के दूसरे पोस्ट को लेकर बिहार में राजनीतिक गर्मी बढ़ गई है. कुछ राजनीतिक जानकारों का कहना है कि जेडीयू अध्यक्ष अपने स्वभाव के मुताबिक एक बार फिर 'पलटी मार' सकते हैं, और इसलिए नीतीश कुमार ने पोस्ट डिलीट कर दूसरा पोस्ट किया है. लेकिन सवाल है कि इसमें कितनी सच्चाई है?

पहले नीतीश के पोस्ट का इशारा समझें, उससे पहले ये जान लें कि तेजस्वी यादव ने क्या पोस्ट किया और बिहार में पिछले कुछ दिनों में क्या हुआ, जिस पर कयास लगाए जा रहे हैं.

तेजस्वी यादव ने "एक्स" पर लिखा, "वंचित, उपेक्षित, उत्पीड़ित और उपहासित वर्गों के पैरोकार, महान समाजवादी नेता एवं बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री स्व. कर्पूरी ठाकुर जी को ‘भारत रत्न’ देने की हमारी दशकों पुरानी मांग पूरी होने पर अपार खुशी हो रही है. इसके लिए केंद्र सरकार को साधुवाद."

यानी केंद्र सरकार का धन्यवाद तेजस्वी यादव ने भी जताया बस, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम नहीं लिया.

बिहार में क्यों उठी "सत्ता परिवर्तन" की चर्चा?

दरअसल, मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो बिहार में महागठबंधन में सबकुछ ठीक नहीं है. पिछले कुछ दिनों में हुई घटनाएं भी सवाल पैदा करती हैं, कि सब खराब नहीं भी है तो सब ठीक भी नहीं है.

आप घटनाक्रम देखें- नीतीश कुमार ने सबसे पहले अपने पार्टी के अध्यक्ष पद से ललन सिंह को हटाया और खुद कमान संभाल ली. मीडिया के एक तबके में ललन सिंह और आरजेडी के करीब आने की खबरें भी चल रही थीं. हालांकि ललन सिंह ने इससे इंकार किया था.

उसके बाद लालू यादव के घर दही-चूड़ा भोज में नीतीश गए लेकिन टीका नहीं लगाया. लालू-तेजस्वी अचानक नीतीश से मिलने उनके आवास पर पहुंचे. जब मीडिया में 'सब कुछ ठीक न होने की' खबरें चली तो तेजस्वी ने मुलाकात की वजह सरकारी कामकाज बताया. लेकिन सवाल ये है कि अगर काम सरकार से जुड़ा था तो लालू यादव उनके साथ नीतीश से मिलने क्यों गए?

फिर एक ही हफ्ते में आरजेडी के तीन मंत्रियों- चंद्रशेखर, आलोक मेहता और ललित यादव- के विभाग नीतीश कुमार ने बदल दिए. अभी मीडिया में क्यास लगाए ही जा रहे थे कि 23 जनवरी को नीतीश कुमार अपने सबसे विश्वस्त मंत्री विजय चौधरी के साथ करीब एक घंटे तक राज्यपाल से मुलाकात की.

मुलाकात में क्या बात हुई, इसकी कोई ठोस जानकारी निकल कर नहीं है, लेकिन कहा जा रहा है कि बजट सत्र और विश्वविद्यलय में वीसी की नियुक्ति के मसले पर बात हुई है, लेकिन ये समझ से परे है, क्योंकि मुलाकात के बाद निकले सीएम ने मीडिया से बात नहीं की और मुस्कुराते हुए निकल दिए.

हालांकि, आरजेडी का दावा है कि गठबंधन में सब "ऑल इज वेल" है.

लेकिन घटनाक्रम बता रहे हैं कि 'कुछ तो दाल में काला है' जिस वजह से पिछले दिनों लालू और तेजस्वी उनसे मिलने अचानक उनके आवास पर पहुंचे थे.

जानकारों का कहना है कि आरजेडी की तरफ से नीतीश को पूरा आश्वासन दिया गया है कि उनकी सारी मांगें मान ली जाएगी. और आरजेडी के तीन मंत्रियों के विभाग में बदलाव इसके संकेत हैं. वहीं, जेडीयू से जुड़े सूत्रों की मानें तो, नीतीश पार्टी को टूटने से बचाने के लिए कोई भी कदम उठा सकते हैं.

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हालांकि, ये पहला मौका नहीं है जब गठबंधन टूटने के बाद बीजेपी-नीतीश में जमी बर्फ पिघली हो. पिछले साल फरवरी-मार्च में जब गलवान घाटी में शहीद हुए वैशाली के जयकिशोर सिंह के पिता से पुलिसिया दुर्व्यवहार हुआ था, तब भी राजनाथ सिंह ने नीतीश से फोन पर बात की थी. इसके अलावा, जब तमिलनाडु में बिहार के मजदूरों की कथित पिटाई का मामला सामने आया था, तो उस वक्त भी नीतीश बीजेपी नेताओं की बात मानते दिखे थे. दोनों मौकों पर गठबंधन टूटने जैसी चर्चा सामने आई थी.

नीतीश के पोस्ट के क्या मायने?

एक राजनीतिक टिप्पणीकार ने नाम न छपने की शर्त पर कहा, "नीतीश कुमार का ताजा पोस्ट प्रेशर पॉलिटिक्स का हिस्सा है, वो अपने गठबंधन के साथियों पर दबाव बनाने के लिए ऐसा कदम उठाते रहते हैं." टिप्पणीकार ने आगे कहा,

"ये संभव है कि नीतीश फिर से पाला बदल लें, लेकिन ये भी सच है कि इस बार उनके लिए ये कदम उठाना इतना आसान नहीं होगा."

बिहार की पॉलिटिक्स को समझने वालों की मानें तो, आरजेडी भी नीतीश को इतनी आसानी से जाने देने के मूड में नहीं है. लालू यादव को पता है कि नीतीश के बहाने ही मौजूदा समय में सत्ता के केंद्र में बने रहा जा सकता है, और तेजस्वी को अगर सीएम बनाना है तो अभी नीतीश का साथ रहना महत्वपूर्ण है.

हालांकि, कुछ जानकार कहते हैं कि नीतीश फिलहाल मौके की तलाश में हैं. वो खोज रहे हैं कि किस मुद्दे पर अलग होने का कदम उठाया जाए. उनका ताजा पोस्ट आरजेडी-कांग्रेस पर प्रेशर पॉलिटिक्स के साथ बीजेपी को खुश करने का मौका देना है कि वो फिर से कुछ कदम उठा सकते हैं अगर उन्हें सम्मान दिया जाए.

वहीं, एक राजनीतिक विश्लेषक ने कहा कि नीतीश कुमार मौजूदा समय में महागठबंधन में हावी हैं, वो जितना भी बीजेपी के करीब जाने के संकेत देंगे, उतना गठबंधन में उनको तवज्जो मिलेगी.

इस बीच, बिहार बीजेपी के एक पदाधिकारी ने नाम न छपने की शर्त पर क्विंट हिंदी पर कहा, "नीतीश कहते हैं कि सिगरेट का मजा अंतिम समय तक लिया जाता है. वैसा ही काम नीतीश भी करते रहे हैं."

ये पूछे जाने पर की क्या जेडीयू-बीजेपी फिर साथ आ सकते हैं? इस पर बीजेपी नेता ने कहा,

"नीतीश ने ललन सिंह को हटा दिया, नई कार्यकारिणी में उनके (ललन) लोगों को जगह नहीं दी, ये कोई कम बड़ा संकेत है. लेकिन इतना जरूर है कि इस बार नीतीश की वापसी तभी संभव है, जब वो बीजेपी की सारी शर्तें मानेंगे."

नीतीश के बीजेपी के साथ आने से भगवा दल को क्यों लाभ होगा? इस पर बीजेपी नेता ने कहा, "नीतीश का फैन बेस भले ही कमजोर हो गया है लेकिन लोकसभा चुनाव में उनका लव-कुश समीकरण पार्टी को लाभ दिला सकता है. बीजेपी बिहार में 40 सीटों पर जीत हासिल करना चाहती है. ऐसे में नीतीश के आने से अगर लाभ होता है तो परहेज किस बात की है. वैसे भी राजनीतिक में कभी सबकुछ खत्म नहीं होता है."

क्या नीतीश बीजेपी के साथ जा सकते हैं?

लेकिन सवाल है कि आखिर बीजेपी के साथ दोबारा नहीं जाने की कसम" खाने वाले नीतीश क्यों नरम पड़ रहे हैं, तो इसके पीछे की वजह है वोट. दरअसल, जेडीयू से जुड़े लोगों की मानें तो मौजूदा समय की पॉलिटिक्स बदल चुकी है.

पिछले बार जेडीयू के 17 सांसदों जीत कर आए थे, लेकिन अब बिना बीजेपी के साथ आए 17 का आंकड़ा पाने में मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है.

वैसे नीतीश का राजनीतिक ग्राफ देखें तो समझ आएगा कि जेडीयू प्रमुख कब कौन सा कदम उठा लें, ये समझ से परे है.

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