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41 महीनों बाद पटना पहुंचे लालू प्रसाद यादव, बिहार की राजनीति हुई गर्म

विधानसभा उपचुनाव में प्रचार कर सकते हैं लालू प्रसाद यादव

उत्कर्ष सिंह
पॉलिटिक्स
Published:
<div class="paragraphs"><p>आरजेडी नेता लालू प्रसाद यादव</p></div>
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आरजेडी नेता लालू प्रसाद यादव

फोटो : PTI

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बिहार विधानसभा उपचुनाव(Bihar assembly by-election)से ठीक पहले लालू यादव(Lalu Yadav) पटना पहुंच चुके हैं. चारा घोटाले में सजायाफ्ता और लंबे समय से बीमार चल रहे लालू यादव एक अरसे बाद अपने घर आए हैं. जमानत पर रिहा होने के बाद से ही लालू यादव पटना आना चाहते थे लेकिन बीमारियों को देखते हुए डॉक्टरों ने उन्हें दिल्ली में ही रहने की सलाह दी थी. लेकिन आखिरकार डॉक्टरों की इजाजत के बाद लालू यादव एक महीने के लिए पटना आ गए हैं. हालांकि डॉक्टरों ने उन्हें ज्यादा दौड़-भाग करने से मना किया है. लेकिन सूत्र बता रहे हैं कि लालू यादव तारापुर और कुशेश्वरस्थान सीटों पर एक-एक रैली को सम्बोधित कर सकते हैं.

लालू के प्रचार करने को लेकर चर्चाएं तेज

उपचुनाव से पहले लालू के पटना आने से आरजेडी समर्थकों में जोश भर आया है. आरजेडी को उम्मीद है कि लालू के आने और प्रचार करने से उन्हें फायदा मिलेगा. हालांकि 2020 विधानसभा चुनाव में तेजस्वी ने न सिर्फ लालू के बिना चुनाव लड़ा था बल्कि आरजेडी ने अपने पोस्टरों पर लालू की तस्वीर तक इस्तेमाल नहीं की थी. जानकार मानते हैं कि आरजेडी को इसका फायदा भी हुआ और तेजस्वी के चेहरे पर चुनाव लड़कर वो दोबारा से वो सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी.

वहीं एनडीए के नेताओं के बीच लालू के प्रचार करने को लेकर चर्चाएं तेज हैं. कुछ नेताओं को लगता है कि लालू के आने से एनडीए को नुकसान हो सकता है. जबकि कुछ नेताओं का मानना है कि जो चुनाव अभी एनडीए के लिए फंसा हुआ नजर आ रहा है, लालू के आने के बाद वो आसानी से एनडीए के खाते में आ जाएगा.

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जमानत पर 2018 में आए थे पटना

इससे पहले लालू यादव आखिरी बार अपने बड़े बेटे तेज प्रताप यादव की शादी में शामिल होने के लिए मई, 2018 में पटना आए थे. लालू यादव कई सालों से बिहार और यहां की राजनीति से दूर हैं लेकिन बिहार की राजनीति के केंद्र में आज भी उनकी प्रासंगिकता को नकारा नहीं जा सकता. आरजेडी भले ही अब तेजस्वी के चेहरे पर चुनाव लड़ने की बात कहती हो लेकिन उनके जनाधार का मुख्य केंद्र लालू यादव ही हैं.

कई मौकों पर तेजस्वी खुद को 'लालू का बेटा' कहकर परिचय देते हुए दिखाई पड़े हैं, चुनाव में भी वो उनके नाम पर वोट मांगते दिख जाते हैं. दूसरी तरफ विरोधी आज भी लालू यादव के शासनकाल की याद दिलाकर जनता को अपने पक्ष में लाने की कोशिश करते हैं. राजनीतिक विश्लेषक बताते हैं कि देश में लालू संभवतः एकमात्र विपक्षी नेता हैं जो डेढ़ दशक से सत्ता से बेदखल होने के बावजूद राजनीति के केंद्र में बने हुए हैं.

कांग्रेस पर हमलाबर पर लालू

लालू यादव ने कांग्रेस को लेकर भी अपना रुख स्पष्ट कर दिया है. बिहार में महागठबंधन टूटने के सवाल पर लालू यादव ने तल्ख लहजे में कहा, "क्या होता है कांग्रेस का गठबंधन, हारने के लिए दे देते कांग्रेस को, जमानत जब्त कराने के लिए?" इतना ही नहीं लालू ने कांग्रेस प्रभारी भक्त चरण दास के आरजेडी पर बीजेपी से मिले होने के आरोपों पर गुस्साते हुए भक्त चरण दास को 'भकचोन्हर' (mindless) कह डाला.

सीट बंटवारे को लेकर लालू आहत

दरअसल विधानसभा उपचुनाव में सीटों के बंटवारे को लेकर हुई नोंकझोंक से लालू यादव काफी आहत हैं. उनके कहने पर ही तेजस्वी ने पिछले चुनाव में कांग्रेस को 70 सीटें दी थीं लेकिन कांग्रेस मात्र 19 सीटें ही जीत पाई. महागठबंधन के सरकार न बना पाने की एक वजह ये भी मानी गई.इसलिए विधानसभा की दो सीटों पर होने वाले उपचुनाव के लिए आरजेडी ने कांग्रेस से पीछे हटने को कहा लेकिन कांग्रेस अड़ गई.

आरजेडी ने भी बिना परवाह किए उम्मीदवार घोषित कर दिए और फिर कांग्रेस भी दोनों सीटों पर लड़ने उतर गई. इस दौरान दिल्ली में लालू यादव की राहुल गांधी से मुलाकात भी हुई लेकिन इस मसले पर कोई बात नहीं हुई. बिहार में महागठबंधन बनाने में लालू यादव की महत्वपूर्ण भूमिका थी लेकिन अब जब लालू ने कांग्रेस को लेकर कड़ा रुख अख्तियार कर लिया है तो निश्चित तौर पर राष्ट्रीय स्तर पर महागठबंधन की परिकल्पना को एक बड़ा झटका लग सकता है.

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