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लोकसभा चुनाव: मायावती मुस्लिम प्रत्याशियों पर दांव लगा SP-कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ा रहीं?

Lok Sabha Elections 2024: बीएसपी ने सात सीटों पर प्रत्याशियों की घोषणा की है जिसमें पांच मुस्लिम चेहरे हैं.

पीयूष राय
पॉलिटिक्स
Published:
<div class="paragraphs"><p>Lok Sabha Elections: मुस्लिम प्रत्याशियों पर दाव लगा गठबंधन की मुश्किलें बढ़ा रहीं मायावती?</p></div>
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Lok Sabha Elections: मुस्लिम प्रत्याशियों पर दाव लगा गठबंधन की मुश्किलें बढ़ा रहीं मायावती?

(फोटो: क्विंट हिंदी)

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2007 में 272 सीट जीतकर उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) की सत्ता पर काबिज होने वाली बहुजन समाज पार्टी (BSP) इस समय अपने राजनीतिक हाशिए पर है. 2022 विधानसभा चुनाव में पार्टी सिर्फ एक सीट पर जीत दर्ज कर पाई. एक और चुनाव सिर पर है और बीएसपी की तैयारी की बात करें तो पार्टी ने सात सीटों पर प्रत्याशियों की घोषणा की है जिसमें पांच मुस्लिम चेहरे हैं.

पीलीभीत से पूर्व मंत्री अनीस अहमद खान, मुरादाबाद से इमरान सैफी, कन्नौज से अकील अहमद पट्टा, सहारनपुर से मजीद अली, अमरोहा से डॉक्टर मुजाहिद हुसैन, बिजनौर से चौधरी विजेंद्र सिंह और मुजफ्फरनगर से दारा सिंह प्रजापति को अपना प्रत्याशी बनाया है.

यह चारों ऐसी सीटें हैं जहां पर मुस्लिम और दलित वोटर खेल बनाने या बिगाड़ने का दमखम रहते हैं. ऐसे में अगर मायावती अकेले चुनाव लड़ती हैं तो मुस्लिम और दलित वोटरों का बिखरना तय है.

मुस्लिम कैंडिडेट खड़ा कर विपक्ष का खेल बिगाड़ रही बीएसपी?

मायावती ने 2017 विधानसभा चुनाव में 99 मुस्लिम प्रत्याशी मैदान में खड़ा किए थे. इनमें से अधिकांश प्रत्याशी मुस्लिम बाहुल्य उन 140 से ज्यादा विधानसभा सीटों पर खड़े किए गए थे जहां पर मुस्लिम वोटरों की संख्या 20% या उससे ज्यादा थी. इन 99 प्रत्याशियों में से सिर्फ 5 मुस्लिम प्रत्याशी जीत पाए. पांच साल बाद 2022 विधानसभा चुनाव में बीएसपी ने 60 से ज्यादा मुस्लिम प्रत्याशी इन सीटों पर खड़े किए थे. इस चुनाव में बीएसपी को करारी हार का सामना करना पड़ा और पार्टी सिर्फ एक सीट पर जीत दर्ज कर पाई. इन आंकड़ों से एक तरफ यह समझ में आता है कि मुस्लिम समुदाय में पार्टी की पकड़ धीरे-धीरे कमजोर हो रही है. वहीं दूसरी तरफ चुनावी समीकरण में मुस्लिम वोटों के बंटवारे का फायदा बीजेपी को मिलता नजर आ रहा है.

अगर उदाहरण से इस बात को समझें तो 2017 विधानसभा चुनाव में पश्चिम उत्तर प्रदेश के कई जिले जैसे कि मेरठ, मुजफ्फरनगर, शामली, सहारनपुर और मुरादाबाद की कई मुस्लिम बाहुल्य विधानसभा सीटों पर बीजेपी प्रत्याशी के खिलाफ एसपी और बीएसपी, दोनों ने मुस्लिम उम्मीदवार उतारे.

2017 विधानसभा चुनाव में मुजफ्फरनगर की मीरापुर विधानसभा सीट पर बीजेपी प्रत्याशी अवतार सिंह भड़ाना ने मात्र 193 वोटों से जीत दर्ज की थी. जहां अवतार सिंह भड़ाना को 69,035 वोट मिले थे. वहीं समाजवादी पार्टी प्रत्याशी लियाकत अली को 68,842 वोट प्राप्त हुए थे, इस चुनाव में बीएसपी के नवाजिश आलम खान को 39,679 वोट मिले थे.

मीरापुर विधानसभा सीट के अलावा थाना भवन मेरठ दक्षिणी, सिवाल खास, देवबंद, भोजीपुरा, नूरपुर और कांठ जैसी तकरीबन 14 ऐसी विधानसभा सीटें थी, जहां पर मुस्लिम प्रत्याशियों द्वारा प्राप्त कुल मत बीजेपी प्रत्याशी से ज्यादा था. इन सीटों पर अधिकतर बीएसपी प्रत्याशी तीसरी या चौथे नंबर पर रहे.

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2022 विधानसभा चुनाव में मुस्लिम वोटरों ने बीएसपी से बनाई दूरी

2022 विधानसभा चुनाव में बीएसपी सिर्फ एक सीट पर चुनाव जीत पाई. इन चुनाव में पार्टी ने 60 से ज्यादा मुस्लिम मुस्लिम प्रत्याशी खड़ा किए थे लेकिन इस बार मुस्लिम वोट बैंक का ध्रुवीकरण एसपी और आरएलडी गठबंधन के पक्ष में नजर आया. पश्चिमी यूपी की मुस्लिम सीटें जैसे थाना भवन, सिवाल खास, मीरापुर, नूरपुर, भोजीपुरा और कांठ पर 2017 विधानसभा चुनाव में मुस्लिम वोट के बंटवारे की वजह से एसपी को हार का सामना करना पड़ा था. लेकिन इन सीटों पर 2022 चुनाव के नतीजे में उलटफेर दिखा. इन सभी सीटों पर एसपी-आरएलडी गठबंधन के प्रत्याशी ने जीत दर्ज की.

2017 विधानसभा चुनाव में 19 सीट जीतकर बीएसपी ने राज्य में वोट शेयर 22.23% बनाए रखा. 2022 विधानसभा चुनाव में या वोट शेयर घटकर 12.88% रह गया. विशेषज्ञों का मानना था कि बीएसपी के वोट शेयर में यह भारी गिरावट मुस्लिम वोटरों का बीएसपी से दूरी बनाने का संकेत है. पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने भी मीडिया से बातचीत के दौरान इस बात को स्वीकारा था.

लोकसभा चुनाव में मायावती के अकेले चुनाव लड़ने से कैसे बदलेगा समीकरण?

मायावती के अकेले चुनाव लड़ने से बीजेपी को कैसे फायदा होगा इसको समझने के लिए हमें मुस्लिम बाहुल्य कुछ सीटों पर 2014 और 2019 के नतीजे का आकलन करना होगा. 2014 लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी (एसपी) बीएसपी और कांग्रेस ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था. वहीं 2019 में एसपी और बीएसपी का गठबंधन हुआ. इन दोनों समीकरणों में मुस्लिम बाहुल्य सीटों पर क्या फर्क पड़ा, इसको जानने के लिए कुछ सीटों की समीक्षा करनी पड़ेगी.

मुरादाबाद सीट पर 2014 लोकसभा चुनाव के दौरान बीजेपी ने कुंवर सर्वेश कुमार को मैदान में उतारा था. अलग-अलग चुनाव लड़ रही एसपी, बीएसपी और कांग्रेस ने अपने मुस्लिम उम्मीदवार खड़े किए थे. इस चुनाव में 45,225 वोटों के साथ कुंवर सर्वेश कुमार ने जीत दर्ज की थी. इनका वोट शेयर 27.38% परसेंट था. वहीं दूसरे नंबर पर रहे उम्मीदवार एसटी हसन का वोट शेयर 22.4% परसेंट था. बीएसपी के उम्मीदवार हाजी मोहम्मद याकूब का वोट शेयर 9.08% था.

तस्वीर 2019 में बदल जाती है. लोकसभा चुनाव में एसपी और बीएसपी गठबंधन में चुनाव लड़ रहे थे. चुनाव के नतीजे में एसपी के डॉक्टर एसटी हसन को 6,49,416 मत प्राप्त हुए और उनका वोट शेयर 50.65% था. 2014 में चुनाव जीतने वाले कुंवर सर्वेश कुमार 43.01% वोट शेयर के साथ दूसरे नंबर पर रहे थे. कुछ ऐसा ही हाल पश्चिमी उत्तर प्रदेश की अन्य मुस्लिम बाहुल्य सीट जैसे अमरोहा, बिजनौर, संभल, सहारनपुर और रामपुर में रहा जहां मुस्लिम वोटों को एक जुट कर गठबंधन ने बीजेपी को शिकस्त दी थी.

2024 लोकसभा चुनाव में मायावती के अकेले लड़ने से एक बार फिर 2014 के चुनाव जैसी स्थिति पैदा हो गई है. ऐसे में जहां हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण हो जाएगा, वहीं मुस्लिम वोटों का बंटवारा होना तय माना जा रहा है. हालांकि, यह तो नतीजे ही तय करेंगे कि मायावती की इस रणनीति से 'INDIA' गठबंधन को कितना नुकसान उठाना पड़ सकता है.

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